इंजीनियर डॉक्टर के बाद अब पत्रकार : इत्तेफ़ाक या संगठित इकोसिस्टम

  • Kashmir Times के दफ्तर पर रेड, मिला AK 47

रंजन कुमार सिंह

सुरक्षा एजेंसीज ने जब जम्मू में “Kashmir Times” अख़बार के ऑफिस पर रेड डाली तो AK 47 सहित आतंक फैलाने के दूसरे कई सामान मिले। इंजीनियर, डॉक्टर के बाद अब पत्रकार। देश इनकी इतनी कट्टरता में जा चुका है जहाँ आप इन पर आप विश्वास कर ही नहीं सकते।  भारत के ख़िलाफ़ बहुत बड़ी साज़िश चल रही है इसमें कोई दो राय नहीं है। यह बात बिल्कुल उसी तरह है जैसे घर की दीवारें मजबूत हों, पर भीतर ही भीतर दीमक लग चुकी हो। ऊपर से सब ठीक दिखता है, अंदर से पूरा ढांचा खोखला हो चुका है। “Kashmir Times” के दफ़्तर पर इसी बृहस्पतिवार को हुई रेड में AK-47 और आतंक से जुड़े सामान मिलना सिर्फ़ एक क्रिमिनल केस नहीं है, यह उस गहरी पैठ की निशानी है जो पेशे, प्रोफ़ेशन,और चेहरे बदल बदलकर सिस्टम को भीतर से काट रही है। इंजीनियरों की आड़ में नेटवर्क, डॉक्टरों की आड़ में भर्ती-सपोर्ट सिस्टम, और अब पत्रकारों की आड़ में प्रोपेगंडा। ये कोई बिखरे हुए इत्तेफ़ाक नहीं हैं। ये एक संगठित इकोसिस्टम है। पत्रकारिता लोकतंत्र की आँख-मुँह-कान मानी जाती है।उसी के भीतर अगर ऐसे हथियार और ऐसे लोग छुपकर बैठ जाएँ, तो समझिए समस्या सिर्फ़ “बिगड़े हुए लोग” नहीं, बल्कि घुसपैठ किए हुए मोर्चे हैं।

असली सवाल क्या है?

देश का सुरक्षा तंत्र बाहर से आने वाले खतरे को रोक लेता है, मगर अंदर से आया हुआ खतरा,मुखौटा पहनकर चलने वाला उसे पहचानना मुश्किल होता है। और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर ये पूरी जमात चल रही है।

आख़िर समाधान क्या है?

इकोसिस्टम की सफाई। प्रोफ़ेशन कोई भी हो, यदि उसके भीतर आतंक समर्थक सेल बनते हैं तो उन पर surgical strike जैसी कार्रवाई हो। “पत्रकार” का टैग ढाल नहीं बन सकता। फ़ंडिंग की जाँच। विदेशी और संदिग्ध फंडिंग पर कड़ी ट्रैकिंग, चाहे वह मीडिया हाउस हो या NGO। सुरक्षा एजेंसियों को फ्री हैंड। बिना राजनीतिक प्रेशर, बिना “प्रेस-फ्रीडम” की आड़ में शोर मचाने वाले गिरोहों के दबाव के। नैरेटिव का पर्दाफाश। जो लोग आतंकियों के लिए कलम चलाते हैं, उन्हें “एक्टिविस्ट” या “पत्रकार” बताकर बचाने वाला गैंग भी सामने लाया जाए। राष्ट्र-विरोधी ढांचे का एक्सपोज़र। यह अब individuals की समस्या नहीं, एक पूरी लॉबी है जिसकी जड़ें पाकिस्तान से लेकर लुटियंस तक फैली हुई हैं।

X पर संपादक का ट्वीट
X पर संपादक का ट्वीट

सबसे अहम: भारत के खिलाफ़ साज़िश चुपचाप नहीं चल रही है। यह संगठित, फंडेड और बहुस्तरीय है। और इसकी सबसे ख़तरनाक बात यह है कि यह बंदूक लिए आतंकियों से ज़्यादा, पेन और प्रेस कार्ड लिए छद्मी आतंकियों के ज़रिये आगे बढ़ती है। देश के हर जागरूक नागरिक को यह समझना होगा कि लड़ाई सिर्फ़ बॉर्डर पर नहीं, भीतर भी है और इस बार युद्ध वर्दी वालों के साथ-साथ कलमवालों से भी है जो पत्रकारिता के भेस में दूसरा चेहरा लिए बैठे हैं।

