राजेन्द्र गुप्ता
हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने का भी विशेष महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत को करने से घर में सुख-शांति बढ़ती है और जीवन में स्थिरता आती है।
सफला एकादशी तिथि
वैदिक पंचांग के मुताबिक सफला एकादशी की तिथि 14 दिसंबर रात 8:46 बजे शुरू होगी और 15 दिसंबर रात 10:09 बजे खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार व्रत 15 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा और पारण 16 दिसंबर को किया जाएगा।
सफला एकादशी पारण का समय
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर पारण किया जाता है। 16 दिसंबर को पारण का शुभ समय: सुबह 6:55 बजे से 9:03 बजे तक है।
पूजा विधि : इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ पीले या हल्के रंग के वस्त्र पहनें। घर के पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करने के बाद चौकी पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीपक जलाकर पूजा की शुरुआत करें और भगवान को पीले फूल, तुलसी दल, अक्षत, पंचमेवा, फल और पीली मिठाई का भोग लगाएं। पूरे दिन सात्त्विकता बनाए रखें और फलाहार या निर्जला व्रत का पालन करें। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करते रहें और शाम को फिर से दीपक जलाकर आरती करें। तुलसी पर दीप जलाकर प्रणाम करें। रात्रि में संभव हो तो भजन-कीर्तन या शांत ध्यान करें। अगले दिन द्वादशी तिथि में शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
सफला एकादशी का महत्व
सफला एकादशी करने वाले उपासक को सौ राजसूय यज्ञों से ज्यादा पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य जीवन में सफल और समृद्ध हो जाता है। इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी के आशीर्वाद से यश, वैभव और कीर्ति में वृद्धि होती है।
सफला एकादशी की पारण विधि
पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। द्वादशी तिथि समाप्त होने के भीतर ही पारण करें। द्वादशी में पारण न करना अपराध के समान है। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासरा के खत्म होने का इंतजार करें, हरि वासरा के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचें। व्रत तोड़ने का समय प्रात:काल है। किसी कारणवश प्रात:काल के दौरान व्रत नहीं तोड़ पाते हैं तो मध्याह्न के बाद व्रत ख़तम करें।
