कैसे शुरू हुए कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष

राजेन्द्र गुप्ता

पंचांग के अनुसार हर माह में तीस दिन होते हैं और इन महीनों की गणना सूरज और चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है जिन्हे कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के दिनों को कृष्णपक्ष कहा जाता है, वहीं इसके उलट अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय शुक्लपक्ष कहलाता है। दोनों पक्ष कैसे शुरू हुए उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं।

शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष से जुड़ी कथा

इस तरह हुई कृष्णपक्ष की शुरुआत पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताईस बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। ये सत्ताईस बेटियां सत्ताईस स्त्री नक्षत्र हैं और अभिजीत नामक एक पुरुष नक्षत्र भी है। लेकिन चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी स्त्री नक्षत्रों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनके साथ पति का कर्तव्य नहीं निभाते। दक्ष प्रजापति के डांटने के बाद भी चंद्र ने रोहिणी का साथ नहीं छोड़ा और बाकी पत्नियों की अवहेलना करते गए। तब चंद्र पर क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने उन्हें क्षय रोग का शाप दिया। क्षय रोग के कारण सोम या चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे कम होता गया। कृष्ण पक्ष की शुरुआत यहीं से हुई।

ऐसे शुरू हुआ शुक्लपक्ष

कहते हैं कि क्षय रोग से चंद्र का अंत निकट आता गया। वे ब्रह्मा के पास गए और उनसे मदद मांगी। तब ब्रह्मा और इंद्र ने चंद्र से शिवजी की आराधना करने को कहा। शिवजी की आराधना करने के बाद शिवजी ने चंद्र को अपनी जटा में जगह दी। ऐसा करने से चंद्र का तेज फिर से लौटने लगा। इससे शुक्ल पक्ष का निर्माण हुआ। चूंकि दक्ष ‘प्रजापति’ थे। चंद्र उनके शाप से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकते थे। शाप में केवल बदलाव आ सकता था। इसलिए चंद्र को बारी-बारी से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। दक्ष ने कृष्ण पक्ष का निर्माण किया और शिवजी ने शुक्ल पक्ष का।

 

कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के बीच अंतर

जब हम संस्कृत शब्दों शुक्ल और कृष्ण का अर्थ समझते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से दो पक्षों के बीच अंतर कर सकते हैं। शुक्ल उज्ज्वल व्यक्त करते हैं, जबकि कृष्ण का अर्थ है अंधेरा। जैसा कि हमने पहले ही देखा, शुक्ल पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक है, और कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष के विपरीत, पूर्णिमा से अमावस्या तक शुरू होता है।

कौन सा पक्ष शुभ है?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, लोग शुक्ल पक्ष को आशाजनक और कृष्ण पक्ष को प्रतिकूल मानते हैं। यह विचार चंद्रमा की जीवन शक्ति और रोशनी के संबंध में है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि तक की अवधि ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ मानी जाती है। इस समय के दौरान चंद्रमा की ऊर्जा अधिकतम या लगभग अधिकतम होती है – जिसे ज्योतिष में शुभ और अशुभ समय तय करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

homeslider Religion

बत्तीसी पूर्णिमा व्रत: सुख-समृद्धि और मोक्ष का दुर्लभ अवसर

राजेन्द्र गुप्ता मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा सनातन धर्म में सर्वोत्तम पूर्णिमा मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में स्वयं कहा है – “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”। इसी पावन तिथि से शुरू होने वाला 32 पूर्णिमाओं का अनुष्ठान “बत्तीसी पूर्णिमा व्रत” कहलाता है। इस वर्ष यह शुभारंभ 4 दिसंबर 2025 को हो रहा है। बत्तीसी पूर्णिमा व्रत […]

Read More
homeslider Religion

पिशाचमोचन श्राद्ध: प्रेतयोनि से मुक्ति का पावन अवसर

राजेन्द्र गुप्ता हिंदू धर्म में पितरों की शांति और उनकी सद्गति के लिए कई विशेष श्राद्ध तिथियाँ निर्धारित हैं। इन्हीं में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है पिशाचमोचन श्राद्ध। यह श्राद्ध मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पवित्र तिथि 3 दिसंबर, बुधवार को है। खास तौर […]

Read More
homeslider Religion

मत्स्य द्वादशी आज है जानिए पूजा विधि और शुभ तिथि व महत्व

राजेन्द्र गुप्ता मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष के द्वादशी को मनाया जाने वाला यह मत्स्य द्वादशी का पर्व अत्यंत पावन माना जाता है इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजा करने से घर परिवार में सुख शांति आती है और संकट दूर होते हैंकहा जाता है कि भगवान विष्णु मत्स्य का रूप धारण करके दैत्य हयग्रीव से चारों […]

Read More