सूबे की जेलों में चल रहा माफियाओं का राज़

सलाखों के पीछे बंद दबंग बदमाशों का इशारा कईयों पर पड़ा भारी

उदाहरण: उमेश पाल हत्याकांड


ए अहमद सौदागर


लखनऊ। 6 जनवरी 2021 को राजधानी विभूतिखंड क्षेत्र पूर्व ब्लाक प्रमुख अजीत सिंह की गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतारने का मामला हो या फिर 23 फरवरी 2023 को जनपद प्रयागराज निवासी भाजपा नेता उमेश पाल हत्याकांड। इन दोनों सनसनीखेज वारदातों में कहीं न कहीं सलाखों के पीछे बंद खूंखार बदमाशों की भूमिका होने की बात सामने आई तो एक बार फिर सच सामने आया कि सूबे की जेलों में दबंग बंदियों का सिक्का चल रहा है। जानकार बताते हैं कि तमाम बंदिशों के बावजूद यहां बंद माफिया खुलेआम मोबाइल, शराब और ऐशो आराम के अन्य साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

जेलकर्मी चाह कर भी उन पर पाबंदी नहीं लगा पाते। वजह, जिसने भी पाबंदी लगाई उसे इसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ी। यह तो जेलकर्मियों के खौफ का मामला रहा अब तो किसी की गवाही देने पर गवाहों के जान पर आफ़त आ गई है, उदाहरण के तौर पर भाजपा नेता उमेश पाल हत्याकांड। पेशे से वकील और भाजपा नेता उमेश पाल की बेखौफ बदमाशों ने 23 फरवरी 2023 को दिनदहाड़े गोलियों की बौछार कर मौत की नींद सुला दिया था। करीब 18 वर्ष पहले बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड मामले मुख्य गवाह थे।

यह सनसनीखेज वारदात उस समय हुई जब उमेश पाल कार से उतरकर घर की दहलीज की ओर जा रहे थे। इस घटना के बाद पुलिस जांच पड़ताल शुरू की तो पता चला कि यह योजना सलाखों के पीछे बनाई गई और वहीं से इशारा मिलते ही शूटरों ने उमेश को मौत के घाट उतार। सवाल है कि सूबे की जेलों में बंद दबंग बंदियों और माफियाओं का राज़ आज से नहीं बल्कि बहुत पहले से चला आ रहा है। आजमगढ़ निवासी सीपू सिंह हत्याकांड, अजीत सिंह हत्याकांड या फिर उमेश पाल हत्याकांड ये तीन वारदात तो बानगी भर है और भी कई ऐसी सनसनीखेज वारदातें हुईं, जिनमें सलाखों के पीछे बंद माफियाओं या फिर दबंग बंदियों का नाम न आया हो।

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