सूर्य उपासना का महापर्व छठः वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा हो जाती है पूरी

  • इन तीन कथाओं से आप भी जान जाएँगे सूर्य षष्ठी यानी छठी मइया व्रत का महात्म्य
  • धनधान्य, आयु और आरोग्य देती हैं छठी मइया, जानें इनकी कथाएं

सुनील कुमार
इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पर्व में सदियों से गंगा नदी व अन्य सरोवरों में सभी जाति व धर्मों के लोग कतारबद्ध होकर अपने आराध्य देव सूर्य भगवान की आराधना करते हैं। यह झलक अपने आप ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भी मान्यता को पूर्ण करती है। इस दिन स्त्री-पुरुष इस पर्व को पूरी आस्था, भावना एवं धार्मिक रीति-रिवाज के साथ करते हैं। कहा जाता है कि यह व्रत करने वालों को भगवान सूर्य शीघ्र ही मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। तभी तो महिलाएँ अपने गाने में गाती हैं कि ‘बांझन के पुत्र देहलू, निर्धन को माया- रोगिन के निरोग कईलू और मनसा सब के पुरैलू।’

छठ पर्व कैसे और कब से मनाया जाता है?

इसके पीछे अनगिनत कहानियां हैं, जो वेद और पुराण से सुनने को मिलता है। यह कटु सत्य है कि जो व्यक्ति इस रहस्यमय कथा को श्रद्धा से श्रवण करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत को सबसे पहले नाग कन्या ने किया था। नाग कन्या से सुनकर सुकन्या ने च्यवन ऋषि के पुत्र को लौटाया था। इसी कथा का अनुकरण करते हुए पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने पुरोहित महाराज धौम्य से इस महान पर्व के विधि-विधान का श्रवण कर इस व्रत को कर अपने पतियों का राजपाठ एवं राजलक्ष्मी को प्राप्त कराया था।
कथा इस प्रकार है कि पाण्डव ने अपने वनवासी जीवन में भोजपत्र पहनकर संकटों का सामना करते हुए निवास कर रहे थे। तब उनके निवास स्थान पर ब्रह्म देवता तपो रूप अट्ठासी हजार मुनि आ पहुंचे, जिससे महाराज युधिष्ठिर यह सोचकर घबरा उठे कि मेरे आंगन में पधारे महात्माओं के भोजन का प्रबंध कैसे होगा। इस दृश्य को देखकर द्रौपदी अत्यन्त दुख से व्याकुल हो गई और इस समस्या के निवारण के लिए अपने पुरोहित महाराज धौम्य के पास जाकर विनम्रतापूर्वक उपाय मांगा। प्रति उत्तर में महाराज धौम्य ने पांचाली के कहा कि तुम भी वहीं सूर्य षष्ठी व्रत करो जिस व्रत को पूर्व काल में नाग कन्या के उपदेश से सुकन्या ने किया था। परिणामस्वरूप उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हुई थीं।
इस कथा को विस्तारपूर्वक बतलाते हुए महाराज धौम्य ने द्रोपदी से कहा कि सुनों सत्ययुग में एक शर्याति नामक राजा था। जिनकी एक हजार स्त्रियां थी, परंतु उनसे एक ही कन्या उत्पन्न हुई थी। पिता की प्रिय होने के कारण उस कन्या का नाम सुकन्या पड़ा। एक समय राजा शर्याति मृग शिकार के लिए मंत्री, सेना, बड़े-बड़े योद्धा और पुरोहित को लेकर जंगल की ओर गए। शिकार खेलने के निमित राजा को जंगल में वास करते हुए कई दिन व्यतीत हो गए।
