- भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा की संवाहक है भोजपुरी : मनोज तिवारी
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह बहुत अच्छी लगती है भोजपुरी
- भोजपुरी की प्राचीनता और वैश्विकता अद्भुत और प्रामाणिक : अजीत दुबे
- भोजपुरी के संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य गंभीर हों : सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी
- लोक की विरासत और संवेदना की संवाहक है भोजपुरी: आचार्य संजय
विशेष संवाददाता
देवरिया। भोजपुरी भाषा के हृदय स्थल देवरिया की धरती पर विश्व भोजपुरी सम्मेलन के संस्कृति पर्व 2025 का भव्य शुभारंभ हो गया। राजकीय इंटर कॉलेज देवरिया के विशाल प्रांगण में हजारों भोजपुरी प्रेमियों के बीच इस दो दिवसीय आयोजन की शुरुआत प्रख्यात भोजपुरी अभिनेता, गायक और दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी मृदुल, विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत दुबे, इसके संयोजक और प्रदेश अध्यक्ष सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी और अनेक प्रख्यात मनीषियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुई। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने अपने गंभीर, सारगर्भित और विविध आयामी उद्बोधन से सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। मनोज तिवारी ने अपने उदघाटन उद्बोधन में कहा कि भारत के यशस्वी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भोजपुरी भाषा और संस्कृति से बहुत गहरा लगाव है। इसलिए भोजपुरी को बहुत जल्दी संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिल सकता है। तिवारी ने कहा कि प्रधान मंत्री स्वयं भोजपुरी के हृदय स्थल काशी के प्रतिनिधि हैं। वह अनेक बार भोजपुरी में ही जनता को संबोधित कर चुके हैं। केंद्र सरकार के शीर्ष नेतृत्व को यह लोक भाषा बहुत पसंद है। इसीलिए भाजपा भोजपुरी संस्कृति के प्रतिनिधियों को बहुत महत्व देती है। अभी हाल ही संपन्न हुए बिहार के चुनाव इस बात के साक्षात प्रमाण हैं। भोजपुरी की महत्ता के कारण ही नेतृत्व ने मुझे भी अत्यधिक सम्मान और महत्व देकर भोजपुरी को ही आगे बढ़ाया है। आज सिद्धार्थ के संयोजन में देवरिया का यह भोजपुरी संस्कृति पर्व भारतीय लोक भाषाओं के उन्नयन के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा।

तिवारी ने अपने संबोधन में पंडित विद्यानिवास मिश्र और डॉ अरुणेश नीरन को कई बार याद किया। समारोह को संबोधित करते हुए विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत दुबे ने कहा कि देवरिया में आज से तीस वर्ष पूर्व जो बीज पंडित विद्यानिवास मिश्र एवं डॉ अरुणेश नीरन जी ने सेतु की सन्निधि में रोपित किया था, आज वह विराट स्वरूप में दिख रहा है। इस विशाल अधिवेशन को यह स्वरूप देने वाले संयोजक सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी कोटि कोटि बधाई के पात्र हैं। भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में स्थापित करने के लिए चलाए जा रहे इस आंदोलन में मनोज तिवारी की आज प्रकट हुई भावना ने यह विश्वास दिलाया है कि 30 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली इस लोक भाषा को अब उसका वास्तविक स्थान मिलेगा।
संस्कृति पर्व के संस्थापक संपादक आचार्य संजय तिवारी ने कहा कि भोजपुरी केवल एक लोकभाषा ही नहीं है बल्कि भारतीय ज्ञान साहित्य की लोक संप्रेषण शक्ति है। इसकी लोक चेतना से भारत की स्वाधीनता का पूरा इतिहास भरा पड़ा है। भोजपुरी वस्तुतः वेद की लोकवाणी है। यहां हमें यह ध्यान देना चाहिए कि अपनी इस मातृभाषा का सम्मान स्वयं से करना शुरू करें। इसको सबसे सटीक रूप में मराठा संस्कृति से सीखा जा सकता है। प्रत्येक मराठी आपस में केवल मराठी में ही अपनी बात करते हैं, चाहे वे जहां भी हों। भोजपुरी के साथ ऐसा नहीं है। दो भोजपुरी भाषी लोग जहां भी