- बस्तर के न्यायाधिपति हैं पाटदेव
- टेंपल कमेटी से अनुमति लेकर अपने गांव ले जाते हैं ग्रामीण
- 700 साल से हो रही पाटदेव की पूजा
हेमंत कश्यप
जगदलपुर। शहर के मावली माता मंदिर परिसर में स्थापित पाटदेव वर्षों तक विभिन्न गांवों में जाकर ग्रामीणों की समस्याएं दूर करते रहे हैं। 20 फीट लंबे विशाल नाग के रूप में प्रकट हुए इस देव का प्रादुर्भाव नारायणपुर जिला के तिमनार गांव में हुआ था और यह देव बीते 700 वर्षों से बस्तर में पूजे जा रहे हैं। इन्हें बस्तर का न्यायाधिपति माना जाता है। आज भी बस्तर के ग्रामीण अपने गांव की समस्याओं के निराकरण के लिए पाटदेव को फैसला करने बुलाते हैं। पाटदेव ढाई सौ वर्षो से जगदलपुर में विराजित हैं।
पाटदेव के संदर्भ में बस्तर के जाने माने साहित्यकार लाला जगदलपुरी अपनी किताब बस्तर संस्कृति और इतिहास में लिखते हैं कि नारायणपुर जिला के तिमनार गांव में करीब 700 साल पहले साँझ होते ही पास की पहाड़ी से एक लम्बा, मोटा-तगड़ा, काला नाग उतर कर घरों में घुसता था। उसे देखते आदमी बुरी तरह से घबरा जाता था,परन्तु वह किसी को काटता नहीं था। गाँव के लोग किसी तरह प्राण बचाने की कोशिश में लगे रहते थे इसलिए नारायणपुर जा चीना-हल्बा से मिले चीना -हल्बा इन्हें एक माड़ेया-पुजारी के पास से गया। सारा हाल सुनने के बाद बताया कि यह एक देव का खेल है। वही देव, साँप बन कर डराता है। वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगा। तुम लोग उसका सम्मान करो। उस देव का एक चिन्ह बना डालो। इसे हम पाटदेव कहेगें। इनका नाम सुनते ही चोर-डाकू, भूत-प्रेत और रोग-शोक तुरन्त भाग खड़े होंगे। “पाटदेव” अन्न धन और पशु धन के सरंक्षक रहेगे। बताते चले कि नारायणपुर के माड़ इलाके में अभी भी करीब 20 फीट लंबे नाग दिखते हैं।

तिमनार से नारायणपुर पहुंचे
बाद में पाटदेव को तिमनार से नारायणपुर लाकर ‘माता-गुड़ी’ में स्थापित किया गया। चालुक्य राजा अन्नमदेव जब आए, तब
वह पाटदेव को नारायणपुर से अपने साथ ले गये थे। कालांतर में पाटदेव को जगदलपुर स्थित मावली मंदिर में स्थान दिया गया।
निर्णय करने गांव पहुंचते हैं,
पाटदेव विगत 250 वर्षों से जगदलपुर में हैं और लगातार लोगों की समस्याएं दूर करने ग्रामीण क्षेत्रों में जा रहे हैं। पहले पाटदेव के पुजारी इन्हें ले जाते थे। एक बार पाटदेव को गांव लाने पर काफी विवाद हुआ था। तब से टेंपल कमेटी से अनुमति लेकर पुलिस बल के साथ पाटदेव को फैसला करने गांव भेजा जा रहा है। इसके लिए कमेटी में बाकायदा शुल्क अदा करना पड़ता है।
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