‘माता’ और ‘शिव’ का हाथ, योगी के साथ, जानिए आखिर विरोधियों पर भारी क्यों पड़ते हैं योगी आदित्यनाथ!

  • अच्छे श्रोता के रूप में सुनते-मुस्कुराते गढ़ते रहते हैं जवाब
  • नेता प्रतिपक्ष का जवाब देते-देते विपक्ष पर भी बरस पड़ते हैं योगी

भौमेंद्र शुक्ल

उत्तर प्रदेश सरकार का 2025-26 का बजट सत्र चल रहा था। नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय को दोपहर दो बजे सदन में बोलना था। उसके कुछ देर पहले ही मुख्यमंत्री महंत आदित्यनाथ योगी ने सदन में प्रवेश किया। संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना के बगल में बैठे योगी एक कुशल श्रोता की तरह नेता प्रतिपक्ष को सुनते रहे। वो बिना सिर-पैर के सवाल पर मुस्कराते और फिर उन्हें निहारने लगते। शायद यही कारण है कि नेता प्रतिपक्ष भी उन पर सीधा वार करने से बचते रहे। सवाब थोड़ा भी तीखा होता तो उनके बगल में बैठे समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेता शिवपाल सिंह यादव भी मुस्कराते देते। लेकिन क्या आपने ये सोचा कि योगी आदित्यनाथ विपक्ष को इतना सटीक जवाब कैसे देते हैं? आखिर सदन में बैठे-बैठे वो विपक्ष का जवाब कैसे खोजते रहते हैं? उन्हीं के अंदाज में जवाब देने का वो तरीका कैसे खोज लेते हैं?

मौजूदा बजट सत्र के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रतिपक्ष के नेता माता प्रसाद पांडेय की एक-एक बात को पूरी तरह संयमित और शिष्ट भाषा में न केवल जवाब ही दिया, बल्कि अपने तर्कों से यह साबित भी कर दिया कि वह माता प्रसाद पांडेय पर ‘बीस’ पड़ते हैं। राजनीतिक गलियारों के खुसुर-पुसुर की मानें तो विधानसभा में क्या बोलना है, वो ‘माता’ हो या ‘शिव’ चुपके से योगी को एक दिन पहले ही पहुंचवा देते हैं। ये सही है या गलत लेकिन मैं आपको एक वाकया सुनाता हूं। देश के एक नामवर पत्रकार ने लोकसभE चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के बड़े नेता शिवपाल सिंह यादव का इंटरव्यू लिया था। तब इंटरव्यू के बाद शिवपाल ने उस नामचीन पत्रकार से कहा था- ‘मेरा नाम कहीं उद्धृत न करना, लेकिन मेरी और माता प्रसाद पांडेय (दोनों) की योगी आदित्यनाथ से दांत काटी दोस्ती है। अगर आपको यकीन न हो तो मैं योगी के निजी नम्बर पर फोन मिलाता हूं। देखिएगा वो मेरा फोन तुरंत उठाएंगे और हुआ भी वही था।’ अब आप समझ सकते हैं कि पूरा माजरा क्या है। वैसे योगी आदित्यनाथ भगवान भक्त हैं और उन्हें भगवत शक्ति भी प्राप्त है। शायद यही सबसे बड़ा कारण है कि वह विपक्षियों की बात पूरे तर्क के साथ काटते हैं।

एक और वाकये पर नजर डालिए। घटना आज से दो साल पहले की है। तब भी विधानसभा का इसी तरह बजट सत्र चल रहा था। ताऱीख थी 24 फरवरी 2023 की। उस दिन शाम को पांच बजे प्रयागराज में उमेश पाल की हत्या कर दी गई थी। इस हत्या का सीधा आरोप अरशद और उसके वालिद अतीक अहमद पर सीधे-सीधे लगा था। गौरतलब है कि अतीक अहमद कभी पूर्व सीएम अखिलेश और उनके मरहूम पिता मुलायम सिंह यादव का दाया हाथ हुआ करता था। अगले दिन यानी 25 फरवरी को इस मसले को लेकर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव और सीएम योगी के बीच तीखी झड़प हुई थी। तब योगी नेता प्रतिपक्ष पर न केवल गरजे बल्कि माफिया अतीक और उसकी सल्तनत पर तूफानी चक्रवात की तरह बरस भी पड़े थे। योगी ने गरजते हुए घोषणा की थी कि मैं इस माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा। उस समय जब अखिलेश और योगी में जुबानी जंग छिड़ी थी, तब भी ‘चच्चू’ सदन में बैठकर मंद-मंद मुस्करा रहे थे।