मिलते हैं, वही के अनुसार भाषा का इस्तेमाल करते हैं। होना यह चाहिए कि यदि हम भोजपुरी भाषी चाहे जहां हों, केवल अपनी मातृभाषा में ही संवाद करें। अपने संबोधन में देवरिया के नगर विधायक शलभ मणि त्रिपाठी ने भोजपुरी की महत्ता पर प्रकाश डाला। भोजपुरी संस्कृति पर्व, देवरिया के संयोजक सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी ने अपने आधार एवं स्वागत वक्तव्य में कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति की देवारण्य की पावन भूमि पर आप सभी की गरिमामय उपस्थिति से अभिभूत हूं। आज से 30 वर्ष पूर्व इसी भूमि पर इसी प्रांगण में विश्व भोजपुरी सम्मेलन की नींव रखी गई थी। संस्था के शिल्पकार अरुणेश नीरन को समर्पित इस अधिवेशन का आयोजन क़रीब तीस साल बाद देवरिया के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान पर किया जा रहा है। तीन दशक बीत गए। विश्व भोजपुरी सम्मेलन का यह भाषा आंदोलन अपनी गति के साथ चल रहा है और अब एक ऐसे मुकाम की ओर है जिसमें भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची की भाषाओं में इसे शामिल होने में कुछ दूरी शेष रह गई है।
देवरिया में इस आयोजन का गंभीर अभिप्राय है। आप सभी को यह विदित है कि विगत वर्षों में भोजपुरी भाषा के राजनीतिक भावनात्मक उपयोग की कोशिश अनेक राष्ट्रीय नेताओं से लेकर राष्ट्रीय राजनीति के पुरोधाओं ने की है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री युगपुरुष नरेंद्र मोदी जी भोजपुरी के गढ़ से ही चुन कर आते हैं। काशी से लेकर बिहार तक माननीय प्रधानमंत्री के अनेक भाषण भोजपुरी से ही शुरू होते रहे हैं। इससे पहले भी कई राजपुरूषों ने यह प्रयोग किया। भोजपुरी भाषी भोली जनता का भावनात्मक जुड़ाव सभी को मिला लेकिन अभी तक इतनी मीठी भाषा को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिल सका। यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भोजपुरी बहुत प्रिय है। इसके बारे में आदरणीय मनोज तिवारी जी मुझे ज्यादा बेहतर अनुभव रखते हैं।
जब हम भोजपुरी की बात कर रहे हैं और आज विश्व भोजपुरी सम्मेलन की स्थापना की भूमि पर 30 वर्षों के बाद यह जुटान हुई है तो बहुत सी बातें कहने को जबान तक आती है। भोजपुरी कोई सामान्य बोली या संकेतांक भर नहीं है। देव भाषा संस्कृत की यह लोकभाषा है । वैश्विक परिदृश्य में संवेदना और लोक से जोड़ेगा आज का यह विश्व भोजपुरी सम्मेलन का अधिवेशन। विराट साहित्य पुरुष पंडित विद्यानिवास मिश्र के संरक्षण में स्थापित विश्व भोजपुरी सम्मेलन की स्थापना भूमि देवरिया में विश्व भोजपुरी सम्मेलन, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में संस्कृति पर्व के रूप में विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अधिवेशन का यह उद्घाटन सत्र है।

राजकीय इंटर कॉलेज देवरिया के इस प्रांगण में इस आयोजन में देश और दुनिया में भोजपुरी साहित्य, संस्कृति और भाषा पर गंभीर कार्य कर रहे प्रख्यात विद्वान, संस्कृति कर्मी, लेखन, साहित्यकार, रंग कर्मी, गायक, कवि और संस्कृति के अध्येता एक साथ एक मंच पर सम्मिलित होकर भोजपुरी की बात करने जा रहे हैं। दो दिनों का यह एक ऐसा वैश्विक आयोजन है जो भोजपुरी को भाषा के रूप में उसका स्थान अवश्य सुनिश्चित कराएगा। देवरिया ही भोजपुरी भाषा की केंद्रीय भूमि है, इसलिए यह आयोजन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। उद्घाटन समारोह में विश्व भोजपुरी सम्मेलन के दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष विनय मानी त्रिपाठी ने लोक भाषा के महत्व पर गंभीर चर्च की। उन्होंने इस आयोजन की महत्ता को रेखांकित किया। समारोह में प्रख्यात गायिका कल्पना पटवारी, भरत शर्मा व्यास, मदन राय, शिल्पी राज और आलोक कुमार एवं अनेक भोजपुरी साधक भी उपस्थित थे। प्रख्यात शिक्षाविद एवं संस्कृति पर्व की कार्यकारी संपादक डॉ अर्चना तिवारी भी उपस्थित थीं।
