प्रेम की अमर कहानीः इस जोड़ी को दुनिया ने नम आँखों से बिछुड़ते देखा

मंजू शुक्ला
     मंजू शुक्ला
  • करोड़ों दुआएँ, पत्नी का अगाध प्रेम, डॉक्टरों की कड़ी मेहनत के बाद भी नहीं बचा प्यार

वो प्यार में थी, जिसे राधा का प्रेम कहा जा सकता है। उसे मीरा का प्यार कहा जा सकता है। एक खूबसूरत पुरुष की व्याहता होने के बाद उसने ख़ुद को एक बीमार, बदसूरत और लाचार शख़्स की पत्नी बने रहने में तनिक भी गुरेज़ नहीं किया। ब्रेन ट्यूमर से जूझ रहे अपने पति के बाल काटते वक़्त उसने बड़ी बेदर्दी से अपने वो केश काट डालें, जिसे सोशल मीडिया पर लाखों-लाख लाइक्स मिलते थे। उसकी आँखों में बेइंतहा आंसू थे। दिल में दर्द, मन में उदासी और ज़ेहन में बेचैनी लिए वह अपने प्रेम को जी रही थी। उसे पता था कि उसका ‘प्यार’ उसे बीच रास्ते छोड़कर कहीं ‘दूर’ की यात्रा पर जाने को तैयार है। फिर भी वो उसे प्रेम करती रही। वो उसके पैरों को चूमती रही। उसे अंतिम समय तक अपने आग़ोश में रखा। जब उसने दुनिया से रुखसती की, तब भी वो उसे अपने बाँहों में समेटे रही। वो पत्नी थी। वो प्रेयसी थी। वो मित्र थी और सबसे बढ़कर वो उसका पहला और अंतिम सहारा थी। अब दोनों हमेशा के लिए बिछुड़ चुके हैं। प्रेम-कहानी ख़त्म। लेकिन इसी बीच वो दुनिया को दिखा गई कि पत्नी ही व्यक्ति की पहली और अंतिम प्रेयसी होती है।

यह कहानी थी नेपाल के विवेक पंगेनी और श्रीजना सुबेदी की। दोनों के बीच साल 2014 में प्रेम के बीच उपजे। आँखें चार हुईं और दुनिया एक। स्कूल का प्यार छह साल चला और साल 2020 में दोनों एक दूसरे के हमसफ़र बन गए। जीवन प्यार से बीत रहा था। दोनों में अगाध प्रेम था। एक दूसरे पर अटूट भरोसा था। प्यार में उत्कर्ष था। दुनिया से दूर एक-दूसरे की वो पूजा करते थे। वैसे भी कहा जाता है कि प्रेम एक फूल है, जिसमें श्रद्धा, भरोसा और विश्वास नाम की टहनियाँ होती हैं। उनके प्यार में भी ये सब था। दोनों दुनिया में खुशहाल युगल की तरह जी रहे थे। तभी काल का एक चाबुक विवेक पंगेनी पर चला। वो ब्रेन ट्यूमर का शिकार हो गया। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे विवेक को वर्ष 2022 में दिमाग़ी कैंसर का पता चला। वो टूट गया। उसे अपने प्रेम से बिछड़ने का वक़्त दिखने लगा। लेकिन श्रीजना ने एक हमसफ़र की तरह उसे सँभाला। कैंसर जैसी घातक बीमारी से जंग करने का हौंसला दिया और साथ ही जीवन भर साथ न छोड़ने का वायदा भी।

कैंसर के आख़िरी स्टेज में भी वो अपने पति को ऐसे सँभाल रही थी, जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं है। वो उसका सहारा थी। उसकी ढाल थी। उसकी वो उम्मीद वो जज़्बात और एक बड़ी ताक़त थी। अपने हाथों से नहलाना, खिलाना और बाद में उठाना-सुलाना भी उसकी ज़िम्मेदारी में शामिल हो गया था। आख़िरी क्षणों तक वो एक साथ-एक दूसरे की बाँहों में ही सोए। श्रीजना को कभी यह फ़र्क़ नहीं पड़ा कि उसका पति इतनी गम्भीर बीमारी से ग्रसित है। ख़बरों के मुताबिक जिस समय विवेक ने दुनिया को अलविदा कहा, उस समय भी श्रीजना उसके पास उसके सीने पर हाथ रखे उसके साथ लेटी हुई थी।

