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Litreture

कविता : राम चरित्र मानस-माता कैकेई को करिये दंडित

मातु तात कहँ देहि देखाई। कहँ सिय रामु लखनु दोउ भाई॥ कैकइ कत जनमी जग माझा। जौं जनमि त भइ काहे न बाँझा॥ कुल कलंकु जेहिं जनमेउ मोही। अपजस भाजन प्रियजन द्रोही॥ को तिभुवन मोहि सरिस अभागी। गति असि तोरि मातुजेहि लागी॥ चौदह बरस पादुका आसन। श्रीराम राज्य बैठे सिंहासन ॥ संध्या समय सरयू तट […]

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