दो टूक : कुम्भ हादसा : जिम्मेदार कौन?

राजेश श्रीवास्तव

144 वर्षों के बाद आये प्रयागराज महाकुम्भ में जिस बड़ी तादाद में लोग पहुंच रहे हैं, उससे यह अंदेशा तो पहले से था कि कुछ भी गड़बड़ हुई तो कोई बहुत बड़ा हादसा हो सकता है परन्तु उत्तर प्रदेश की सरकार का दावा यह था कि यहां की व्यवस्था चाक-चौबन्द है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आश्वासन पर सबने आंख बंद करके भरोसा किया और बिना सोचे-समझे कुंभ की ओर कूच कर दिया। परिणाम जिन्हें कुंभ में मोक्ष मिल गयी उनके परिजन दर-दर भटक रहे और उन्हें अस्थियां प्रवाहित करने के लिए शव भी नहीं मिल रहा। वह तो यही समझ रहे कि कुंभ में वह कहीं खो गये। मुख्यमंत्री हादसे के बाद भावुक तो हुए, उनकी आंखों से आंसू भी छलक पड़े पर राजा की आंख में आंसू आना तो ठीक है लेकिन उसको अपनी सत्ता बेहतर बनाये रखने के लिए कड़क होना भी जरूरी है। आज भी हादसे के जिम्मेदार जिलाधिकारी और मेलाधिकारी विजय किरण आनंद, डीआईजी वैभव कृष्ण और एसएसपी राजेश द्बिवेदी सभी अपने-अपने पदों पर विराजमान हैं। सत्ता को तो छोड़ दीजिये।

दावा किय़ा गया था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में इतनी पुख्ता व्यवस्था की गयी है कि कोई भी अप्रिय घटना होने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। इस महाकुम्भ के बारे में देश-विदेश में विभिन्न माध्यमों से भरपूर प्रचार किया गया है और लोगों को बड़ी तादाद में इसमें आने तथा स्नान कर पुण्य कमाने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार का पहले से दावा था कि बुधवार को मौनी अमावस्या पर स्नान करने के लिये श्रद्धालुओं की रिकार्ड़ तोड़ भीड़ रहेगी। यह संख्या 9-10 करोड़ तक होने की बात कही जा रही थी। सरकार के सारे दावे ध्वस्त हो गये जब मंगलवार-बुधवार के दरमियान रात में संगम में डुबकी लगाने उमड़ी भीड़ ने बैरिकेड्स तोड़ दिये और इसके चलते हुई भगदड़ में सैकड़ों कुचले गये। बुधवार तक मरने वालों की शासकीय स्तर पर संख्या तकरीबन 30 बतलाई गई है और लगभग 70 लोगों के ज़ख्मी होने की बात कही गई है। भीड़ को देखते हुए तथा जिस बड़े पैमाने पर भगदड़ मची, उसके चलते कोई भी इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं कर रहा है। सभी का कहना है कि मृतकों तथा घायलों की वास्तविक संख्या कहीं अधिक हो सकती है। सवाल यह है कि क्या कभी सही आंकड़े सामने आ सकेंगे? सवाल तो यह भी उठता है कि क्या कोई इस घटना की जिम्मेदारी लेगा? भारतीय जनता पार्टी की प्रशासन प्रणाली का जो ट्रैक रिकॉर्ड रहा है, उसके अनुसार तो दोनों का जवाब एक ही होगा- ‘नहीं, बिलकुल नहीं। न तो लोगों को कभी जानकारी होगी कि कितने लोगों ने जानें गंवाईं और जहां तक इसकी जिम्मेदारी लेने की बात है, तो वह कभी भी नहीं ली जायेगी। मुख्यमंत्री योगी और प्रधानमंत्री मोदी। ये वे लोग हैं जो इस आयोजन का श्रेय ज़रूर लेते रहे हैं।

