सिख

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कविता: आदित्य लहराये ऊँचा तिरंगा न्यारा

आजकल उंगली ही निभा रही है रिश्ते, पर जुबाँ से निभाने का अवसर कहाँ है, टच में हैं व्यस्त सब, टच में है कोई नहीं, नज़दीकियों की दूरियाँ हैं मिटती नहीं। तीन दिन में पाँच सौ लोगों से मुलाक़ात हो चुकी है और बात भी होती ही रहती है, टच में स्वर भी होते हैं […]

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