दो टूकः चीन के बल पर पाकिस्तान ने अमेरिका की चौधराहट पर लगाया पलीता

राजेश श्रीवास्तव

ऑपरेशन सिंदूर से बौखलाए पाक ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। फिर क्या, भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान दोनों देशों की ओर से एक-दूूसरे पर कड़े प्रहार किये गये। लेकिन भारत के अभेद्य रक्षा कवच के चलते हमारी सेना ने पाकिस्तान के सभी हमलों को न केवल नाकाम किया बल्कि उसे उसके प्रमुख शहरों तक घुस कर करारा जवाब दिया। लेकिन बात यह नहीं कि भारत ने उसे करारा तमाचा मार कर सबक सिखाया । बात इसकी है कि आज भारत की विदेश नीति कैसी है। भारत के कड़े विरोध के बावजूद पाकिस्तान को आईएमएफ से कर्ज मिल जाता है। सिर्फ कर्ज स्वीकृृति ही नहीं होती अगले ही दिन साढ़े 8 हजार करोड़ का कर्ज उसके खाते में भी पहुंच जाता है। ऐसी तत्परता तो आज तक नहीं देखी गयी।

सिर्फ इतना ही होता तो ठीक लेकिन पाकिस्तान के घिघियाने पर दुनिया के गुरू बनने का सपना पाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत से बातचीत की और क्रेडिट लेने की मानो होड़ लगी थी कि सबसे पहले खुद ही ऐलान कर दिया कि भारत और पाकिस्तान सीजफायर के लिए तैयार हो गये हैं। हमने रात भर पाकिस्तान को समझाया मानो यह दिखा रहे थे कि हमने बड़ा एहसान किया है और युद्ध रुकवा दिया। लेकिन पाकिस्तान के बारे में सही ही कहा गया कि पाकिस्तान पर भरोसा कभी नहीं किया जा सकता। अभी सीजफायर का जश्न शुरू भी नहीं हो पाया था कि पाकिस्तान ने भारत के 26 इलाकों में ड्रोन से जबरदस्त हमला कर दिया। बल्कि श्रीनगर में तो करीब 5० से ज्यादा की संख्या में ड्रोन से हमला किया गया। तुर्रा यह कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं कि सेना हमारी नहीं सुन रही।

अब सवाल ये उठ रहा है कि पाकिस्तान आखिर सीजफायर के वादे से क्यों मुकरा? ये समझना भी रोचक है कि चीन ने पाकिस्तान का साथ देकर किस तरह अमेरिका की कोशिशों पर बट्टा लगा दिया। चीन ने अमेरिका की चौधराहट पर बट्टा लगा दिया। पाकिस्तान ने संघर्ष विराम के लिए सहमत होने के कुछ समय बाद इसे तोड़ दिया है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के अनुसार सीमा पर भीषण गोली बारी जारी है। खबर है कि पाकिस्तान ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी का हर तरह के समर्थन का भरोसा मिलने के बाद ऐसा किया है। क्या भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच विश्व की दो महाशक्तियों के नाक के सवाल खड़ा हो गया है? स्थिति अब जटिलता की ओर जा रही है? जटिलता इसलिए कि पाकिस्तान को तुर्किए के अलावा किसी भी देश का समर्थन नहीं मिल पा रहा था। अजरबैजान के सैद्धांतिक समर्थन का भारत और पाकिस्तान के बीच में जंग जैसे माहौल में कोई महत्व नहीं है। वैसे भी भारत हथियार आदि के मामले में अजरबैजान के दुश्मन आर्मेनिया का सहयोगी है।

भारत और पाकिस्तान के बीच में युद्ध विराम को लेकर वहां के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने सफाई दी थी। उन्होंने अपनी संसद को बताया था कि जंग में भारत पाकिस्तान पर बहुत भारी है। पाकिस्तान की फौज बहादुरी से मुकाबला कर रही है लेकिन उनके देश के पास लड़ने के लिए मजबूत संसाधन नहीं हैं। शाहबाज शरीफ ने यहां तक कहा था कि इस लड़ाई में उन्होंने सऊदी अरब, चीन समेत दुनिया के तमाम देशों से मदद मांगी, लेकिन तुर्किए को छोड़कर किसी ने सहायता के लिए हामी नहीं भरी। हो सकता है शाहबाज शरीफ ने कुटिल चाल के तहत संसद में यह रोना रोया हो। इसके बाद चीन के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वांग यी ने पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार से बात की। पाकिस्तान को हर तरह के समर्थन का भरोसा दिया और कहा कि चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है।

