सात दिनों से चल रही थी कथा, भगवान की होली से हुई विदा

  • भक्ति के रंग से सराबोर हुए लोग, कल हवन-पूजन और भंडारा
  • राजधानी के मानस गार्डन में चल रही सात दिवसीय श्रीमदभागवत कथा का हुआ समापन
आशीष द्विवेदी

लखनऊ। होली का पर्व हो और राधा-रानी का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं है। ऊपर से यदि बरसाने वाली राधे अपने कन्हैया के साथ सात दिनों तक कहीं विराजमान हो जाए तो वहां होली की छटा अलग ही दिखाई देगी। कुछ ऐसा ही नजारा राजधानी लखनऊ स्थित मानस गार्डन कॉलोनी में भी दिखा। जहां पिछले 16 मार्च से शुरू हुई कथा को आज विराम मिला, वो भी तब जब फूलों की होली में हजारों लोग सराबोर हो गए। कल यानी शनिवार को हवन-पूजन और विशाल भंडारे के साथ श्रीमदभागवत कथा सम्पन्न हो जाएगी।

ज्ञानयज्ञ सप्ताह के अंतिम दिन श्रीमद्भागवत का रसपान पाने के लिए भक्तों का जनसैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा। श्रीधाम वृंदावन से पधारे कथा व्यास शिवांक जी महाराज ने कई कथाओं का श्रवण भक्तों को कराया, जिसमें प्रभु कृष्ण की हजारों शादियों का प्रसंग, सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथाएं भी शामिल थीं।

भगवान कृष्ण के बालसखा सुदामा का चरित्र व राजा परीक्षित के मोक्ष की कथा सुनकर उपस्थित श्रोता भक्ति सरिता में डूब गए। शिवांक महाराज के मुंह से कथा में जैसे ही प्रसंग आया कि द्वारपाल ने द्वारिकाधीश से जाकर कहा, प्रभु द्वार पर एक ब्राह्मण आया है और आपसे मिलने की रट लगा रहा है, वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। इतना सुनते ही जगत के मालिक द्वारिकाधीश नंगे पांव अपने मित्र की अगुआनी करने राजमहल द्वार तक पहुंच गए। उन्होंने बताया कि सुदामा चरित्र के माध्यम से भगवान ने खुद भक्तों के सामने दोस्ती की बड़ी मिसाल पेश की है।

इसके बाद उन्होंने परीक्षित मोक्ष की कथा सुनाई। कथा में बताया कि पांडवों के एक मात्र उत्तराधिकारी उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित आखेट करते समीका महर्षि के आश्रम में कैसे पहुंचे? कैसे महर्षि राजा के पहुंचने से बेखबर रहे? और क्रोध के वश में आकर राजा ने ऐसा दुस्साहस कैसे किया? उन्होंने समझाया कि कलयुग के प्रभाव के कारण राजा ने पास पड़े मरे हुए सर्प को महर्षि के गले डाल दिया और चले गए। महर्षि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने यह दृश्य देखा और राजा को सातवें दिन सांप के काटने से मृत्यु होने का शाप दे दिया।

ऋषि के शाप को पूरा करने के लिए तक्षक नाग ब्राह्मण का छद्म वेश धारण कर राजा परिक्षित के पास पहुंचकर उन्हें डंस लेता है और उनकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करने के कारण राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त होता है। पिता की मृत्यु देखकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय क्रोधित होकर सर्प नष्ट हेतु आहुतियां यज्ञ में डलवाना शुरू कर देते हैं, जिनके प्रभाव से संसार के सभी सर्प यज्ञ कुंडों में भस्म होना शुरू हो जाते हैं। तब देवता सहित सभी ऋषि मुनि राजा जनमेजय को समझाते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं।

शिवांक महाराज बताते हैं कि कथा के श्रवण करने से जन्मों-जन्म के पापों का नाश होता है और श्री हरि भगवान विष्णु के लोक की प्राप्ति होती है। इसलिए संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए, तभी उसका कल्याण संभव है। हालांकि माता-पिता के संस्कार ही संतान में आते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य को सदा अच्छे कर्म ही करना चाहिए।

मोक्ष का शाश्वत साधन है श्रीमद भागवत। जिसके श्रवण मात्र से सात दिन में सम्राट परीक्षित को मोक्ष प्राप्त हो गया। इसलिए ब्रह्मा जी ने अपने लोक में एक तराजू लगाई। इसके एक पलडे़ में सारे धर्म और दूसरे में श्रीमद भागवत को रखा तो भागवत का ही पलड़ा भारी रहा। अर्थात भागवत सारे वेद, पुराण व शास्त्रों का मुकुट है।

आखिरी दिन की कथा का समापन मुख्य यजमान शिव नारायण जायसवाल व उर्मिला देवी द्वारा व्यासपीठ एवं भागवत पुराण की आरती पूजन के साथ के हुआ। कथा का श्रवण डॉ. ज्योति, डॉ. विजित, पार्थ, सृजय, उपभोक्ता फोरम के जज अमरजीत त्रिपाठी, एडीजे चंद्रमोहन चतुर्वेदी, विक्रम सिंह, अशोक पांडेय, आलोक सक्सेना, अवनीश तिवारी, सुभाष चंद्र, अजय वर्मा, टीएन चौबे, डॉ. राजेश सिंह, गोविंद पांडेय, सुधा मिश्रा, श्वेता सिंह, बबिता चतुर्वेदी, डॉ. विभा सिंह, गरिमा सिंह, प्रेमा श्रीवास्तव, प्रियम्बदा पांडेय, अर्चना सिंह, उर्वशी चतुर्वेदी, डॉ. केएल मिश्र, रवींद्र प्रजापति,  शुभम त्रिपाठी, एचएस मिश्र, एसके वाजपेयी, ललित कुमार, केके सिंह, एसबी सिंह, घनश्याम तिवारी, राजेंद्र गुप्ता, एनएस चौहान, विजय शंकर सिंह, केके शर्मा, हर्ष उपाध्याय, दीपक यादव और कुंवरजी श्रीवास्तव आदि विशेष रूप से उपस्थित रहे।

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