
अजमेर से राजेन्द्र गुप्ता
कुंभ संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे ज्योतिष और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, जब सूर्य मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ संक्रांति मनाई जाती है। इस विशेष अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान, पूजा, ध्यान, जप, तप और दान करने से व्यक्ति को देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसके पापों का क्षय होता है। इस दिन भगवान सूर्य की आराधना का विशेष महत्व होता है, क्योंकि सूर्य देव को ग्रहों का अधिपति माना जाता है। उनकी उपासना से व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
कुंभ संक्रांति की तिथि
दृक पंचांग के अनुसार इस वर्ष कुंभ संक्रांति का पर्व 12 फरवरी 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन गंगा स्नान, पूजा-पाठ और दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है।
कुंभ संक्रांति क्षण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य 12 फरवरी 2025, बुधवार की रात 10:04 बजे कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में कुम्भ संक्रान्ति का क्षण रात के 10:04 बजे रहने वाला है।
कुंभ संक्रांति का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस दिन पुण्य काल दोपहर 12:35 बजे से शाम 06:09 बजे तक रहेगा। वहीं महा पुण्य काल शाम 04:18 बजे से शाम 06:09 बजे तक रहेगा। इस अवधि में किए गए धार्मिक कार्य विशेष फलदायी माने जाते हैं।
कुंभ संक्रांति का महत्व
सनातन धर्म में संक्रांति तिथियों का विशेष महत्व होता है। इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। कुंभ संक्रांति के अवसर पर तिल का दान, सूर्य देव की पूजा और ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह दिन विशेष रूप से मकर और सिंह राशि वालों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
कुंभ संक्रांति का शुभ योग
कुंभ संक्रांति के अवसर पर सौभाग्य और शोभन योग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही अश्लेषा और मघा नक्षत्र का भी संयोग है, साथ ही शिववास योग भी उपस्थित है। इन योगों में सूर्य देव की पूजा करने से साधक को उनकी इच्छित फल की प्राप्ति होगी। इस दिन पितरों की पूजा (तर्पण) भी की जा सकती है।
कुंभ संक्रांति की पूजा विधि
कुंभ संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागकर गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
इसके बाद, उस जल में गंगाजल और तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्पित करें।
अपने घर के मंदिर में दीप जलाएं और सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें।
सूर्य चालीसा का पाठ करें और किसी जरूरतमंद व्यक्ति या पंडित को दान दें।