बाद में जब शिवपाल सिंह यादव की बारी आई तो उन्होंने बड़े ही सरल अंदाज में कहा कि योगी जी सदन में आपको इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। तब माहौल को ‘मुलायम’ बनाते हुए योगी ने सदन में कहा था कि चच्चू यह सब आपके आशीर्वाद की ही देन है। इस जवाब पर शिवपाल अखिलेश की तरफ झांके और वापस मुस्कुराने लगे। कुछ उसी तरह इस बार के सत्र में भी योगी ने जब शिवपाल को चच्चू और सबसे बड़ा समाजवादी नेता कहा, वो मुस्कराने लगे।

पूरी दुनिया में हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता के रूप में स्थापित हो चुके योगी आदित्यनाथ की राजनीति में इंट्री ‘एंग्री यंगमैन’ के रूप में हुई थी। आज 31 साल बाद, जब वो विधानसभा में विपक्ष के सवालों का जवाब दे रहे थे तो उनका अंदाज कुछ वैसा ही था, जैसा गोरखपुर में कलेक्ट्रेट के घेराव के समय था। सदन में उन्होंने एक साथी पत्रकार अनिल सिंह की सोशल मीडिया पर लिखी टिप्पणी को भी पढ़ा। सीएम योगी ने कहा कि महाकुंभ में जिसने जो तलाशा उसको वो मिला। गिद्धों को लाश मिली, सूअरों को गंदगी मिली… जबकि, संवेदनशील लोगों को रिश्तो की सुंदर तस्वीर मिली। सज्जनों को सज्जनता मिली, व्यापारियों को धंधा मिला, श्रद्धालुओं को साफ-सुथरी व्यवस्था मिली… जिसकी जैसी नियत थी, दृष्टि थी, उसको वैसा मिला। 21वीं सदी की शुरुआत में उनके समर्थक नारे लगाते घूमते ‘गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है।’ मुख्तार अंसारी की मुखाफत के बाद नारा बदला। नारा हुआ ‘पूर्वांचल में रहना है तो योगी-योगी कहना है’। अब जब प्रदेश भर के माफिय पर बुल्डोजर बाबा का कहर टूटा तो नारा हो गया- ‘यूपी में रहना है तो योग-योगी कहना है।

सत्ता के गलियारे में कुछ लोगों की खुसुर-पुसुर पर सहसा विश्वास भी नहीं होता। वो कहते हैं कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष क्या आवाज उठाएंगे, वो एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री को बता देते हैं। नेता प्रतिपक्ष को आपत्ति थी कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र और राज्यपाल के अभिभाषण में महाकुंभ को वैश्विक स्तर का आयोजन बनाने के लिए क्यों उल्लेख किया? जवाब में सीएम ने सधे लहजे का प्रयोग किया था। कहा- महाकुंभ में अगर विश्वस्तरीय सुविधा न होती तो अब तक 63 करोड़ से अधिक श्रद्धालु उसका हिस्सा नहीं बनते… मैं भारत के हर महापुरूष को सम्मान देता हूं जिसने भारत में जन्म लिया है। योगी आदित्यनाथ ही हिंदुत्व का भला कर सकते हैं, इसका अंदाजा मार्च 2016 के गोरखपुर संत सम्मेलन में जुटे को हो गया था। उन्होंने एक स्वर में कहा था कि हम साल 1992 में एक हुए तो ‘ढांचा’ तोड़ दिया। अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ जाए, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते रामजन्मभूमि मंदिर नहीं बन पाएगा, इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा।

उनकी वो भविष्यवाणी महाकुम्भ की सफलता के बाद सम्भल कांड में साफ-साफ नजर भी आ रहा है। जिस तरह से योगी आदित्यनाथ सक्रिय हैं, लगता है वो हिंदुत्व के एजेंडे में वो पहले की तरह पैनापन लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। संभल में हुई हिंसा और बवाल को लेकर योगी आदित्‍यनाथ ने यूपी विधानसभा में जो भाषण दिया,  उससे भी साफ है कि कैसे संभल के बहाने हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ाने की कवायद चल रही है।

हालात बेकाबू होने के बाद भी मुद्दे से नहीं डिगे सीएम योगी

सदन में सीएम योगी ने कहा था, बाबरनामा भी कहता है कि हरिहर मंदिर को तोड़कर वहां ढांचा खड़ा किया गया… हमारे पुराण भी कहते हैं कि भगवान विष्‍णु का दसवां अवतार संभल में ही होगा… इसी संभल में होगा। वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर पंकज की एक बात और बातें खत्म- सदन के अंदर और बाहर योगी आदित्यनाथ की गर्जना के आगे विपक्ष के सभी नेता मिमियाते नजर आते हैं। अभी किसी भी नेता के रीढ़ में वो दम नहीं जो योगी के तर्कों, प्रहारों और बातों का जवाब दे सके। उत्तर प्रदेश में फिलहाल अभी दूर-दूर तक नहीं।

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