- विवादित मुद्दों के समाधान का रास्ता सिर्फ राजनयिक पहल, देउबा
- पूर्व पीएम भट्टाराई ने भी ट्वीट कर ओली को चेताया, राष्ट्रीय अखंडता को न बनाएं चुनावी मुद्दा
रतन गुप्ता
काठमांडू। जैसा कि तय था,इस चुनाव में भी ओली कथित राष्ट्र वाद के मुद्दे पर ही मतदाताओं को अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करने की पूरी कोशिश करेंगे। शनिवार को पश्चिम नेपाल के धारचूला में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने लिपुलेख,लिंपियाधुरा और काला पानी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सत्ता में आती है तो भारत के कब्जे वाले नेपाली भूभाग को वापस लाने का प्रयास करेगी। उत्तराखंड से लगे नेपाल सीमा के उक्त भू क्षेत्र पर भारत ने मानसरोवर तक जाने का मार्ग बना लिया है।
हालांकि तब भी नेपाल में ओली सरकार ही सत्ता सीन थी और वे कुछ नहीं कर पाए क्योंकि भौगोलिक नक्शे में ओली के दावे वाली जमीन भारत के भूक्षेत्र का हिस्सा है। चूंकि ओली को इसी भूक्षेत्र के बहाने स्वयं को राष्ट्र वादी साबित करना है इसलिए भारत विरोध की भाषा बोलना उनकी मजबूरी है।ओली के कार्यकाल के दौरान नेपाल सरकार ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को अपना क्षेत्र दिखाते हुए नया नक्शा जारी किया था। ओली के इस हरकत पर भारत ने कड़ा ऐतराज जताते हुए दस्तावेजी सबूतों के साथ अपना पक्ष रखकर ओली को खामोश रहने को मजबूर किया था।
चुनावी सभा को संबोधित करते हुए एमाले प्रमुख
केपी शर्मा ओली ने कहा कि चुनाव जीते तो हम कालापानी सहित लिपुलेक और लिंपियाधुरा की भूमि वापस लाएंगे। हम अपनी जमीन का एक इंच भी क्यों छोड़ें?ओली ने अपने चुनाव अभियान को क्षेत्र आधारित मुद्दे पर विभाजित कर रखा है। वे जब पश्चिम नेपाल में होते हैं तो लिपुलेख लिंपियाधुरा और काला पानी उनका चुनावी मुद्दा होता है और जब किसी और क्षेत्र में होते हैं तो वहां का मुद्दा उठाते हैं। भले ही ये मुद्दे उनके ही कार्य काल के क्यों न हों? उत्तराखंड के इस भूभाग का मुद्दा भी तभी का है जब वे पीएम थे। ऐसे ही एक मुद्दा नागरिकता संशोधन का है। संविधान में जानबूझकर या अनजाने में ऐसी ग़लती हुई जिससे करीब पांच लाख मधेशी लोग नागरिकता से वंचित हैं। हाल ही नेपाली कांग्रेस की सरकार ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए नया नागरिकता संशोधन विधेयक तैयार कर राष्ट्र पति के पास भेजा था।
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ओली की अनुयायी राष्ट्र पति ने इस पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। मधेशी क्षेत्र में ओली का यही प्रमुख चुनावी मुद्दा होगा कि उनकी सरकार आने पर इसे हरहाल सुलझाया जाएगा। इस मुद्दे को उठाने वाले मधेशी नेता उपेंद्र यादव भी ओली के साथ हैं लिहाजा मधेशी वोटरों में ओली के लिए यह मुद्दा उठाना मुश्किल नहीं होगा। इसी तरह पांच भागों में विभक्त नेपाल के अलग अलग क्षेत्रों में ओली के अलग अलग मुद्दे हैं। पूर्वी नेपाल के वीरगंज या जनकपुर क्षेत्र में भगवान राम के नेपाल में होने का दावा भी उनका चुनावी मुद्दा रहेगा।
ओली के भाषण पर देउबा का पलटवार
नेपाली कांग्रेस नेता व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने सुदूर पश्चिम नेपाल में अपने गृह जिले डढेलधुरा में चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि लिपुलेख लिंपियाधुरा और काला पानी यदि नेपाली भूक्षेत्र था तो इसे ओली के पीएम रहते कैसे किसी देश ने हथिया लिया? उन्होंने जनता से सवाल किया कि क्या ऐसी सरकार को फिर सत्ता में आने का हक है जो अपनी जमीन और अपने देश की रक्षा न कर सके। उन्होंने कहा जमीन संबंधी जो समस्या ओली ने अपने कार्यकाल में पैदा किया,उसके समाधान का रास्ता सिर्फ राजनीतिक पहल है और यह कर रहे हैं। हमारी सरकार उसके लिए प्रयास रत है। ओली के भाषण के बाद पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. बाबूराम भट्टराई ने ट्वीट कर ओली से कहा है कि वे राष्ट्रीय अखंडता को चुनाव का एजेंडा न बनाएं। किसी भी पार्टी या व्यक्ति को देश की क्षेत्रीय अखंडता को चुनावी एजेंडा नहीं बनाना चाहिए।