- अबकी बार योगी का नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ ने दिलाई दमदार जीत
- शिवसेना के वोटरों में भारी टूट, बीजेपी जीत गई महाराष्ट्र के सभी बूथ
मुम्बई से लाइव शिवानंद चंद
गहरे समंदर की खामोशी पढ़ना आसान है, लेकिन वोटरों की खामोशी पढ़ना किसी भी शिक्षाविद, विद्वान और राजनेता के लिए कठि न है। यही गच्चा महाराष्ट्र में महाअघाड़ी के साथ हो गया। महायुति गठबंधन ने वोटरों की नब्ज पढ़ने में थोड़ी बारीकी दिखाई और नम्बर गेम में काफ़ी आगे निकल गए। समाचार लिखे जाने तक महायुति गठबंधन ने महाराष्ट्र के 288 सीटों पर 221 सीटों पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है। वहीं कांग्रेस की अगुआई वाली इंडी गठबंधन ने 54 सीटों पर बढ़त बनाई हुई है। वहीं 13 सीटों पर अन्य पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों की बढ़त दिख रही है।
जानकारों का कहना है कि इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ का नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ ने जलवा बिखेर दिया। इसे आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही कहा- ‘एक हैं तो सेफ़ हैं’ हिंदू वोटर एकजुट होते गए। वहीं फ़तवा जारी करने वाले मौलानाओं का जलवा धूल ज़मीन पर असर नहीं दिखा पाया। दूसरी ओर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के पिछड़ने पर शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि कुछ तो गड़बड़ है। ये लोगों की राय नहीं है। ये जनता का फैसला नहीं है। दो दिन पहले अडानी के खिलाफ वारंट निकला है, उसमें बीजेपी की पूरी पोल खुल गई। उससे ध्यान हटाने के लिए ये सब किया गया है। मुंबई गौतम अडाणी के जेब में जा रहा है। महाराष्ट्र की जनता का मन हमें मालूम था। हर चुनाव क्षेत्र में नोटों की मशीन लगाई थी, जिस राज्य में सबसे बड़ी बेईमानी होती है उस राज्य की जनता बेइमान नहीं है।
महाराष्ट्र में बीजेपी 131, शिवसेना (शिंदे) 48, एनसीपी (अजित पवार) 31 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं कांग्रेस 35, शिवसेना (उद्धव) 20 और शरद पवार की NCP 10 सीटों पर आगे चल रही है। महाराष्ट्र में BJP ने 2014 में सबसे ज्यादा 122 सीटें जीती थीं। अगर रुझान नतीजों में बदले तो महाराष्ट्र में भाजपा ऑल टाइम हाई रिकॉर्ड बना लेगी।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि उद्धव की शिवसेना कांग्रेस के चक्कर में फिसड्डी साबित हुई है। बाला साहेब की शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे पर गरजती-बरसती थी, लेकिन उद्धव मुसलमानों के वोट के चक्कर में कहीं सेक्यूलर तो कहीं सॉफ़्ट हिंदुत्व की राह पर चल पड़ी। इसलिए उद्धव ठाकरे को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा। मुम्बई के नरीमन प्वाइंट स्थित शिवसेना कार्यालय ‘शिवालय’ पर जाली टोपी पहने युवाओं को देखकर हिंदुओं का उद्धव की शिवसेना से मोहभंग हुआ है।
मई 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान एक भाषण को देखिए, तब समझ में आएगा कि हिंदुओं का मोहभंग उद्धव से कैसे हो गया। चैम्बूर के चीता कैम्प पहुँचे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कहते हैं- “मैं शायद पहली बार आपके सामने आया हूँ क्योंकि हमारे बीच एक दीवार थी। हम एक दूसरे से लड़ाई करते थे। एक सवाल मैं आपसे पूछता हूँ क्या मैंने हिंदुत्व छोड़ा है? क्या मेरा हिंदुत्व आपको मंज़ूर है? मेरे हिंदुत्व और भाजपा के हिंदुत्व में फ़र्क़ है या नहीं है? मैं भी जय श्री राम कहता हूं लेकिन मेरा हिंदुत्व, ह्रदय में राम और हर एक हाथ को काम देने वाला हिंदुत्व है। हमारा हिंदुत्व घर का चूल्हा जलाने वाला हिंदुत्व है, घर जलाने वाला नहीं।”
वहीं साल 1987 में मुंबई के विले पारले के उपचुनाव में बाल ठाकरे ने एक सभा में कहा था, “हम ये चुनाव हिंदुओं की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं। हमें मुस्लिम वोटों की परवाह नहीं है। यह देश हिन्दुओं का है और उनका ही रहेगा। इस चुनाव में शिवसेना के उम्मीदवार रमेश प्रभु की जीत हुई थी लेकिन 1989 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने बाल ठाकरे और रमेश प्रभु दोनों को ही भड़काऊ भाषण के मामले में दोषी पाया और नतीजे को रद्द कर दिया गया था। अब सवाल यह है कि पिता के बनाए विरासत के हटकर जब उद्धव राजनीति करने लगे तो वोटरों ने उनसे किनारा कर लिया।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव में महाअघाड़ी के हार का कारण शरद पवार भी हैं। वो जहां-जहां ख़ुद मज़बूत दिखे, वहाँ-वहां अपने लिए सीटें माँग ली और जहां वो कमजोर दिखे, वो सीटें उन्होंने कांग्रेस और उद्धव गुट की शिवसेना के लिए छोड़ दिया। यहाँ तक की शीट शेयरिंग में उन्होंने सभी पार्टियों को क़रीब-करीब बराबरी पर ला खड़ा किया। उन्होंने मराठवाड़ा की कई सीटें अपने पास रखी और शीट शेयरिंग के साथ-साथ अपनी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी जमाए रखी थी। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि वोटरों ने भगवा की तरह नज़रें जमा रखी थीं और पासा पूरी तरह से पलट दिया।