कविता : भेड़िया आया-भेड़िया आया

सच बोलना मूलभूत प्रकृति व संवेदनशील सहज प्रवृत्ति है, झूठ सुनकर यदि हमें दुख होता है, ऐसे झूठ से ग़ैर को भी दुख होता है। जिस प्रकार झूठ सुनकर हमारी ख़ुद की भावना आहत होती है, वैसे ही हमारा झूठ सुनकर औरों की भावना अत्यंत कष्ट पाती है। बचपन में हम झूठ नहीं बोलते हैं, … Continue reading कविता : भेड़िया आया-भेड़िया आया