बृहस्पतिवार को क्या हुआ : जम्मू कश्मीर पुलिस की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी एसआईए ने गुरुवार को जम्मू स्थित अंग्रेजी दैनिक कश्मीर टाइम्स के कार्यालय पर छापा मारा। कहा गया है कि एजेंसी को तलाशी के दौरान एके-47 राइफल के कई कारतूस, पिस्तौल की गोलियाँ और हैंड ग्रेनेड के पिन बरामद किए गए। रिपोर्टों के अनुसार एसआईए ने पूरे दफ्तर की गहन तलाशी ली, कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए। यह कार्रवाई उस एफ़आईआर के तहत हुई है जिसमें अखबार और उसके प्रमोटरों पर देश-विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है। अखबार के संपादकों ने इस कार्रवाई को प्रेस की आवाज़ को दबाने की एक और कोशिश क़रार दिया है। कश्मीर पुलिस की एजेंसी की यह कार्रवाई तब हुई है जब कश्मीर टाइम्स के खिलाफ कथित तौर पर नाराज़गी फैलाने, अलगाववाद का गुणगान करने और भारत और केंद्र शासित प्रदेश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को खतरा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए एक एफ़आईआर भी दर्ज की गई थी। कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन का भी नाम एफ़आआईआर में है।

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उपमुख्यमंत्री बोले : उपमुख्यमंत्री सुरिंदर सिंह चौधरी ने छापे पर सावधानी बरतते हुए कहा, ‘अगर किसी ने ग़लत किया है तो कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन सिर्फ दबाव बनाने के लिए ऐसा करना गलत होगा।’

इल्तिजा मुफ्ती ने की आलोचना

पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने छापे को बेतुका और राज्य की ‘दमनकारी नीति’ का उदाहरण बताया। एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा, ‘कश्मीर टाइम्स उन गिने-चुने अख़बारों में था जो सत्ता को आईना दिखाता था और दबाव में नहीं झुका। देश-विरोधी गतिविधि के नाम पर दफ्तर पर छापा मारना सरासर गुंडागर्दी है। कश्मीर में सच्चाई की हर खिड़की को देश-विरोधी का तमगा लगाकर बंद किया जा रहा है। क्या हम सब देश-विरोधी हैं?’

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कश्मीर टाइम्स की स्थिति

1954 में दिग्गज पत्रकार वेद भसीन द्वारा शुरू किये गये कश्मीर टाइम्स पर एक तबक़े द्वारा लंबे समय से अलगाववादी विचारधारा के समर्थक होने का आरोप लगाया जाता रहा है। वेद भसीन जम्मू प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रह चुके थे। उनका कुछ वर्ष पहले निधन हो गया। इसके बाद उनकी बेटी अनुराधा भसीन जामवाल और दामाद प्रबोध जामवाल ने प्रबंधन और संपादकीय जिम्मेदारी संभाली। फ़िलहाल, दोनों संपादक विदेश में हैं। 2021-22 से कश्मीर टाइम्स का जम्मू से मुद्रित संस्करण बंद है, हालाँकि ऑनलाइन संस्करण अभी भी सक्रिय है।

आज़ाद प्रेस को चुप कराने की साज़िश: संपादक

विदेश से जारी संयुक्त बयान में अनुराधा भसीन जामवाल और प्रबोध जामवाल ने छापे की कड़ी निंदा की और इसे स्वतंत्र पत्रकारिता को खामोश करने की सुनियोजित कोशिश क़रार दिया। बयान में कहा गया है, ‘हमें ऑफिशियल एक्शन को कन्फर्म करने के लिए कोई ऑफिशियल जानकारी या बयान नहीं मिला है। हमारा ऑफिस, जहां मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रेड हुई थी, पिछले चार साल से बंद था और काम नहीं कर रहा था। हमारे खिलाफ लगाए गए अजीब आरोप बेबुनियाद हैं।’

उन्होंने कहा, ‘सरकार की आलोचना करना देश-विरोध नहीं है। सरकार की बुराई करना सरकार के ख़िलाफ़ होना नहीं है। असल में, यह बिल्कुल उल्टा है। एक मज़बूत, सवाल उठाने वाला प्रेस एक हेल्दी डेमोक्रेसी के लिए ज़रूरी है। सत्ता को जवाबदेह ठहराने, करप्शन की जांच करने, हाशिए पर पड़ी आवाज़ों को उठाने का हमारा काम हमारे देश को मजबूत करता है। यह इसे कमजोर नहीं करता। हम पर लगाए जा रहे आरोप डराने, बदनाम करने और अंततः चुप कराने के लिए हैं। हम चुप नहीं होंगे।’
बयान में आगे कहा गया है, ‘हमें ठीक इसलिए टारगेट किया जा रहा है क्योंकि हम यह काम करते रहते हैं। ऐसे समय में जब आलोचना करने वाली आवाज़ें बहुत कम होती जा रही हैं, हम उन कुछ इंडिपेंडेंट आउटलेट्स में से एक हैं जो पावर के सामने सच बोलने को तैयार हैं। हमारे खिलाफ लगाए गए आरोप डराने, गलत साबित करने और आखिर में चुप कराने के लिए हैं। हम चुप नहीं रहेंगे। संपादकों ने प्रशासन से आरोप वापस लेने और उत्पीड़न बंद करने की अपील की है। साथ ही मीडिया साथियों, सिविल सोसाइटी और नागरिकों से एकजुटता की गुहार लगाई है। उन्होंने जोर दिया कि पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है और सच्चाई के प्रति उनकी प्रतिबद्धता बरकरार रहेगी।

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