दो टूक : पावर सेंटर की रस्साकशी में कांग्रेस के हाथ से चला तो नहीं जायेगा कर्नाटक

राजेश श्रीवास्तव

सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार जब शनिवार को सुबह एक साथ बैठकर नाश्ता कर रहे थे और ये बताते की कोशिश कर रहे थे कि उनके बीच सबकुछ ठीक है, उसी दौरान मैसूर में डीके शिवकुमार के समर्थक बाइक रैली कर रहे थे। समर्थक डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने की मांग के नारे लगा रहे थे। हालांकि नाश्ते के बाद दोनों ने साथ मिलकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें ‘सबकुछ ठीक है’ और ‘कोई अनबन नहीं’ का मैसेज देने की कोशिश की गई। लेकिन दोनों की बॉडी लैंग्वेज काफी कुछ कह रही थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीके शिवकुमार काफी कॉन्फिडेंट नजर आए। इस बीच सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद की एक फोटो सामने आई है। ये फोटो कर्नाटक में कांग्रेस की सियासी पिच पर अब आगे क्या हो सकता है, इस ओर इशारा कर रही है। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की फोटो प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद की है, जिसमें वह एक दरवाजे से बाहर निकलते हुए नजर आ रहे हैं। दोनों एक साथ बाहर आ रहे हैं, लेकिन दरवाजे की इतनी चौड़ाई नहीं है। सिद्धारमैया यहां से ये पहले निकल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसे में सिद्धारमैया रुक गए और डीके शिवकुमार को इशारा किया कि पहले आप निकलिए। इस दौरान दोनों की नजरें नीचे हैं जमीन की ओर हैं। ये तस्वीर काफी कुछ बयां कर रही है। सूत्रों की मानें तो कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर जारी खींचतान का अंत लगभग हो गया है।

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आलाकमान ने भी तय कर लिया है कि अब आगे क्या करना है, बस आधिकारिक घोषणा का इंतजार है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो यह मुलाकात कर्नाटक कांग्रेस के भीतर बढ़ते तनाव को कम करने की कोशिश है। पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान लंबे समय से चल रही है और दोनों नेताओं के बीच हुई यह बैठक महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह नाश्ते की बैठक केवल औपचारिक चर्चा नहीं थी, बल्कि पार्टी के भीतर संतुलन बनाने और संभावित नेतृत्व विकल्पों पर सहमति बनाने का एक कदम था। हाल के दिनों में कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान बढ़ गई है। डीके शिवकुमार के खेमे के लोग अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में दबाव डाल रहे हैं। इस बीच सिद्दारमैया ने उन्हें अपने घर ‘कावेरी रेसिडेंस। पर नाश्ते के लिए बुलाया ताकि पार्टी के अंदर चल रही गुत्थी को सुलझाने की दिशा में चर्चा हो सके।

दरअसल, कर्नाटक में लीडरशिप में बदलाव की अटकलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। ऐसी खबर है कि सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए ज़बरदस्त पावर टसल चल रही है। इस अंदरुनी लड़ाई में हर गुट अपने नेता को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने के लिए जोर दे रहा है। यह तनाव नया नहीं है। वर्ष 2०23 में विधानसभा जीत के बाद से ही दोनों के बीच सत्ता को लेकर रस्साकशी चल रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक उसी वक्त ढाई साल के पावर शेयरिग का फॉर्मूला निकाला गया था। अब जबकि ढाई साल का वक्त पूरा हो गया है, डीके शिवकुमार के समर्थक और ज्यादा मुखर हो गए हैं। उधर, सिद्धारमैया बार-बार अपना टर्म पूरा करने का इरादा जता रहे हैं। इससे कंफ्यूजन बढ़ रहा है। लेकिन ऐसा लगता है कि डीके शिवकुमार इस बातचीत को सीक्रेट रखना चाहते हैं इसलिए वे खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं। हालांकि दोनों ही नेता एक बात जरूर बोल रहे हैं कि वे पार्टी हाईकमान के आखिरी फैसले का सम्मान करेंगे।

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हालांकि, अगर लीडरशिप में बदलाव होता है तो शिवकुमार को सबसे आगे देखा जा रहा है, लेकिन होम मिनिस्टर जी। परमेश्वर समेत दूसरे नेताओं ने भी दिलचस्पी दिखाई है। वहीं कैबिनेट में फ़ेरबदल की उम्मीद है, जिससे पार्टी हाईकमान को यह तय करना होगा कि 2०28 के चुनावों से पहले सिद्धारमैया को बनाए रखा जाए या शिवकुमार को प्रमोट किया जाए। ऐसे में हाईकमान ने दोनों नेताओं आपस में मिलकर बातचीत करने की सलाह दी। इस मुलाकात के पीछे यह मकसद है कि आगे हाईकमान जो भी फैसला ले लेकिन जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश जाए कि कांग्रेस के अंदर सबकुछ ठीक चल रहा है। किसी तरह की गुटबाजी नहीं है और सर्वसम्मति से पार्टी कोई भी फैसला लेती है। आलाकमान ने साफ कर दिया है कि पहले आपस में विवाद दूर करो फिर दिल्ली का रुख करो। अब देखना है कि दिल्ली इस मामले में क्या निर्णय लेता है। असल में सत्ता के संघर्ष की वजह से सत्ता में साझेदारी का फॉर्मूला निकलता है। भारत की सामूहिक सोच में जो बदलाव आया है, कांग्रेस उससे काफी दूर नजर आती है। कांग्रेस में गांधी परिवार की चुनाव जिताने की क्षमता समाप्त हो चुकी है।

जब नेतृत्व के पास महिमा हो, तो पावर शेयरिग की बात ही नहीं आती। ऐसे में पावर शेयरिग की बात तय कर उसे लागू करने में अक्षम हो जाना बता रहा है कि कांग्रेस कहां पहुंच चुकी है। अंकगणित के हिसाब से वहां दूसरी सरकार बनने की संभावना नहीं है। राजनीति में पूर्ण विराम नहीं होता। अल्पविराम पर राजनीति चलती है। यूपीए की सरकार के समय वाम दल ताकतवर स्थिति में थे। तब केरल में अच्युतानंदन और पिनराई विजयन के बीच मतभेद गहरा गए। तब वाम दलों की केंद्रीय समिति की बैठक के दौरान तत्कालीन महासचिव प्रकाश करात ने दोनों खेमों के बीच सुलह कराई। उन्हें एक ही गाड़ी में बैठने को कहा गया। दोनों ने केरल भवन में जाकर साथ में भोजन किया। फिर भी 2009 में अच्युतानंदन को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इसलिए कर्नाटक में अभी जो हुआ, वह पटापेक्ष नहीं कहा जा सकता। भारत जोड़ो यात्रा का पूरा प्रबंधन डीके शिवकुमार ने देखा था। तब उन्होंने पार्टी के लिए ‘पुश अप’ लगाए थे, अब वे पार्टी से कसरत करवा रहे हैं। वहां टकराव सरकार और संगठन के बीच का है।

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