इस आयोजन की तैयारियां लम्बे समय से चल रही थीं। मेला क्षेत्र में अभूतपूर्व विस्तार किया गया था, तथा इसके लिये राज्य सरकार ने करीब 5500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की । ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्व के इस आयोजन को भाजपा ने अपनी धु्रवीकरण की राजनीति का उपकरण बना लिया है। ऐसा नहीं कि इस हादसे के बाद कुम्भ को लेकर भाजपा के समर्थन में उतरने वाली वह ट्रोल आर्मी नदारद हो गयी हो। सोशल मीडिया पर देखें तो वे श्रद्धालुओं को ही दोषी ठहरा रहे हैं। उनके अनुसार ‘भीड़ अनावश्यक जल्दबाजी कर रही थी। कुछ लोग कुछ युवकों को अखिलेश यादव जिंदाबाद का नारा लगाते हुए वायरल कर रहे हैं लेकिन इन युवकों के आसपास कहीं कुंभ का क्षेत्र नहीं दिख रहा है। वीडियो बहुत बारीकी से क्राप किया गया है । असलियत तो यह है कि उप्र सरकार, विभिन्न शासकीय विभाग तथा पूरी भाजपा लोगों को इस कुम्भ में ‘अमृत स्नानु के लिये प्रेरित कर रही थी। बुधवार को देश भर के प्रमुख समाचारपत्रों में इस आशय के पेज भर के विज्ञापन उप्र सरकार की ओर से प्रकाशित कराये गये हैं। वहीं कथित मुख्यधारा का मीडिया सरकार को निर्दोष बतलाने के उपाय कर रहा है। वह यह तो बतला रहा है कि इस हादसे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने सुबह से कितनी बार योगी से बात की और वे कितने व्यथित हैं, परन्तु वह यह नहीं पूछ रहा है कि इस घटना का जवाबदेह कौन है। उसकी कोशिश यही है कि न तो लोगों तक सही आंकड़े पहुंचे और न ही इस त्रासदी की व्यथा। मृतकों की संख्या तो छोड़िये हादसों की भी सही संख्या नहीं बतायी जा रही।

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दिलचस्प तो यह है कि महाकुंभ में आये शंकराचार्य भी दो धड़ों में बंटे हैं कुछ शासन सत्ता के साथ हैं तो कुछ विपक्षी ख्ोमें के साथ। यह बेहद दुखद है। संत का काम निष्पक्षता का है अगर संत ख्ोमे में बंट गया तो इससे दुखद क्या हो सकता है। जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे, तब 1954 में यहीं के कुम्भ में मौनी अमावस्या के ही दिन भगदड़ हुई थी। उसमें 8०० से 1००० लोगों के मारे जाने की बात तत्कालीन सरकारों ने (केन्द्र व राज्य) नि:संकोच स्वीकारी थी, खेद जताया था और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों उसके प्रति सचेत रहने का भी आश्वासन दिया था। 2०13 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते मंत्री आजम खान इसी कुम्भ के प्रभारी थे। तब भी भगदड़ हुई थी, जिस में 36 श्रद्धालु मारे गये थे, जिसके बाद आजम खान ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए त्यागपत्र दे दिया था। अब इस त्रासदी का जिम्मेदार कौन है, यह तय होना चाहिए। जो भी अधिकारी जिम्मेदार हैं उन पर कार्रवाई तय होनी चाहिए और सरकार को सही आंकड़ा जारी करना चाहिए। लेकिन यह आंकड़ा कभी भी सरकार की ओर से 36 के ऊपर नहीं जायेगा क्योंकि समाजवादी पार्टी में 36 मौतों का आंकड़ा दस्तावेजों में दर्ज है तो उससे तो कम ही रहना है, यह स्वाभाविक है। सरकार को चाहिए कि आंकड़ों की बाजीगरी के बजाय आगे आने वाले अमृत ·मान की व्यवस्था ऐसी रख्ो कि वहां आने वालों को इस बात का एहसास हो किसान ही नहीं व्यवस्था भी अमृत जैसी ही है।

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