बिहार चुनावः जहां-जहां BJP और नीतीश मजबूत वहां वोटिंग पहले चरण में!

  • चालीस साल बाद हो रहे हैं दो चरणों में चुनाव
  • तीन महीनें पहले से ही एक्टिव है पक्ष और विपक्ष

पटना से आशीष द्विवेदी

पटना। बिहार में चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही चुनावी बिगुल बज गया है। विधानसभा चुनाव के लिए यहां छह नवंबर और 11 नवंबर होगी। बिहार में 40 साल बाद दो चरणों में चुनाव हो रहे हैं। तय कार्यक्रम के मुताबिक पहले चरण में में 121 और दूसरे चरण में 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। चुनावी कार्यक्रम पर नजर डाले तो साफ हो जाता है कि एऩडीए जहां-जहां मजबूत स्थिति में है वहां चुनाव पहले चरण में हो रहे हैं।

आचार संहिता लगने से लेकर पहले चरण की वोटिंग तक ठीक एक महीने का वक्त है। पिछले तीन चुनाव देखें तो बिहार में मगध और शाहाबाद में पहले वोटिंग होती थी। यानी पहले फेज में दक्षिण बिहार की ज्यादातर सीटें होती थीं। इस बार पहले फेज में उत्तर बिहार के तिरहुत, मिथिलांचल और कोसी इलाके की सीटें शामिल हैं। NDA के मजबूत समझ जाने वाले गढ़ दरभंगा, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया, गोपालगंज, मुंगेर और नालंदा में पहले चरण में वोट पड़ेगा। दरभंगा की 10 में से नौ , समस्तीपुर की 10 में से पाँच, नालंदा की सात में से छह , शेखपुरा की दो में से एक, मुंगेर की तीन में से दो, खगड़िया की चार में से दो, मधेपुरा की चार में से दो और सहरसा की चार में से तीन सीटें NDA के पास हैं।

पहले चरण की 121 सीटों में से 70 सीटें तिरहुत और मिथिलांचल की हैं। इनमें से NDA के पास 39 सीटें हैं और उसकी स्थिति मजबूत मानी जा रही है । मगध, अंग प्रदेश और शाहाबाद के ज्यादातर जिलों में दूसरे फेज में वोटिंग होगी। हालांकि अंग प्रदेश के मुंगेर, शाहाबाद के बक्सर, कोसी के सहरसा, मगध के नालंदा और शेखपुरा में पहले चरण में वोट डाले जाएंगे। तिरहुत में विधानसभा की 64 सीटें हैं। इनमें 36 सीटें NDA और 28 सीटें महागठबंधन के पास हैं। मिथिलांचल में आने वाली 46 सीटों में से 30 सीटें NDA और 15 सीटें महागठबंधन के पास हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो पहले चरण की 121 में से 59 सीटें NDA और61 सीटें महागठबंधन के पास हैं। वहीं, दूसरे चरण की 122 में से 66 NDA और 49 सीटें महागठबंधन के पास हैं। राजनैतिक विश्लेषको का मानना है कि ऐसे वोटिंग कार्यक्रम के बाद महागठबंधन के मजबूत इलाके दो हिस्सों में बंट गए हैं। मगध और शाहाबाद के अरवल, औरंगाबाद, गया, जहानाबाद और नवादा, कैमूर, रोहतास में दूसरे चरण में वोटिंग है। वहीं बक्सर, भोजपुर, नालंदा और पटना में पहले फेज में वोटिंग होगी। ऐसा ही सारण और तिरहुत में भी किया गया है।

बॉर्डर वाले जिलों में दूसरे चरण में और सेंट्रल बिहार के जिले पहले फेज में रखे गए हैं। सीमा से लगे वाले जिलों को दूसरे फेज में रखा गया है। बिहार के आठ जिले नेपाल से, तीन जिले पश्चिम बंगाल से और आठ जिले उत्तर प्रदेश से सटे हैं। यहां दूसरे फेज में एक साथ वोटिंग होगी। इससे पैरामिलिट्री फोर्सेज और इलेक्शन टीम को मूवमेंट में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। वे आसानी से दूसरे फेज वाली सीटों पर पहुंच सकेंगे।

विशेषज्ञ कहते हैं कि सीमांचल का इलाका पश्चिम बंगाल के साथ बांग्लादेश से भी सटा है। BJP यहां घुसपैठ को मुद्दा बनाती रही है वहीं झारखंड से सटे बिहार के जमुई, बांका और नवादा के इलाके नक्सली मूवमेंट की वजह से संवेदनशील माने जाते हैं। इसलिए यहां सुरक्षाबलों की जरूरत ज्यादा पड़ेगी।

देखा जाए तो चुनावी घोषणा सेस काफी पहले से ही सरकार और विपक्ष चुनावी मोड में है। नीतीश सरकार ने किसान, छात्र, युवा, महिला सभी को साधने की कोशिश की है। पहली बार उन्होंने मुफ्त वाली योजनाओं को भी लागू कर दिया है। वहीं विपक्ष से तेजस्वी यादव भी पिछले छह महीने से लगातार एक्टिव हैं। ये लगातार यात्रा और सभा कर रहे हैं। चुनाव की घोषणा वाले दिन ही पटना में मेट्रो की शुरुआत की गई है। इस बार प्रचार में कोई कमजोर नहीं दिख रहा है।

जानकरों का कहना है कि कम चरणों में चुनाव का फायदा बड़ी पार्टियों को मिलता है। उनके पास ज्यादा संसाधन होते हैं और वे संसाधनों के चलते इसका फायदा उठा लेते हैं। वहीं इस पैर्टन से वोटिंग से छोटी पार्टियों को नुकसान होता है। गत लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने अकेले 250 से ज्यादा सभाएं की थी। जिनके पास साधन हैं, उनके लिए दिक्कत नहीं है, चाहे जितने भी चरणों में वोटिंग हो। इतना हीं नहीं इससे बागियों को भी खेल बिगाड़ने के मौके कम मिलेते हैं। चुनाव में पार्टियों के लिए एक चुनौती अपने बागियों को संभालने की होती है। टिकट बंटवारे के बाद बहुत से नेता इधर-उधर होते हैं। ये चुनाव में नुकसान भी पहुंचाते हैं और दो चरणों में चुनाव होने से बागियों को कम मौका मिलेगा।

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