- भदोही जिले की घटनाः जानकारी मिलने पर स्थानीय पुलिस बनी रही मूकदर्शक
- अदालत के आदेश पर पूर्व विधायक के बेटे के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज
- अपने ही घर में लगाया सेंध और साथियों के साथ मिलकर पार किए लाखों के जेवरात
- मुकदमा दर्ज होते ही विधायक के लाडले की बढ़ी मुश्किलें
ए. अहमद सौदागर
लखनऊ। कालिया फिल्म जिसमें अमिताभ बच्चन और प्राण वगैरह किरदार की भूमिका में थे। वह फिल्म क्राइम की सनसनीखेज फिल्म थी, यह उसकी कहानी नहीं है। लेकिन यह कथा है अपराध की ही, जिसमें धोखाधड़ी और राजनीति का जबरदस्त तड़का हुआ है। इसमें भी पात्र का नाम कालिया है। इस कालिया पर अदालत के आदेश पर धोड़ाधड़ी का मुकदमा दर्ज हुआ है, इसके दिवंगत पिता मुम्बई से शिवसेना विधायक रह चुके हैं और उत्तर प्रदेश के अपने गृह जिले में कई शैक्षणिक संस्था भी स्थापित कर चुके हैं। दरअसल कालिया ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ में सदस्य नामित हुआ था। मगर इसी दौरान दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर हो गई और याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस कालिया को अयोग्य करार दिया था। लिहाजा आयोग ने इसे साल 2012 में ही बर्खास्त कर डाला था। बावजूद इसके यह फर्जी नटवरलाल साल 2025 में अपने पैड जिस पर सदस्य, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग लिखा हुआ है, उसके द्वारा लोगों को चूना लगा रहा है।
किसी बुजुर्ग ने खूब कहा कि जब घर का ही चोर उचक्का और अपराधी निकल जाए तो आखिर समाज में कैसे सुधार किया जाए। ऐसा ही एक मामला भदोही जिले के सुरियावां थाना क्षेत्र का जहां राजधानी मुंबई में शिवसेना से विधायक रहे घनश्याम दुबे के बेटे योगेश दुबे उर्फ कालिया अपने साथियों के साथ मिलकर अपने ही घर में ही सेंध लगाकर सनसनी फैला दी। वह डुप्लिकेट चाबी बनाकर पुश्तैनी रुपये और लाखों के गहने लेकर फुर्र हो गया। इस मामले की भनक लगते ही योगेश के भतीजे प्रतीक दुबे को लगी तो वह दंग रह गया और इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को दी। लेकिन पारिवारिक मामला बताकर पुलिस ने टरका दिया।

स्थानीय पुलिस की कार्यशैली से हार मानकर प्रतीक दुबे अदालत की दहलीज पर गया और प्रार्थना पत्र के जरिए पूरी दास्तां बयां की। यह सुनकर अदालत ने तत्काल प्रभाव से मुकदमा दर्ज करने का फरमान सुनाया। तब जाकर पुलिस हरकत में आई और आनन-फानन में पुलिस मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू की। मामला भदोही जिले के सुरियावां थाना क्षेत्र स्थित कुसौड़ा गांव का है। यहां के रहने वाले घनश्याम दुबे एक वक्त में राजधानी मुंबई में विधायक थे और उनका दबदबा भी था, लेकिन चार दशक पहले वो घर की ओर लौट आए और कई शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की।
बताया जा रहा है कि गांव में खासा जमीन-जायदाद के अलावा सोने-चांदी के गहने थे। घनश्याम के बीमार होने के बाद योगेश की नीयत खराब हो गई और गांव की डगर पर जाने की सूझी और अपने कुछ साथियों के 20 दिसंबर 2024 को पहुंचा और डुप्लिकेट चाबी से लॉकर में रखे लाखों के जेवरात लेकर भाग निकला।
प्रतीक दुबे की मानें तो उसके दादा यानी घनश्याम दुबे बीमार चल रहे थे जिसको लेकर पूरा परिवार परेशान चल रहा था इसलिए किसी को चोरी होने की जानकारी नहीं हुई थी। इसके बाद 31 दिसम्बर 2024 को घनश्याम दुबे की मौत हो गई। जिनका अंतिम संस्कार उनके पुश्तैनी घर पर रीति-रिवाज के तहत उनके ज्येष्ठ पुत्र गिरीश दुबे उर्फ महर्षि आजाद ने की।

