बेंगलुरू। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से उस बच्चे को मान्यता देने का गुरुवार को निर्देश दिया, जिसे भारतीय दंपती ने अफ्रीकी देश युगांडा से गोद लिया है। युगांडा ने हेग एडॉप्शन कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने इस मामले में जोर देते हुए कहा कि किसी भारतीय नागरिक के बच्चे के अधिकारों को तकनीकी कारणों से नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि भले ही गोद लेने का कार्य हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम के तहत नहीं हुआ है, और ऐसे देश से हुआ है जो हेग कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, लेकिन दत्तक ग्रहण तो हुआ है। ऐसे में किसी भारतीय नागरिक के गोद लिऐ गये बच्चे के अधिकारों को छोड़ा नहीं जा सकता है। इस मामले में एक भारतीय दम्पति शामिल था जिसने युगांडा में रहते हुए एक बच्चे को गोद लिया था और बाद में केन्या चला गया। युगांडा की अदालत ने उन्हें बच्चे का दत्तक माता-पिता घोषित कर दिया था।
भारत में हालांकि, गोद लेने को औपचारिक रूप देने के लिए, उन्होंने केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) से संपर्क किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसने उन्हें राहत पाने के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख करने के लिए प्रेरित किया। याचिकाकर्ताओं के वकील समीर शर्मा ने तर्क दिया कि हालांकि युगांडा हेग एडॉप्शन कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं था, लेकिन भारतीय नियमों और किशोर न्याय अधिनियम को गोद लेने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाना चाहिए क्योंकि भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है। डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को आश्वासन दिया कि सरकार याचिकाकर्ताओं और बच्चे के अधिकारों को मान्यता देती है, और गोद लेने को वैध बनाने के लिए आवश्यक दस्तावेज जारी करेगी।
अदालत ने कहा कि हालांकि किशोर न्याय अधिनियम रिश्तेदारों के लिए अंतर-देशीय गोद लेने को कवर करता है, लेकिन इस मामले जैसी स्थितियों को संबोधित नहीं करता है। यह भी देखा गया कि ऐसे गोद लेने को समायोजित करने के लिए गोद लेने से संबंधित नियमों में सुधार की आवश्यकता है। नतीजतन, अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह गोद लेने की वैधता को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ताओं को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करे।(वार्ता)