उमेश तिवारी
जितेंद्र सार्दुल और संजना की शादी 2002 में हुई थी। तब जितेंद्र मैट्रिक पास थे। शादी के बाद उन्हें जब घर जमाई बनने के लिए कहा गया, तब उन्होंने अपने स्वाभिमान का हवाला देकर ससुर की बात को मना कर दिया। उस हालात में संजना ने अपने पति का साथ दिया। गरीबी और तंगहाली से जूझती संघर्ष करती संजना ने पति को पढ़ाने के लिए अपने जेवर तक बेच दिए और अपने पति को पहले इंटर और फिर स्नातक करवाया। विहार के जमुई जिले से एक ऐसी महिला की कहानी सामने आई है, जिसने त्याग, परिश्रम और बलिदान की बेहतरीन मिसाल पेश की है।
बताते चलें कि इन दिनों पूरे देश में तीन महिलाओं की खूब चर्चा हो रही है। उत्तर प्रदेश की एक महिला अधिकारी ज्योति मौर्य और उनके पति के बीच विवाद की चर्चा के बाद वैसे कई मामले सामने आए जहां लोगों ने अपनी पत्नियों की पढ़ाई बंद करवा दी। इसके अलावा अपने पति को छोड़कर पाकिस्तान गयी अंजु और पाकिस्तान से भारत आयी सीमा हैदर की कहानी के बाद भी कई लोगों ने महिलाओं पर सवाल उठाया। लेकिन, इन सबके बीच बिहार के जमुई जिले से एक ऐसी महिला की कहानी सामने आई है, जिसने त्याग, परिश्रम और बलिदान की बेहतरीन मिसाल पेश की है। इस महिला का नाम है संजना, जिसने गरीब और लाचार पति की जिंदगी और भविष्य बनाने में कोई कसर नही छोड़ी। संजना ने अपने पति की पढ़ाई के लिए महिलाओं के लिए खास माने जाने वाली गहने तक बेच दिए।
मिली जानकारी के अनुसार एक आदर्श पत्नी का फर्ज निभा रही संजना ने मैट्रिक पास पति जितेंद्र को इंटर के बाद ग्रेजुएशन तक कराया। संजना के सहयोग का परिणाम है कि आज उसका पति जितेंद्र सरकारी स्कूल में एक शिक्षक है। वहीं उसकी पत्नी संजना भी सरकारी विभाग में एक कर्मी है। दरअसल गरीब परिवार से आने वाले जितेंद्र को उसके ससुर घर जमाई बनाना चाहते थे, लेकिन जब उसने मना कर दिया तब पत्नी कुमारी संजना ने अपने पति जितेंद्र का साथ दिया।
संजना के पिता जितेंद्र को बनाना चाहते थे घर जमाई
ऐसे में जमुई के शिक्षक जितेंद्र सार्दुल की कामयाबी के पीछे पत्नी कुमारी संजना का संघर्ष की चर्चा पूरे जमुई जिले में होती है। जितेंद्र सार्दुल और संजना की शादी 2002 में हुई थी। तब जितेंद्र मैट्रिक पास थे। शादी के बाद उन्हें जब घर जमाई बनने के लिए कहा गया, तब उन्होंने अपने स्वाभिमान का हवाला देकर ससुर की बात को मना कर दिया। उस हालात में संजना ने अपने पति का साथ दिया। गरीबी और तंगहाली से जूझती संघर्ष करती संजना ने पति को पढ़ाने के लिए अपने जेवर तक बेच दिए और अपने पति को पहले इंटर और फिर स्नातक करवाया। संजना के साथ का असर हुआ कि 2007 में जितेंद्र शार्दूल शिक्षक बन गया। वहीं 2014 में संजना जिले के खैरा प्रखंड में आवास सहायक बन गई।
जेवर बेच कर बेरोजगार पति को बनाया टीचर
बता दें, संजना के पिता बिजली विभाग में लाइन इंस्पेक्टर के पद पर मुंगेर में कार्यरत थे। कोई पुत्र नहीं होने के कारण से संजना के पिता ने उसकी शादी जितेंद्र शार्दूल से करवाई थी जोकि मैट्रिक पास बेरोजगार थे। संजना के पिता की इच्छा थी कि जितेंद्र को घर जमाई बनाकर अपने साथ रखें। लेकिन जितेंद्र ने ससुर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। जितेंद्र की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी, इसलिए उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी। लेकिन पढ़कर वह कुछ करना चाहते थे। इस दौरान उनकी पत्नी संजना ने जो संघर्ष और त्याग किया वह काबिले तारीफ है। शादी के कुछ ही दिन बाद जितेंद्र के घर वालों ने उसे मजदूरी करने की सलाह दी थी। लेकिन वह पढ़ना चाहते थे। पर उनके लिए पैसों की बाधा थी। ऐसे में संजना ने अपने पति की आगे की पढ़ाई करवाई, पढ़ाई में किसी प्रकार की कमी ना हो इसलिए उसने मायके से मिले अपने सारे जेवर बेच दिए।
मैट्रिक पास पति को कराया ग्रेजुएशन
जहां एक तरफ जितेंद्र आज अलग अंदाज में बच्चों को शिक्षा देने के लिए चर्चित हैं वहीं दूसरी तरफ पति-पत्नी की इस जोड़ी के रील्स को लोग खूब पसंद करते हैं। जितेंद्र ने बताया कि उन्होंने 1994 में मैट्रिक परीक्षा पास की थी। उनके पिताजी की मौत 1995 में हो गई थी। वह 8 भाई थे, घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। पिताजी की मौत के बाद वह आगे नहीं पढ़ सका। लेकिन उसके सारे दोस्त पढ़ने लिखने वाले थे। उसकी भी इच्छा थी कि वह पढ़े। 2002 में शादी के बाद उसे घर जमाई बनने के लिए कहा गया तो उसने मना कर दिया। बाद में पत्नी ने जेवर बेचकर मैट्रिक के 8 साल के बाद इंटर और ग्रेजुएशन करवाया। जितेंद्र कहते हैं कि अगर उनकी पत्नी संजना जेवर नहीं बेचती तब पढ़ाई क्या जिंदगी जीना भी मुश्किल हो जाता।
‘आज हमलोग बहुत खुश हैं’
वहीं संजना का कहना है कि शादी के बाद उनकी खुशी पति की खुशी में ही थी। उनके पति आगे पढ़ाई करना चाहते थे। इनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत ठीक नहीं थी। एक वक्त का खाना भी ठीक से नहीं मिल पाता था। तब हमने अपने जेवर बेच दिए थे जिससे वह आगे पढ़ें और शिक्षक बन गए। वहीं अब मैं भी आवास सहायक बन गई, आज हम लोग बहुत खुश हैं।