- श्रीनाथ ज्वैलर्स कांड या फिर मुन्ना बजरंगी के साले पुष्प जीत हत्याकांड का मामला
- इतने दिनों में कई स्टेशन अफसर कर चुके हैं जांच फिर भी नतीजा सिफर
ए अहमद सौदागर
लखनऊ। माना जा रहा है कि अपराधी मौका-ए-वारदात पर कोई न कोई सबूत जरूर छोड़ता, लेकिन गुमनामी में खो चुकी कई संगीन वारदातें इसकी तस्दीक नहीं करती। सर्विलांस से लेकर मुखबिर तंत्र का पूरा जोर लगाने के बावजूद पुलिस के नाकाम रहने की दो कहानी। पहली घटना 13 अगस्त 2007 को डंडहिया बाजार स्थित श्रीनाथ ज्वैलर्स में हुई, जबकि दूसरी वारदात विकासनगर में दोहरी हत्या हुई। इन घटनाओं का खुलासा करने के दो-चार पुलिसकर्मी नहीं दर्जनों भर मुस्तैदी दिखाते हुए गहनता से छानबीन करने का दावा किया।
क्राइम ब्रांच से लेकर वरिष्ठ अधिकारी भी जांच-पड़ताल में जुटे, लेकिन नतीजा सिफर। शहरी क्षेत्र में हुई ये दो घटनाएं तो महज बानगी भर है और भी कई सनसनीखेज मामले में पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। गौर करें तो डंडहिया बाजार स्थित श्रीनाथजी ज्वैलर्स की दुकान में 13 अगस्त 2007 की रात दुकान बंद होने वाली थी। अंदर दुकान मालिक नीरज रस्तोगी व अन्य कर्मचारी सामान रख रहे थे कि इसी दौरान अचानक बाहर गोली चलने की आवाज सुनाई पड़ी। अगले क्षण घनी आबादी के बीच सकरी रोड पर स्थित इस दुकान के गेट पर खड़े लखीमपुर-खीरी निवासी राकेश को गोली मारने के बाद बदमाश भीतर दाखिल हो चुके थे जबकि अन्य गेट पर खड़े थे। बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की, जिससे दुकान मालिक नीरज रस्तोगी, कर्मचारी चंद्रिका प्रसाद घायल हो गए। इसके बाद बदमाश लाखों के जेवर लूट कर भाग निकले।
अब चलें विकासनगर क्षेत्र की ओर यहां पांच मार्च 2016 की रात बागपत जेल में मारे गए माफिया मुन्ना बजरंगी के साले पुष्प जीत सिंह और उसके साथी संजय मिश्र के सीने में गोलियों की बौछार कर बदमाश मौत की नींद सुलाने के बाद भाग निकले।
इन दोनों सनसनीखेज मामलों का खुलासा करने के लिए राजधानी लखनऊ की पुलिस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन आज तक बदमाशों की गर्दन दबोचना तो खूनी बदमाशों की हवा तक नहीं पहुंच सकी। खास बात यह है कि इन दोनों घटनाओं का राजफाश करने के लिए तत्कालीन आईजी जोन, डीआईजी, एसएसपी, एएसपी, डीएसपी भी मौके पर पहुंचकर गहनता से छानबीन की और जल्द से जल्द घटनाओं का खुलासा करने के लिए निर्देश दिए। अफसरों का फरमान जारी होते ही पुलिस सक्रिय हुई और अलग-अलग दिशाओं में पड़ताल की, लेकिन हार मानकर पुलिस शायद बैठ गई, नतीजतन आज तक कातिल हाथ नहीं आ सके।
