राजेन्द्र गुप्ता
हिंदू धर्म में सन्यासी पितरों का श्राद्ध बेहद महत्व रखता है। जिन परिवारों के सदस्य माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची या अन्य पितृ पूर्वज जीवित रहते हुए सन्यासी बन गए थे, उनके श्राद्ध की तिथि शास्त्रों में विशेष रूप से निर्धारित की गई है। भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक कुल 16 श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों में अपने पितरों और पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण और अन्य विधियां करना आवश्यक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष की कुछ तिथियां निश्चित की गई हैं।
जैसे सौभाग्यवती माता स्त्रियों का श्राद्ध एक निर्धारित तिथि को किया जाता है, वैसे ही सन्यासी पितरों का श्राद्ध भी निश्चित तिथि को करने का विधान है। श्राद्ध पक्ष की सभी तिथियां विशेष महत्व रखती हैं। गरुड़ पुराण और शकुन शास्त्र में भी इसे स्पष्ट किया गया है। जो व्यक्ति अपने पितृ पूर्वज का विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं करता, उसके जीवन में दुख, आर्थिक हानि, पारिवारिक कलह और अन्य संकट बने रहते हैं।
सन्यासी पितरों का श्राद्ध
सन्यासी पितरों का श्राद्ध केवल अश्विन कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को करना चाहिए। साल 2025 में यह तिथि 18 सितंबर, बृहस्पतिवार है। इस दिन 11:00 बजे से पहले विधिपूर्वक पिंडदान और तर्पण करने से सन्यासी पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और वे वंशजों पर सदैव आशीर्वाद बनाए रखते हैं। विशेष जानकारी के अनुसार, जिन पितृ पूर्वजों ने जीवन रहते सन्यास लिया और पिंडदान कर दिया, उनका श्राद्ध नहीं करने पर दोष नहीं माना गया है। लेकिन यदि विधिपूर्वक द्वादशी तिथि को श्राद्ध किया जाता है, तो यह उनके मोक्ष और वंशजों के कल्याण के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
श्राद्ध की विधि और महत्वपूर्ण जानकारी
श्राद्ध की तिथि : अश्विन कृष्ण पक्ष की द्वादशी।
साल 2025 में तिथि : 18 सितंबर, बृहस्पतिवार।
समय : 11:00 बजे से पहले।
विधि : पिंडदान, तर्पण और अन्य शास्त्रानुसार अनुष्ठान।
लाभ : सन्यासी पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और वंशजों पर आशीर्वाद बना रहता है।
