राजेन्द्र गुप्ता
मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा सनातन धर्म में सर्वोत्तम पूर्णिमा मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में स्वयं कहा है – “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”। इसी पावन तिथि से शुरू होने वाला 32 पूर्णिमाओं का अनुष्ठान “बत्तीसी पूर्णिमा व्रत” कहलाता है। इस वर्ष यह शुभारंभ 4 दिसंबर 2025 को हो रहा है।
बत्तीसी पूर्णिमा व्रत का अर्थ
यह एक संकल्पित व्रत है जो अगहन पूर्णिमा से शुरू कर लगातार 32 पूर्णिमाओं तक किया जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा का पुण्य 32 गुना हो जाता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा कहते हैं। यह व्रत धन, वैभव, संतान, विवाह योग, स्वास्थ्य और अंत में मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है।
व्रत की आसान विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- घर के मंदिर में श्रीविष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती व चंद्रदेव की पूजा करें।
- पीले फूल, मौसमी फल, खीर, तुलसी दल, घी का दीप, धूप-दूप अर्पित करें।
- “ॐ नमो नारायणाय” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र 11, 21 या 108 बार जपें।
- पूर्णिमा व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
- शाम को चंद्रमा को दूध-चावल मिश्रित जल से अर्घ्य दें।
- दिन भर निर्जला या फलाहार रहें। 32वीं पूर्णिमा पर हवन, ब्राह्मण भोजन और दान-दक्षिणा के साथ उद्यापन करें।
इस व्रत के चमत्कारी लाभ
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत सभी प्रकार के पितृदोष, ग्रहदोष, कालसर्प दोष नष्ट करता है। आर्थिक संकट दूर होते हैं, माता लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं। कन्या के विवाह में बाधा, गृहस्थी में कलह, संतान प्राप्ति में रुकावट सब दूर होती है। व्यापार-नौकरी में उन्नति और अंत में वैकुंठ प्राप्ति का वरदान मिलता है। इस मार्गशीर्ष पूर्णिमा से बत्तीसी व्रत का संकल्प लें और जीवन को पुण्य, सुख और मोक्ष से भर लें।
