- खाद्य जांच लेबोरेटरी में मिलावट की पुष्टि: सौ ग्राम पेड़ा में 15 परसेंट मिट्टी,
रंजन कुमार सिंह
रांची। पूरे साल प्रसाद के तौर पर पारंपरिक रूप से मिलने या दिया जाने वाला चूड़ा और पेड़ा भी अपने खास स्वाद के कारण भक्तों को आकर्षित करता है। देवघर बाबा मंदिर में भोलेनाथ का दर्शन पूजन करने वाले विश्व भर के सभी भक्त इन दो वस्तुओं को बतौर प्रसाद खरीदते ही हैं और परिजनों परिचितों में बांटते भी हैं। लेकिन अब जा कर पता चला है कि इस खास स्वाद के पीछे नाचीज़ मिट्टी का योगदान है। अब यह मिट्टी कौन सी किस प्रकार की है, इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है। यह सड़क किनारे फुटपाथ की मिट्टी है, दीमक के बांबी की है या खेत की है, यह खुलासा हो सकता है अगली जांच में हो। देवघर के प्रसिद्ध श्रावणी मेले में इस साल प्रसाद के रूप में बिकने वाले पेड़ों की जांच में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। रांची स्थित राज्य खाद्य जांच प्रयोगशाला की रिपोर्ट में पुष्टि हुई है कि जब्त किए गए पेड़ा के सैंपल में मिट्टी की मिलावट है। खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने जुलाई में मेले के दौरान एक बड़े अभियान के तहत दर्जनों दुकानों पर छापेमारी की थी और कुल 70 सैंपल रांची की लैब में जांच के लिए भेजे गए थे।
राज्य खाद्य विश्लेषक और कोऑर्डिनेटर चतुर्भुज मीणा ने बताया कि यह पहली बार है जब श्रावणी मेले के पेड़ों में मिट्टी पाई गई है। पहले की जांचों में ज्यादातर मामलों में सिंथेटिक खोवा के मिलावट की खबरें ही आती रही थीं। इस बार 100 ग्राम के एक पेड़ा सैंपल में 15 प्रतिशत तक मिट्टी मिली है। रिपोर्ट विभाग को सौंप दी गई है और अब यह तय किया जाएगा कि दोषी दुकानदारों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि मिट्टी मिलावट से स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है और पेट से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जांच प्रक्रिया में लगभग पांच महीने का समय लगा। जुलाई में जब्त किए गए सैंपल अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में लैब पहुंचे और नवंबर में पूरी जांच संपन्न हुई। इस दौरान यह स्पष्ट हुआ कि मिट्टी की मिलावट जानबूझकर की गई थी।
हर साल श्रावणी मेले से पहले मिलावटी खोवा तैयार करने का एक पूरा जाल सक्रिय हो जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश के बड़े व्यापारी पाउडर दूध और लोथ की बड़ी खेप मंगाते हैं। पाउडर दूध और लोथ को मिलाकर मशीन के जरिए खोवा तैयार किया जाता है। लो ग्रेड दूध के एक किलो पाउडर से दो से ढाई किलो खोवा तैयार किया जा सकता है क्योंकि इसमें लोथ को भूनकर मिलाया जाता है। जैसे-जैसे मेला करीब आता है, यही खोवा चीनी के साथ मिलाकर पेड़ा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। खाद्य सुरक्षा कानून के अनुसार पेड़ा शुद्ध देशी खोवा और चीनी से ही तैयार होना चाहिए, लेकिन मिलावट के कारण दुकानदार प्रति किलो 100 से 150 रुपये तक की बचत कर लेते हैं। यही वजह है कि मेले में हर साल मिलावटी खोवा और पेड़े की शिकायतें आती हैं। इस बार मिट्टी की मिलावट ने न केवल विभाग की चिंता बढ़ाई है, बल्कि आम लोगों में भी भय पैदा किया है।
तिरुपति बाजाली मंदिर के प्रसाद में मिलावटखोरी का हुआ था खुलासा
पिछले साल तिरुपति बाजाली मंदिर के प्रसिद्ध लड्डू प्रसाद में मवेशियों की चर्बी और मछली का तेल प्रयोग किए जाने का खुलासा हुआ था। जांच में पता चला था कि मशहूर कंपनी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (KMF) जो ‘नंदिनी’ नाम से घी बनाती है, उसी की तरफ से मंदिर को घी सप्लाई की जाती थी। जहां तक देवघर का सवाल है तो यहां किसी खास कंपनी की तरफ से खोवा की सप्लाई नहीं होती है।
