उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सामूहिक विवाह योजना आज गरीब परिवारों के लिए उम्मीद की एक मजबूत किरण बन चुकी है। शादी जैसे बड़े सामाजिक अवसर पर आर्थिक तंगी के कारण बेटियों के भविष्य से समझौता न करना पड़े, इसी सोच के साथ इस योजना की शुरुआत वर्ष 2017 में की गई थी। बीते आठ वर्षों में यह योजना सिर्फ एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले चुकी है। अब तक चार लाख से अधिक बेटियों की शादी इस योजना के तहत कराई जा चुकी है। सामूहिक विवाह समारोहों में सादगी, सम्मान और सामाजिक सहभागिता का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है।
वित्तीय वर्ष 2025-26 में इस योजना को लेकर रिकॉर्ड स्तर पर आवेदन सामने आए हैं। जहां सरकार ने 57 हजार शादियों का लक्ष्य रखा था, वहीं अब तक 1.20 लाख से अधिक आवेदन मिल चुके हैं। इनमें से 21 हजार से ज्यादा मामलों को स्वीकृति दी जा चुकी है और 14 हजार से अधिक विवाह सफलतापूर्वक संपन्न हो चुके हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस योजना से सबसे ज्यादा लाभ दलित समुदाय को मिला है। 2.20 लाख से अधिक दलित परिवारों की बेटियों की शादी कराई जा चुकी है। इसके साथ ही पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक और सामान्य वर्ग के गरीब परिवारों ने भी इस योजना से राहत पाई है।
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सरकार हर जोड़े को 1 लाख रुपये की सहायता प्रदान करती है। इसमें जरूरी घरेलू सामान, कन्या के खाते में सीधे भेजी जाने वाली राशि और विवाह समारोह का पूरा खर्च शामिल होता है। इससे परिवारों को कर्ज या सामाजिक दबाव से मुक्ति मिलती है। योजना के नोडल अधिकारी आर.पी. सिंह का कहना है कि सामूहिक विवाह योजना समाज में समानता और सम्मान की भावना को मजबूत करती है। यह कार्यक्रम जाति और धर्म से ऊपर उठकर सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है।
अब तक सरकार इस योजना पर 2,200 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर चुकी है। चालू वर्ष में 550 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है। अधिकारियों का मानना है कि यह पहल न सिर्फ आर्थिक मदद है, बल्कि बेटियों के आत्मसम्मान और सुरक्षित भविष्य की नींव भी है।
