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Analysis

क्या थे वे दिन? गीतमाला वाले!

उन दिनों अमूमन अखबारों के दफ्तर में देर शाम फोन की घंटी बजती थी (तब मोबाइल नहीं जन्मा था), तो अंदेशा होता था कि “कुछ तो हुआ होगा।” मसलन ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु (तड़के तीन बजे), जान कैनेडी की हत्या (आधी रात), याहया खान द्वारा भारतीय वायुसेना स्थलों पर बांग्लादेश युद्ध पर […]

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