उमेश चन्द्र त्रिपाठी
काठमांडू। नेपाल में चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में संशय बढ़ता जा रहा है। अंतरिम सरकार की प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने शपथ ग्रहण के फौरन बाद छः महीने भीतर चुनाव कराकर सत्ता नई सरकार के हवाले करने का वादा किया था लेकिन जिस तरह प्रशासनिक हलकों में फेरबदल और राजदूतों को वापस बुलाने में तेजी दिख रही है उस रफ्तार में चुनाव को लेकर सरकार की तैयारी नहीं दिख रही। बता दें कि नेपाल की अंतरिम सरकार ने विभिन्न देशों में राजनीतिक आधार पर नियुक्त 11 राजदूतों को वापस बुलाने का निर्णय लिया है। एमाले और नेपाली कांग्रेस ने विदेशों में तैनात नेपाली राजदूतों की थोक में वापस बुलाने के अंतरिम सरकार के फैसले को अनुचित करार देते हुए कहा कि इससे हमारे विदेश नीति का संतुलन गड़बड़ाएगा ही नेपाल की साख पर भी सवाल खड़ा होगा।
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वहीं सूचना एवं प्रसारण मंत्री जगदीश खरेल का कहना है कि सरकार ने यह कदम कूटनीतिक संतुलन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उठाया है। नेपाल सरकार ने जिन 11 देशों के राजदूतों को वापस बुलाने का फरमान जारी किया है उसमें भारत का नाम नहीं है। इसे लेकर नेपाल के राजनीतिक गलियारों में अलग तरह की चर्चा है। नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रकाश शरण महत ने कहा है कि अंतरिम सरकार द्वारा विभिन्न देशों में कार्यरत नेपाली राजदूतों को बार-बार वापस बुलाए जाने से नेपाल के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है।
कांग्रेस के केन्द्रीय समिति की बैठक के बाद सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए महत ने कहा सरकार लगातार अलग-अलग देशों से राजदूतों को वापस बुला रही है। इस तरह की जल्दबाजी और अस्थिर नीति से न केवल कूटनीतिक साख कमजोर होती है, बल्कि हमारे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने अंतरिम सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह अपनी सारी शक्ति और ऊर्जा आगामी निर्वाचन की तैयारी में लगाने के बजाय राजनीतिक प्रतिशोध में उलझी हुई है। महत के अनुसार, देश में शान्ति और सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करना सरकार की पहली जिम्मेदारी है, लेकिन सरकार इस दिशा में गम्भीर दिखाई नहीं देती। उन्होंने कहा कि केवल निर्वाचन आयोग की कार्य तालिका जारी कर देने से चुनाव सम्भव नहीं होगा, इसके लिए शान्ति पूर्ण और सुरक्षित वातावरण बनाना आवश्यक है। एमाले ने अंतरिम सरकार के इस फैसले पर हैरानी जताते हुए कहा कि इससे सरकार के छः महीने में चुनाव कराने के उसके दावे पर संदेह होता है।
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एमाले के निवर्तमान सांसद मंगल प्रसाद गुप्ता ने कहा कि इससे राजदूतों की स्थिति फुटबॉल जैसी हो जाएगी और उनमें अनिश्चितता का भाव पैदा होगा। उन्होंने कहा कि छः महीने में चुनाव कराने के सरकार के वादे के अनुरूप अब समय सीमा घट कर चार ही महीने ही रह गए। इस दौरान सरकार का प्रशासन और राजदूतों में भारी फेरबदल करने की तैयारी संदेहास्पद है। इससे अंतरिम सरकार के अपने वादे के मुताबिक तय समय सीमा में चुनाव कराने में संदेह है और यदि चुनाव हो भी जाए तो क्या गारंटी है कि संसद का विघटन कर अंतरिम सरकार का गठन करने वालों के मनमाफिक सरकार ही सत्ता रूढ़ हो? ऐसा नहीं हो पाया तो जाहिर है जिसकी सरकार बनेगी वह फिर अपने हिसाब से राजदूतों की नियुक्ति करेगा। मंगल प्रसाद गुप्ता ने कहा कि अंतरिम सरकार को समझना होगा कि चुनाव में आखिर राजदूतों की क्या भूमिका है? उनके तबादले से यह तो हो सकता है कि अंतरिम सरकार के कुछ ओहदेदारों के पसंद के राजदूतों की तैनाती हो जाय लेकिन वे कब तक? चुनाव बाद अंततः उनका तबादला तय है।
सूत्रों के अनुसार, जिन राजदूतों को वापस बुलाए जाने का फरमान जारी हुआ है उनमें चीन में नियुक्त कृष्ण प्रसाद ओली, अमेरिका में लोक दर्शन रेग्मी, ब्रिटेन में चंद्र कुमार घिमिरे, जापान में डॉ. दुर्गा बहादुर सुवेदी, जर्मनी में डॉ. शील रूपा खेती,इजराइल में डॉ. धन प्रसाद पंडित, मलेशिया में डॉ. नेत्र प्रसाद तिमिल्सना, कतर में रमेश चंद्र पौड़ेल, रूस में जंग बहादुर चौहान, सऊदी अरब में नरेश विक्रम ढकाल और स्पेन में सुनील ढकाल का नाम शामिल हैं। सरकार ने इन सभी राजदूतों को छह नवंबर तक स्वदेश लौटने का निर्देश दिया है। बताया गया है कि ये सभी राजदूत पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के शासनकाल में राजनीतिक सिफारिश पर नियुक्त किए गए थे। अंतरिम सरकार अपने इस कदम को विदेश नीति में नई दिशा और संतुलन की ओर एक संकेत बता रही है, जबकि विपक्ष ने इसे “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” करार दिया है।
