कविवर कामेश
आजाद नागरिक है भारत के, आजादी है संविधान तक।
खुद की सोच, भाव, मर्यादा, इन से मुक्त नहीं अब तक।।
क्या है आजादी मुक्ति क्या है,
स्वच्छंद भ्रमण करना क्या है,,
क्या है मनमानी निज भावों की,
खुद से रमण करना क्या है,,
क्या है बंधन की मुक्ति और, बेड़ी का वरण करना क्या है,,
क्या है जीवन की संगीनियां, और उदर भरण करना क्या है,,
आजादी पूछो पंछी से उड़ते हैं जो आसमान तक।
आजाद नागरिक हैं भारत के आजादी है संविधान तक।।
गुलाम देश था कभी मगर,थी नहीं गुलामी जनमानस में,,
आजाद भगत और राजगुरु थे घूम रहे जनमानस में,,
हाथों में लिए मशाल क्रांति की लौ फूंक रहे जनमानस में,,
वंदे मातरम का नारा थे घोल रहे जनमानस में,,
आजादी क्या है पूछो उन आजादी के परवानों से,,
कुर्बान किया था जिसने सब कुछ दांव रखा निज प्राण तक।
आजाद नागरिक हैं भारत के आजादी है संविधान तक।।
आजादी क्या होती है पूछो राणा की भाला से,
स्वतंत्र लेखनी क्या होती है पूछो पंत निराला से,,
निज गौरव की लाज बचाना सीखो लक्ष्मीबाई मर्दाना से,
संस्कृतियों का सम्मान बढ़ाना सीखो नरेंद्र मतवाला से,,
मन विचार वाणी इनका स्वतंत्र रहा सम्मान तक।
आजाद नागरिक हैं भारत के आजादी है संविधान तक।।