उत्तर प्रदेश के सातवे चरण की बांसगांव लोकसभा का हाल

  • यहां सालों से लहरा रहा भगवा, क्या इस बार जीत का
    चौका लगा पाएंगे भाजपा के कमलेश पासवान?

यूपी के गोरखपुर जिले का दूसरा लोकसभा क्षेत्र है बांसगांव. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बांसगांव में प्रसिद्ध कुलदेवी का मंदिर हैं. यहां हर साल शारदीय नवरात्रि के नवमी के दिन बड़ा मेला लगता है जिसमें दुर्गा मां को खुश करने के लिए भक्त रक्त अर्पित करते हैं. सालों से चली आ रही इस परंपरा को लोग आज भी निभा रहे हैं. बांसगांव में भी गोरखधाम मंदिर और सीएम योगी आदित्यनाथ का प्रभाव है. राममंदिर आंदोलन के बाद बीजेपी यहां ज्यादातर बार जीत दर्ज करती रही है. 1991 से 2०19 के बीच एक उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और एक पूरे कार्यकाल के लिए कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज किया है. बांकी समय यहां बीजेपी का कब्जा रहा है. कमलेश पासवान यहां सांसद हैं. बीजेपी ने यहां ने इस बार भी कमलेश पासवान पर ही भरोसा जताया है और अपनी पहली सूची में ही उनका नाम घोषित किया है.
इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने वाले कमलेश पासवान शायद ऐसे अकेले सांसद हैं जिनपर बीजेपी ने चौथी बार विश्वास जताया है. बांसगांव में लगातार बीजेपी के जीत दर्ज करने की बड़ी वजह यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का इस सीट पर मजबूत प्रभाव है. योगी आदित्यनाथ की इस क्षेत्र में बड़ी लोकप्रियता है.
2०19 में डेढ़ लाख वोटों से बीजेपी की जीत
2०19 में बीजेपी के कमलेश पासवान ने यहां जीत दर्ज की है. कमलेश पासवान ने 1,53,468 वोटों से बीएसपी के सदल प्रसाद को शिकस्त दी थी. बीजेपी उम्मीदवार पासवान को 546,673 वोट मिले थे जबकि सदल पासवान को 3,93,2०5. पीएसपीएल के सुरेंद्र प्रसाद भारती तीसरे और निर्दलीय उम्मीदवार लालचंद प्रसाद चौथे स्थान पर रहे लेकिन इन दोनों को 14,०93 वोटों से भी कम वोट मिला और ये अपनी जमानत नहीं बचा पाए. इससे पहले 2०14 में भी कमलेस पासवान ने बीएसपी के ही सदल प्रसाद को 1,89,516 वोटों से शिकस्त दी थी. 2०14 में कांग्रेस पार्टी के संजय कुमार यहां तीसरे स्थान पर रहे थे.यहां हुए पिछले चीन चुनाव में बीजेपी का बहन मायावती की पार्टी बीएसपी के उम्मीदवार से ही मुकाबला रहा है.
राजनीतिक इतिहास
बांसगांव लोकसभा में शुरुआत में हुए पहले दो चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की. 1957 और 1962 के चुनाव में महादेव प्रसाद ने यहां जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के मोहलू प्रसाद ने जीत दर्ज की.1971 में कांग्रेस के राम सूरत प्रसाद. 1977 में जनता पार्टी के विशारद फिरंगी प्रसाद. इसके बाद फिर 198०, 1984 और 1989 में लगातार तीन बार कांग्रेस के महावीर प्रसाद ने जीत दर्ज की. 1991 में बीजेपी ने खाता खोला और राज नारायण पासी जीत दर्ज करने में कामयाब हुए. 1996 में यहां समाजवादी पार्टी की भी एंट्री हुई और सुभावती पासवान ने सपा के टिकट पर जीत दर्ज की.सुभावती पासवान यहां पति के बम धमाके में मौत के बाद मैदान में उतरी थी और सहानुभूति वोटों के सहारे जीत दर्ज करने में कामयाब हुई थी. बाद में उनके बेटे कमलेश पासवान बीजेपी की राजनीति करने लगे. 1998 और 1999 में बीजेपी के राज नारायण पासी ने यहां फिर जीत दर्ज की. 2००4 में यहां कांग्रेस पार्टी के महावीर प्रसाद एकबार फिर जीत दर्ज करने में कामयाब हुए. इसके बाद 2००9 से बीजेपी के कमलेश पासवान लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. बीजेपी ने जीत का चौका लगाने के लिए उन्हें मैदान में उतारा है.
सुरक्षित बांसगांव सीट पर सबसे ज्यादा एससी वोटर हैं. इसके बाद ओबीसी और फिर करीब 6 लाख सवर्ण वोटर हैं. मुस्लिम मतदाता भी यहां दो लाख से ज्यादा हैं. सबसे ज्यादा बार यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की. लेकिन पिछले तीन दशक से इस सीट पर बीजेपी का प्रभाव ज्यादा है.बांसगांव लोकसभा क्षेत्र में पुरुष वोटरों की संख्या 8,42,०42 तो वहीं महिला वोटरों की संख्या 7,16,०23 है.बीजेपी ने जीत का चौका लगाने के लिए एकबार फिर कमलेश पासवान को मैदान में उतारा है. इंडिया गठबंधन या बसपा ने अभी अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है.