बताया जा रहा है कि इसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने तिजोरी खोली तो दंग रह गए। उसके भीतर से सोने-चांदी के जेवरात गायब थे। शक होने पर प्रतीक दुबे और परिवार के अन्य लोग योगेश से बताने की गुहार लगाई, लेकिन वह अपने द्वारा किए गए करतूतों को उजागर नहीं किया, उल्टे उन्हें धमकी देने लगा। इसके बाद प्रतीक थाने पर लिखित तहरीर देकर इंसाफ की गुहार लगाई, लेकिन पुलिस भी खूब पारिवारिक मामला बताकर उन्हें टरका दिया।
पुलिस की इस रवैए से आहत होकर प्रतीक ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और वहां से उसे न्याय मिला। अदालत ने तत्काल प्रभाव से मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया। जब जाकर सुरियावां थाने की पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू की। बताया जा रहा है कि अपने पारिवारिक गहने चोरी और कीमती सामानों के गबन में आरोपी योगेश दुबे ने राष्ट्र चिन्ह लगे लेटर पैड का दुरुपयोग करता रहा।
सुरियावां के प्रभारी निरीक्षक अजीत कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि यह पारिवारिक विवाद है, लेकिन न्यायालय के आदेश पर योगेश दुबे समेत तीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। पुलिस मामले की गहनता से जांच करेगी और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। हालांकि इसके पहले गृह विभाग के आला अधिकारियों को घरेलू विवाद बताकर थाना प्रभारी कार्रवाई को कई बार टालमटोल कर चुके हैं।

कौन हैं योगेश दुबे
अपने पारिवारिक जेवरात लूटने और कीमती सामानों के गबन में आरोपित हुआ योगेश दुबे राष्ट्रचिन्ह लगे लेटरपैड का दुरुपयोग करता रहता है। बताते चलें कि साल 2012 में कांग्रेस की सरकार के दौरान योगेश दुबे उर्फ कालिया ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ में बतौर सदस्य दिल्ली में तैनात हुआ था। हालांकि कुछ दिनों बाद ही दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे अयोग्य करार दिया था और उसकी सदस्यता समाप्त हो गई थी। अदालत ने साफ-साफ आदेशित किया कि कालिया की डिग्री और अनुभव पर संशय है, इसलिए उसे अयोग्य करार दिया जाता है। वर्तमान में वह मुम्बई कांग्रेस में सक्रिय है और बाल संरक्षण आयोग के लेटर हेड का दुरुपयोग करता रहता है। जिसकी पुष्टि जुलाई माह की 27 तारीख को भदोही के जिला विद्यालय निरीक्षक अंशुमान ने अपने आदेश में किया है।
शिक्षकों को भी अपशब्दों से नवाजता है योगेश
अपने पिता के शिक्षण संस्थान से निष्कासित होने के बाद योगेश दूबे विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों को भद्दे-भद्दे अपशब्दों से नवाजता रहता है, जिसकी शिकायत सुरियावां थाने में सेवाश्रम इंटर कॉलेज के उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम पांडेय ने थानाध्यक्ष सुरियावां से की थी। वहां से न्याय न मिलने की दशा में उन्होंने मुख्यमंत्री से गुहार लगाई। सीएम के आदेश पर जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) अंशुमान ने साफ-साफ आदेशित किया कि अनुशासन व आचरणहीनता के चलते सेवाश्रम इंटर कॉलेज के पदाधिकारियों को वह शख्स धमकाता है, जो खुद तकरीबन 13 साल पहले अपने पद से बर्खास्त हो चुका है। बकौल डीआईओएस योगेश दुबे राष्ट्रचिन्ह लगे लेटरपैड का दुरुपयोग निजी हित के लिए करता है और अधिकारियों को उसी के दम पर धौंस दिखाता रहता है।
नेतागिरी के चलते दबाव में रही पुलिस
बार-बार की शिकायतों के बाद भी सुरियावां पुलिस ने कोई कार्रवाई न करने के पीछे की वजह भी योगेश दुबे का वही लेटरहेड है। बिना पूर्व लगाए सदस्य लिखे पत्र से सुरियावां पुलिस दबाव में आ जाती थी और गृह विभाग के अधिकारियों को भी पारिवारिक विवाद का बहाना बताकर टरकाती रही। लेकिन अदालत के आदेश के बाद उसी पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया। खबर लिखे जाने तक पुलिस जांच की बात बता रही है।