एक स्त्री पुरुष को कितना प्यार कर सकती है, इसका इतना बड़ा मिसाल पेशकर श्रीजना अब उदास है। निराश है और दुखी भी। एक और प्रेम कहानी अमर हो गई। लोगों ने उस हॉल में उसे चिग्घाड़ते देखा। तड़पते देखा और अपने प्रेमी के पार्थिव शरीर से लिपटकर हमेशा के लिए उसके साथ हो लेने की चाहत भी। जिसने भी वो वीडियो देखा, उसकी आँखें नम हो गईं। कलेजा पत्थर की मानिंद होने लगा लेकिन दुनिया की यही रीत है। यही कड़वा सच कि मौत एक दिन आनी है और सभी को दुनिया से विदा होना है। विवेक श्रीजना को इसी दुनिया में छोड़कर अनंत की ओर चल पड़ा, लेकिन श्रीजना अभी भी बुत की तरह पड़ी हुई है। हीर-रांझा, शीरी-फरहाद और लैला-मजनू की तरह यह प्रेम कहानी बड़ी तो नहीं हुई, लेकिन मीरा के मोहन की भाँति लोगों की ज़ुबान पर ज़रूर है।

यहाँ ओशो की प्रेम पर दो लाइनें बड़ी सटीक बैठ रही हैं…

लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है.
कौन-से शहर में होता है, कहां होता है?

श्रीजना ने प्रेम किया, लेकिन जिसे प्यार देना था, उसने सिवा दुख के और कुछ भी नहीं दिया। पीड़ा के सिवा कुछ हाथ न लगा। उसने सोचा था कि प्रेम करेंगे तो जीवन में बसंत आएगा। प्रेम ही पतझड़ लाया। प्रेम न करते तो ही भले थे। प्रेम ने सिर्फ नए-नए नर्क बनाए। एक नर्क श्रीजना के लिए भी तैयार हो गया। रूह से लेकर शरीर तक विवेक को अंर्तमन से चाहने वाली अब किसी पुरुष से कहां प्रेम कर पाएगी? अब उसे पहाड़ जैसी ज़िंदगी का भार अकेले ढोना है। यह उसके लिए एक नया नर्क है। ऐसा ही नहीं है कि जो प्रेम में हारते हैं उनके लिए ही नर्क और दुख होता है, जो जीतते हैं उनके लिए भी नर्क और दुख होता है। लेकिन यहाँ हारकर नए नर्क में श्रीजना को जीना पड़ेगा। पता नहीं वो ससुराल में फ़िट हो पाएगी या नहीं? मायके में उसके कितना प्यार, स्नेह और सम्मान मिलेगा भगवान जानें? लेकिन ज़िंदगी उसे भी जीनी है, उसमें विवेक के प्रेम का सहारा होगा।

क्या होता है प्रेम?

उसने जीवन में सच्चा प्रेम किया। क्योंकि प्रेम का पहला सबक है, प्रेम को मांगो मत, सिर्फ दो। एक दाता बनो। प्रेम का अपना आतंरिक आनंद है। यह तब होता है, जब तुम प्रेम करते हो। परिणाम के लिए प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बस प्रेम करना शुरू करो। धीरे-धीरे तुम देखोगे की बहुत ज्यादा प्रेम वापस तुम्हारे पास आ रहा है। व्यक्ति प्रेम करता है और प्रेम करके ही जानता है कि प्यार क्या है। जैसा कि तैराकी तैरने से ही आती है, प्रेम प्यार के द्वारा ही सीखा जाता है।

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