आज से नहीं कई दशक पहले से यूपी खाकी वर्दी रही सवालों के घेरे में

  • मानवाधिकार का निर्देश पुलिस के ठेंगे पर, कोई आदेश नहीं मानती पुलिस
  • खत्म होने लगा पुलिसिया इकबाल, कई बार जनाक्रोश भी पड़ता है भारी
  • दलित अमन गौतम, मोहित पांडेय या फिर वीरेंद्र कांड ये सिर्फ बानगी भर

ए अहमद सौदागर

लखनऊ। हाईटेक पुलिसिंग का डंका बजाने वाली मित्र पुलिस भले ही खुद को सफाई देती फिर रही हो, लेकिन कड़वा सच यह है कि यूपी पुलिस हकीकत में कितनी आततायी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दबिश देने से लेकर थाने चौकियों में थर्ड डिग्री के इस्तेमाल में जिस तरह पेश आती है उसका चेहरा किसी खूनी दरिंदे से कम नहीं होता।

छापे और दबिश के दौरान महिलाओं, लडकियों से बदसलूकी उनसे मारपीट की घटनाएं तो आम है ही लेकिन थाने कोतवाली में बलात्कार के बाद हत्या कर देना भी यूपी पुलिस का अमानवीय चेहरे को दर्शाता है। कहीं दबिश के दौरान महिलाओं और लड़कियों को थप्पड़ मारा जाता है, तो कहीं प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठीचार्ज के नाम वहशियों की तरह टूट पड़ती है। ऐसे भी मामले हैं कि थानों में आरोपी की इतनी पिटाई की जाती है कि वह पीड़ित आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।ॉ

पुलिस प्रताड़ना से लोगों का मरना या फिर पीड़ित और प्रताड़ित व्यक्ति द्वारा जान देने जैसी वारदातें मानवाधिकार के निर्देशों का खुला उलंघन है। यूपी की पुलिस के रवैए और जुल्म के दास्तानों पर गौर करें तो हवालात के भीतर जान देने और विरोध में चौकी थानों में तोड़फोड़ व आगजनी करने की घटनाएं पहले से चली आ रही है।

वर्ष 2024 में गौर करें तो राजधानी लखनऊ के विकासनगर में दलित अमन गौतम, चिनहट में कारोबारी मोहित कुमार पांडेय व पीजीआई में चोरी के आरोप में पुलिस पिटाई तो महज बानगी भर है। पिछले एक दशक मूड़ कर देखें तो पांच जनवरी 2011 – गाजीपुर जिले के जमानियां पोस्ट आफिस से 51 लाख 70 हजार रुपए की चोरी करने के मामले में गिरफ्तारी का विरोध कर रहे लोग हिंसा पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों ने चौकी में तोड़फोड़ कर चौकी प्रभारी रामा राव की गोली मारकर हत्या कर दी, जबकि इंस्पेक्टर सहित पांच पुलिसकर्मी बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

तीन जनवरी 2011- देवरिया जिले में आंदोलित भीड़ पर पुलिस फायरिंग से एक छात्र की जान चली गई थी। 17 अप्रैल 2013 – हसनगंज कोतवाली हवालात में अवैध असलहा रखने के आरोप में पकड़े गए हसनगंज निवासी वीरेंद्र मिश्रा पुलिस की गंभीर प्रताड़ना के चलते हवालात में संदिग्ध हालात में मौत हो गई। इस मामले में मृतक के परिजनों अपने समर्थकों के साथ थाने का घेराव किया तो इंस्पेक्टर सहित छह पुलिसकर्मी निलंबित हुए थे।

यही नहीं कुछ साल पहले बख्शी का तालाब थाने में बंद आरोपी सरैया गांव निवासी वीरेंद्र सिंह ने जन्माष्टमी की रात बंदीगृह में खुदकुशी कर ली थी। पुलिस वीरेंद्र सिंह को वर्ष 1999 में बीकेटी पुलिस छेड़छाड़ के मामले में पकड़कर थाने लाई थी।
वीरेंद्र ने यह कदम उस समय बढ़ाया, जब सभी पुलिसकर्मी जन्माष्टमी के मौके पर हो रहे आर्केस्ट्रा में मशगूल थे। दो दिसंबर 2007- कृष्णा नगर कोतवाली की हवालात में चोरी के आरोप में पकड़े गए राहुल के सिर पर वारकर एक हत्यारोपी ने मारकर सनसनी फैला दी थी। इस घटना के बाद तत्कालीन इंस्पेक्टर अजीत सिंह चौहान सहित अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हुई थी।

मैनपुरी: करहल में मतदान के दौरान दलित युवती की हत्या 

 

आठ सितंबर 2012- मड़ियांव थाने में बंद सुरेश रावत नाम के युवक ने ज़हरीला पदार्थ खाकर मौत को गले लगा लिया था। दस जून 2011- लखीमपुर-खीरी जिले के निघासन थाना परिसर में सोनम का शव मिला। उसकी हत्या कर हत्यारों ने शव को पेड़ से लटका दिया था। इस घटना को अंजाम किसी आम आदमी ने नहीं बल्कि इसी थाने में तैनात दागी पुलिसकर्मियों ने दिया था।
20 सितंबर 2011 को लखनऊ जिला जेल में मलिहाबाद के बहेलिया गांव निवासी निवासी कैदी प्रेम कुमार का शव सलाखों के पीछे फांसी के फंदे पर लटका मिला। दस अगस्त 2015 को सीतापुर जिले के महमूदाबाद कोतवाली के शौचालय में एक युवती का शव मिला। युवती के गले में उसी के दुपट्टे का फंदा था।

आखिर जेल में हो रही बंदियों की मौत का जिम्मेदार कौन!

इस मामले की जानकारी होते ही स्थानीय लोगों व परिजनों का ग़ुस्सा फूट पड़ा और कोतवाली का घेराव कर प्रदर्शन किया कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठियां बरसाई। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के चलते पुलिस फायरिंग में एक युवक की जान चली गई थी। यही नहीं 31 अगस्त 2015 को बाराबंकी जिले के देवा कोतवाली में मड़ियांव के सैरपुर निवासी सुभाष रावत की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। उसका शव हवालात में लटका मिला था। इस वारदात की जानकारी होने पर मृतक के परिजन सैकड़ों समर्थकों के साथ माती चौकी पहुंचे और चौकी को आग के हवाले कर पूरे अभिलेखों को जलाकर राख कर दिया।

बस इतनी वारदातें दर्शाने के लिए फिलहाल काफी है कि या तो पुलिस का इकबाल खत्म हो रहा है या जनाक्रोश की हदें टूट रही हैं। पुलिस के जिम्मेदार आलाधिकारी भले ही अधीनस्थों को तरह-तरह का पाठ पढ़ा रहे हों लेकिन आज भी चरित्र जस का तस ही नजर आ रहा है। इसका जीता-जागता उदाहरण राजधानी लखनऊ में हाल में हुई घटनाएं।

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