- सहारा शहर में उठी बगावत की लहर, भागने को मजबूर हुए रिश्तेदार
- कई महीनों से नहीं मिली तनख्वाह तो गुस्से में बंद कर डाले सभी गेट
- वेल्डिंग कराकर सभी गेटों को किया बंद, बिजली-पानी तक काटा
नया लुक संवाददाता
लखनऊ। यह खबर उत्तर प्रदेश के सबसे VIP घर से जुड़ी हुई है। कभी सुब्रत रॉय सहारा ने नाम से उत्तर प्रदेश की पहचान हुआ करती थी। सहारा इंडिया समेत कई लाभ कमाने वाली कम्पनियों के मालिक रहे सुब्रत रॉय सहारा के इशारों पर कभी सरकारें चला करती थीं। लेकिन समय की गति को कौन टाल सकता है? अब सहारा ग्रुप अनाथ हो चुका है। आलम यह है कि सुब्रत रॉय सहारा के ‘शहर’ की सेवा और निगरानी में जुटे अनुचरों, कर्मचारियों और सुरक्षा गार्डों ने भी बगावत कर दी। कई महीनों से तनख्वाह न मिलने के कारण कर्मचारियों ने सभी गेट बंद कर दिए और पानी-बिजली पर कब्जा जमा लिया।
कर्मचारियों का आरोप है कि सहारा प्रबंधन उनकी मांगों को सुन नहीं रहा है। हमारा क्या दोष है, हम तो सेवाएं दे ही रहे हैं। ऐसे हालत में यदि हमें तनख्वाह नहीं मिलेगी, तो अपने बच्चों को कैसे खिलाएंगे? बताते चलें कि पिछले कई बरसों से सहारा ग्रुप वित्तीय संकट में चल रहा है। उनकी एक-एक करके कई सम्पत्तियां नीलाम हो गईं। अभी बची कई सम्पत्तियां भारत के उभरते हुए उद्योगपति गौतम अडानी को मिलने जा रही है। सूत्रों का कहना है कि अब सरकार के नए करीबी के पास सारी सम्पत्तियां बिना किसी शर्त के बेची जा रही है।
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गौरतलब है कि सहारा समूह में कार्यरत कर्मचारियों का महीनों के बकाया वेतन चल रहा है। साथ ही अन्य कई और मांगें अधूरी चल रही थी। इसे लेकर कर्मचारियों का गुस्सा इस कदर फूटा कि उन्होंने सहारा सिटी परिसर को सील कर दिया। नाराज कर्मचारियों ने परिसर के सभी सात गेटों पर वेल्डिंग कराकर बंद कर दिया। उन्होंने बिजली और पानी की सप्लाई भी काट दी, जिससे पूरी कॉलोनी अंधेरे में डूब गई।

कर्मचारियों की मानें तो सहारा प्रबंधन उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहा है और पूरी तरह से मौन साधे हुए है। आरोप है कि सहारा समूह के संस्थापक सुब्रत रॉय के करीबी रिश्तेदारों को धरने की भनक लगते ही पिछवाड़े के गेट से सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। वहीं, प्रबंधन ने उनकी जायज मांगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
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हालांकि धरने की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई लेकिन कर्मचारियों ने साफ मना कर दिया कि जब तक उनकी मांगों पर ठोस आश्वासन नहीं मिलेगा, तब तक सहारा का एक भी गेट नहीं खुलेगा। इसी बात को लेकर पुलिस और सहारा कर्मचारियों के बीच तीखी बहस भी हुई, लेकिन सभी अपने रुख पर अड़े रहे। सहारा के खिलाफ यह विरोध न केवल उसकी मौजूदा वित्तीय संकट को उजागर करता है, बल्कि हजारों कर्मचारियों और उनके परिवारों के भविष्य पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। प्रबंधन की चुप्पी और कर्मचारियों की नाराजगी ने सहारा समूह की साख को और गहरा धक्का दिया है।

