कविता : हरि नाम सदा जपिये जपिये

हृदय और मस्तिष्क दोनों ही उस परमात्मा के घर होते हैं, कूड़े करकट से मत भरिये, इन्हें स्वच्छ रखिये रखिये॥ प्रभु का घर यह पावन मन, दुरभाव-द्वेष न इसमें भरिये, फिर से नर देह मिले न मिले, प्रभु नाम यहाँ धरिये धरिये॥ ये भी पढ़ें कविता : उधार का एहसान श्रुतियुक्त नीति अपनाइयेगा, सत्कर्म धर्म सदा … Continue reading  कविता : हरि नाम सदा जपिये जपिये