उमेश चन्द्र त्रिपाठी
भैरहवा । नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध से शुरू हुआ छात्रों का आंदोलन अब व्यापक जनविद्रोह में बदल चुका है। आठ सितंबर को काठमांडू में प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में 19 छात्रों की मौत हुई, जिसके बाद देशभर में आंदोलन फैल गया। सरकारी दफ्तरों, गाड़ियों और यहां तक कि सिंहदरबार से लेकर संसद भवन तक में आगजनी और तोड़फोड़ हुई। अरबों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा और स्थिति बेकाबू होते ही तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
इस बीच नेपाल में अंतरिम सरकार का गठन हुआ और पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। फिलहाल नई सरकार अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर रही है। लेकिन राजनीतिक दल इस नियुक्ति को संवैधानिक रूप से गलत बता रहे हैं। नेपाली कांग्रेस, एमाले, माओवादी, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और जनमत पार्टी समेत आठ दलों ने एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर इसे खारिज करने की मांग की है और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि संसद को भंग करना समाधान नहीं है, बल्कि संसद से ही रास्ता निकाला जाना चाहिए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अब्दुल्ला खान का कहना है कि नेपाल लंबे समय से बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और खराब शासन से जूझ रहा है। यही कारण है कि युवाओं ने नया और डिजिटल नेपाल बनाने के लिए नेतृत्व अपने हाथों में लिया। उनका मानना है कि यह आंदोलन सत्ता परिवर्तन से कहीं अधिक व्यापक है।यह नेपाल की नई पीढ़ी की उस आकांक्षा का प्रतीक है, जिसमें वे भ्रष्ट व्यवस्था को खत्म कर एक बेहतर भविष्य गढ़ना चाहते हैं।
