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Litreture

कविता : त्रेता व द्वापर के शांतिदूत

जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥ कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥ सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥ तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी॥ बालि तनय अंगद रणबीरा, रावण सभा धरेउ पग धीरा। कोउ न सक पग अंगद टारा, तब […]

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