लोकसभा चुनाव बाद जो भी हो परिणाम, बांसगांव में बनेगा इतिहास
भाजपा प्रत्याशी कमलेश पासवान इसी क्षेत्र से लगातार तीन बार से सांसद हैं। उनकी माता सुभावती पासवान 1996 में सपा के टिकट पर चुनाव जीत चुकी हैं। लंबे समय से प्रतिनिधित्व करने के कारण चुनाव प्रचार के दौरान कुछ लोगों के विरोध का सामना भी कमलेश को करना पड़ा है। मोदी योगी के नाम पर भाजपा प्रत्याशी को इस बार भी अपनी नइया पार लगने का भरोसा है।
तीसरे लोकसभा चुनाव (1962) से अस्तित्व में आयी गोरखपुर जिले की बांसगांव लोकसभा सीट शुरू से ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बसपा को छोड़कर यहां से भाजपा, कांग्रेस व सपा ने जीत का परचम लहराया है। 18वीं लोकसभा के चुनाव में यह सीट ऐेसे मोड़ पर खड़ी है, जहां चुनाव का परिणाम चाहे जो आए, एक इतिहास कायम करेगा।
यदि भाजपा के प्रत्याशी कमलेश पासवान जीते तो लगातार चार बार सांसद चुने जाने वाले पहले नेता बन जाएंगे। कांग्रेस के टिकट पर भाग्य आजमा रहे सदल प्रसाद को जनता का आशीर्वाद मिला तो तीन बार रनर रहने के बाद पहली बार जीत दर्ज करने वाले प्रत्याशी बन जाएंगे।
परिणाम बसपा के डा. रामसमुझ के पक्ष में रहा तो उन्हें गोरखपुर व बस्ती मंडल की एकमात्र सुरक्षित सीट पर बसपा का खाता खोलने का श्रेय मिलेगा। बांसगांव सुरक्षित सीट से दो प्रत्याशियों ने जीत की हैट-ट्रिक लगाने में कामयाबी पाई है। कांग्रेस के महावीर प्रसाद ने 198०, 1984 व 1989 के लोकसभा चुनावों में लगातार जीत हासिल की थी। सबसे अधिक चार बार सांसद रहने का रिकार्ड भी उनके नाम है।
2००4 में उन्होंने चौथी जीत हासिल की थी लेकिन लगातार चार जीत वह भी नहीं दर्ज कर पाए थे। दूसरी हैट-ट्रिक लगाने वाले नेता हैं भाजपा के कमलेश पासवान। कमलेश ने 2००9, 2०14 व 2०19 के चुनाव में जीत हासिल की है। इस बार फिर मैदान में हैं। अबकी भी जीत मिली तो महावीर प्रसाद के उपलब्धि की बराबरी तो कर ही लेंगे लेकिन लगातार चार जीत दर्ज करने का रिकार्ड भी बनाने में सफल रहेंगे।
बात कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद की करें तो उन्होंने बांसगांव में ही अपनी राजनीतिक जमीन तलाशी है। वह चौथी बार इस सीट से प्रत्याशी हैं। तीन चुनावों में उन्हें दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। 2००4, 2०14 व 2०19 में वह बसपा के टिकट पर मैदान में थे और तीनों ही बार रनर रहे। 2००9 का जब चुनाव हुआ तो वह प्रदेश की बसपा सरकार में मंत्री थे। इस बार उन्होंने पार्टी बदल दी है।
आइएनडीआइ गठबंधन के तहत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। अब तक कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं रहा है जो तीन चुनावों में रनर रहा हो। सदल को कामयाबी मिले या न मिले, रिकार्ड उनके नाम जरूर दर्ज होगा। बसपा के प्रत्याशी डा. रामसमुझ भी क्षेत्र में पसीना बहा रहे हैं। बसपा यहां पिछले चार चुनावों से दूसरे स्थान पर रही है लेकिन उसे जीत नहीं मिल सकी। इस बार यदि कामयाबी मिली तो इस सीट पर बसपा को पहली जीत मिलने का रिकार्ड बनेगा।
जीत के लिए सबके अपने समीकरण गोरखपुर
भाजपा प्रत्याशी कमलेश पासवान इसी क्षेत्र से लगातार तीन बार से सांसद हैं। उनकी माता सुभावती पासवान 1996 में सपा के टिकट पर चुनाव जीत चुकी हैं। लंबे समय से प्रतिनिधित्व करने के कारण चुनाव प्रचार के दौरान कुछ लोगों के विरोध का सामना भी कमलेश को करना पड़ा है।
मोदी, योगी के नाम पर भाजपा प्रत्याशी को इस बार भी अपनी नइया पार लगने का भरोसा है। उनकी बिरादरी के अच्छे-खासे मतदाता हैं। साथ ही भाजपा के नाते सवर्ण वोटों पर भी अपना दावा कर रहे हैं। उनके खाते में गिनाने को केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियां भी हैं।
इसके विपरीत सदल प्रसाद के समर्थक उनकी सरल छवि, तीन बार की हार के बाद सहानुभूति की उम्मीद व लंबे समय तक बसपा में रहने के कारण दलित मतों में सेंधमारी के बूते जीत का दावा कर रहे हैं। सपा के साथ होने के कारण यादव व मुस्लिम मत मिलने का भी भरोसा है। बसपा के डा. रामसमुझ बसपा के मूल मतदाताओं पर भरोसा जता रहे हैं। इसके साथ ही बसपा कार्यकताã अन्य वर्ग के मतदाताओं का समर्थन मिलने का भी दावा कर रहे हैं।

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