 

विदेश मंत्री डार ने लिखा कि उन्होंने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से फोन पर बात की। वांग यी को भारतीय आक्रामकता के बारे में बताया। पाकिस्तान की स्थिति, क्षेत्रीय हालात के बारे में जानकारी दी। डार लिखते हैं कि वांग यी ने पाकिस्तान के संयम को स्वीकार किया और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में पाकिस्तान के जिम्मेदाराना दृष्टिकोण की सराहना की। वांग यी ने इसके बाद कहा कि चीन पाकिस्तान के सदाबहार रणनीतिक सहयोगी, साझीदार और सच्चे मित्र का फर्ज निभाएगा। चीन पाकिस्तान कीसंप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, राष्ट्रीय स्वतंत्रता को बनाए रखने में पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा रहेगी।

उधर भारत में सामरिक और रणनीतिक विशेषज्ञ अचानक संघर्ष विराम की घोषणा से तंग थे। उन्हें यह कम अच्छा लग रहा था। ब्रह्म चेलानी ने कड़ी टिप्पणी भी की। पूर्व सेनाध्यक्ष मनोज मुकमंद नरवाणे ने भी संतुलित भाषा में आईना दिखाया। लेकिन स्थिति एक बार फिर लौटकर बुद्धू घर को आए। वैसे, बुद्ध का देश भारत युद्ध नहीं चाहता। भारत ने कई बार कहा कि आत्मरक्षा में आपरेशन सिन्दूर के तहत आतंकवाद के खिलाफ सटीक, पुख्ता सूचना पर केवल आतंकी शिविरों को निशाना बनाया। किसी सैन्य प्रतिष्ठान, शिविर और आम नागरिक को चोट नहीं पहुंचाई। हम टकराव को बढ़ाना नहीं चाहते लेकिन युद्ध थोपा गया तो दुश्मन की हर हरकत का मुंहतोड़ जवाब देगा। भारत की इस नीति को विदेश सचिव विक्रम मिस्री, विदेश मंत्री एस जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिह कई बार दोहरा चुके हैं। यह नीति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिशा निर्देश, राजनीतिक इच्छा शक्ति के आधार पर बनी है। भारत अपनी स्वतंत्रता के बाद से इसी नीति पर चला है। इसलिए दुश्मन के हर नापाक इरादे का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। सीमा पर भारतीय सैन्य बल पाकिस्तान के संघर्ष विराम उल्लंघन का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं।

भारत में रात और अमेरिका में सुबह हुए कुछ घंटे हो गए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ओवल आफिस जाने की तैयारी कर रहे होंगे। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री माकोर् रुबियों, जो पिछले 48 घंटे से भारत पाकिस्तान को संयम बरतने, युद्ध को न भड़काने, क्षेत्रीय शांति बनाए रखने के लिए तैयार करने की मेहनत कर रहे थे, उन्हें पाकिस्तान के संघर्ष विराम उल्लंघन की सूचना मिल गई होगी। कूटनीति की भाषा में कहें कि तुर्किए और चीन के पाकिस्तान को ताकत देने की नीति ने अमेरिका को इस क्षेत्रीय टकराव में सीधे तौर पर घसीट लिया है। अब यहां चीन सीधे तौर पर संघर्ष विराम तुड़वाने के बाद अमेरिका की चौधराहट को चुनौती देता नजर आ रहा है। इसने क्षेत्रीय टकराव की स्थिति को काफी जटिल बना दिया है। देखना होगा कि अब आगे क्या? यह तय है कि युद्ध रुकते ही अब देश के अंदर राजनीतिक जंग शुरू होने वाली है। विपक्ष की ओर से कई सवाल पूछे जाने वाले हैं। पर तीन दिनों के युद्ध में जो स्पष्ट दिखा वह यह था कि प्रधानमंत्री मोदी अपने सहयोगियों के साथ लगातार संवाद के साथ सही रणनीति बनाते रहे और सबसे बड़ी बात सेना के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहे।

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