राजेन्द्र गुप्ता
हिंदू धर्म के ये देवी-देवता हमारे शरीर के अंग और भावना की प्रकृति के आधार पर हमारे शरीर में भी सूक्ष्म रूप से मौजूद होते हैं और अगर आपको उन चक्रों की ऊर्जा को हील करना या संतुलित करना है, ताकि आप स्वस्थ रहें। मनुष्य की कुंडलिनी के सात चक्रों से कुछ देवी-देवताओं को उन चक्रों की प्रकृति और ऊर्जा संतुलन की आवश्यकता के आधार पर जोड़ा गया है।
मूलाधार चक्र : सातों चक्रो में सबसे पहले मूलाधार चक्र का आता है मूलाधार चक्र के खराब होने से मुख्यता प्रोस्टेट, गठिया,वेरिकोज वेन, कूल्हे की समस्या, घुटनों में समस्या,खाना अच्छा न लगना, लूज मोशन या कब्ज की समस्या, बवासीर आदि है।
स्वाधिष्ठान चक्र : कुण्डलिनी के द्वितीय चक्र स्वाधिष्ठान चक्र के खराब होने से निम्न बीमारी होती है। हर्निया, आतों की दिक्कत, महिलाओं में मासिक धर्म, खून की कमी, नपुंसकता, गुर्दे की समस्या, मूत्र संबंधि रोग आदि।
मणिपुर चक्र : कुंडली के तृतीय चक्र मणिपुर चक्र के खराब होने से निम्न बीमारी होती है। लीवर सिरोसिस, फैटी लीवर, शुगर, किडनी संबंधित समस्या, पाचन संबंधी समस्या, पेट में गैस, अल्सर आदि।
अनाहत चक्र : कुंडली के चतुर्थ चक्र हार्ट चक्र के खराब होने से ह्रदय की बीमारी,बी पी हाई या लो होना, लंग्स में दिक्कत, स्तन कैंसर, छाती में दर्द, रक्षाप्रणाली में विकार आदि।
विशुद्ध चक्र : थ्रोट चक्र के खराब होने से मुख्यतः निम्न बीमारी होती है । थायराइड, जुकाम, बुखार, मुँह, जबड़ा, जिव्हा, कंधा और गर्दन, हार्मोन राजोवृति आदि।
आज्ञा चक्र : षष्ठ चक्र आज्ञा चक्र के खराब होने से निम्न बीमारी होती हैं। आँख, कान, नाक, हार्मोन्स की प्रोब्लम, सिर दर्द, अनिंद्रा, अर्ध कपारी (माइग्रेन) आदि।
सहस्त्रार चक्र : क्राउन चक्र के खराब होने से निम्न बीमारी होती है। मानसिक रोग, नाडी रोग, मिर्गी, अधरंग, लकवा, सिर दर्द, हाथ पैरों का सुन्न होना।
