- SIR की सूची से गायब पत्रकार शेखर पंडित को नहीं मिल पा रही पहचान
- घर में मां, पत्नी का सूची में नाम, शेखर हुए गायब
नया लुक संवाददाता
लखनऊ। ‘अरे दीवानों मुझे पहचानों कहां से आया मैं हूं कौन’ ये डायलॉग भले ही अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म डॉन का है, लेकिन आज के तारीख में उत्तर प्रदेश के मान्यता प्राप्त पत्रकार और युवाओं की आवाज बन चुके शेखर पंडित पर सटीक बैठती है। उनका नाम मतदाता सूची से गायब है, वो जहां जहां पूछ रहे हैं कोई सटीक जवाब नहीं दे रहा है। सवाल उठता है कि जब राजधानी लखनऊ के पूरब विधान सभा के शेखर का कोई पुरसाहाल नहीं है तो सुदूर देहात में बसे गांवों का क्या हश्र होगा।
उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) इस बार कुछ ऐसा है कि पर्चियां तो घर-घर पहुँच रही हैं, पर कुछ घरों में मतदाता खुद पहुंच से बाहर पाए जा रहे हैं। राजधानी लखनऊ में संजय गांधी पुरम, विधानसभा क्षेत्र 173-लखनऊ ईस्ट के मान्यता प्राप्त पत्रकार शेखर पंडित इसका ताज़ा उदाहरण हैं। BLO घर आया, पर्चियां आईं, लेकिन शेखर पंडित की पर्ची नहीं आईं। परिवार में पिता और पत्नी मतदाता है। पड़ताल हुई तो खुलासा हुआ कि शेखर पंडित का नाम Main Electoral Roll से ही डिलीट कर दिया गया है। शेखर पंडित की मतदाता सूची से नाम हट जाने का मामला चुनाव व्यवस्था के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की हकीकत सामने रखता है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा जहां SIR को लेकर लगातार यह दावा कर रहे हैं कि प्रदेश भर में BLO मतदाता सूची संशोधन कार्य को गंभीरता, पारदर्शिता और तेज गति से पूरा कर रहे हैं—वहीं राजधानी में ही इस दावे की सच्चाई उलट दिखाई दे रही है।
मुख्य रोल से पंडित का नाम डिलीट
शेखर पंडित के परिवार के तीन सदस्य मतदाता हैं। उपलब्ध सूची और SIR स्लिप के अनुसार— पिता का नाम सूची में मौजूद है। पत्नी का नाम भी सूची में मौजूद है स्वयं शेखर पंडित का नाम मुख्य रोल से डिलीट कर दिया गया है BLO ने SIR पर्ची नहीं दी है। जब पत्रकार ने जानकारी करने का प्रयास किया तो पता चला कि उनका नाम ही Main Electoral Roll से हटाया जा चुका है, जबकि कोई नोटिस, कारण या सत्यापन संबंधी जानकारी उन्हें नहीं दी गई।

राजधानी में ये हाल, तो गांव–कस्बों में हालात की कल्पना मुश्किल
मतदाता अपने अधिकार और लोकतंत्र की मुख्य रीढ़ हैं—लेकिन यदि राजधानी में एक शिक्षित, मान्यता प्राप्त पत्रकार की जानकारी बिना उनका नाम हटाया जा रहा है, तो सवाल स्वतः उठते हैं कि— जो पढ़े–लिखे और सिस्टम से जुड़े लोगों की पर्ची नहीं पहुंचे, उनका नाम हट सकता है, तो ग्रामीण और अशिक्षित मतदाताओं का क्या हाल होगा? SIR का मकसद नए मतदाताओं को जोड़ना और पुरानी अनियमितताओं को सुधारे जाने का था, परंतु यह मामला बताता है कि लापरवाही और डेटा इंट्री त्रुटियों ने उलटे वैध मतदाताओं को ही सूची से बाहर कर देना शुरू कर दिया है।
आयोग का दावा मजबूत, जमीन पर निष्पादन कमजोर
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा था कि पूरा राज्य मतदाता सूची पुनरीक्षण के लिए सक्रिय है, BLO घर–घर जाकर अपडेट कर रहे हैं, लेकिन यह घटना उनके दावे पर सीधा सवाल खड़ा करती है। लखनऊ जैसे प्रशासनिक राजधानी क्षेत्र में ही यदि SIR की पर्ची नहीं पहुँच रही, नाम कट रहे हैं, तो प्रक्रिया की विश्वसनीयता कैसे सुनिश्चित होगी?
लोकतांत्रिक अधिकार से खिलवाड़
मतदाता सूची से नाम हट जाना किसी व्यक्ति के मताधिकार पर सीधा प्रहार है। एक पत्रकार का नाम सूची से हट जाना सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि चुनाव व्यवस्था पर विश्वास को कमजोर करने वाला मामला है। आयोग को इस प्रकार की घटनाओं की जांच कर जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। यह घटना बताती है कि सिस्टम में सुधार के साथ मॉनिटरिंग मज़बूत होना जरूरी है, अन्यथा 2027 चुनावों में हज़ारों मतदाता मतदान से वंचित हो सकते हैं।
