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Litreture

कविता: अप्रतिम संदेश का देश भारत

उत्तुंग हिमालय शीश बन खड़ा, सागर वंदन करे चरण रज धोकर, पर्वतराज ऊँचा उठने को कहता है, सागर दिखलाता गहरे लहराकर। सोच समझ है अति ऊँची गहरी, भाव समर्पण का पावन आदर, शिखर शिखर पर सूर्य रश्मियाँ, उषा किरण संग भाल उठाकर। हमें सोच समझ है ये जो कहती हैं, उठती गिरती सुतरल विचलित तरंग, […]

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