एक समय की बात है कि सखियों के साथ सुकन्या फूल लेने हेतु जंगल गई। वहां पर च्यवन मुनि का स्थान था जहां पर मुनिवर च्यवन ध्यानमग्न हो तपस्या में लीन थे। कठोर तपस्या के कारण मुनि के शरीर में केवल हड्डियां ही दिखाई दे रही थी। साथ ही उनके पूरे शरीर को दीमक ने खा लिया था दिमक के खाने की वजह से उनके शरीर में हड्डी के अतिरिक्त आंख के स्थान पर दो छिद्र दिखाई दे रहे थे। सुकन्या च्यवन मुनि के इस रूप को देखकर विस्मित हो गई और मुनि की दोनों आंखे कांटों से फोड़ दी। परिणामस्वरूप, मुनि के नेत्रों से रक्त की धारा बहने लगी। सुकन्या द्वारा च्यवन मुनि के नेत्र फोड़े जाने के कारण राजा और सेना का मल-मूत्र बंद हो गया। मल-मूत्र बंद हो जाने के कारण व्याकुल होकर तीन दिन बाद राजा ने अपने पुरोहित से इसका कारण पूछा। प्रति उत्तर में पुरोहित ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर कहा कि हे राजन आपकी कन्या ने अज्ञानतावश च्यवन मुनि के दोनों नेत्र कांटों से फोड़ दिया है, जिससे रुधिर बह रहा है। उन्हीं के क्रोध से आपको यह कष्ट झेलना पड़ रहा है। अतः इस कष्ट से निवारण हेतु आपका कर्तव्य बनता है कि आप मुनि की सेवा के लिए अपनी कन्या सुकन्या को मुनि को दान कर दें।
राजा ने अपने पुराहित के आदेश को मानते हुए अपनी बेटी सुकन्या को मुनि की सेवा में अर्पित कर दिया, जिससे मुनि प्रसन्न हो गए और उस दिन से राजा के सारे कष्ट समाप्त हो गए। सुकन्या च्यवन मुनि की सेवा करते हुए एक दिन कार्तिक मास में जल लेने हेतु पुष्करिणी (छोटे तालाब) में गई जहां उन्होंने अनेकों आभूषणों से युक्त नाग कन्या को देखा। वह नाग कन्या भगवान सूर्य की आराधना कर रही थी।
इसे देखकर सुकन्या ने नाग कन्या से पूछा कि यह  आप क्या कर रही हैं ?  सुकन्या के इस मधुर वचन को सुनकर नाग कन्या ने कहा कि मैं नाग कन्या हूं और मैं सभी सुखों को देने वाले भगवान सूर्य की पूजा कर रही हूं। नाग कन्या ने इस पूजा के विधि-विधान को बताते  हुए यह कि कार्तिक शुल्क षष्ठी को सप्तमी युक्त होने पर सर्व मनोरथ सिद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है। व्रती को चाहिए कि वह पंचमी के दिन नियम से व्रत को धारण करें, सायंकाल में खीर का भोजन करके जमीन पर सोए, छठ के दिन निर्जला रहें और अनेक प्रकार के फल और पकवान विशेषकर गुड़ से बना आटे का ठेकुआ आदि का नैवेद्य और सूर्य भगवान की प्रसन्नता के लिए गीत-वाद्य आदि गा-बजाकर उत्सव मनावें। जब तक सूर्य नारायण का दर्शन न हो तब तक व्रत को धारण किए रहें।
प्रातः काल सप्तमी को सूर्य नारायण के दर्शन कर अर्ध्य देवे और सूर्य भगवान के बाहर नाम का मनन कर दण्डवत प्रमाण करते हुए अर्ध्य देवे। इस प्रकार इस व्रत को विधिपूर्वक करने से सूर्य भगवान महान कष्ट को दूर कर मनवांछित फल देते हैं। नाग कन्या के इस वचन को सुनकर सुकन्या ने इस उत्तम व्रत को किया। इस व्रत के प्रभाव से च्यवन महाराज के नेत्र पूर्ववत हो गए,  उनका शरीर निरोग हो गया और सुकन्या के साथ लक्ष्मीनारायण की तरह सुख भोगने लगे।
इस कथा को सुनकर द्रौपदी ने भी पवित्र मन से इस पर्व को विधि-विधान के अनुसार किया, जिसके परिणामस्वरूप महाराजा युधिष्ठिर के चिंता का निराकरण हो गया और उन्होंने अपने यहां पधारे अट्ठासी हजार मुनिओं का आतिथ्य सत्कार किया। द्रौपदी के इस व्रत के प्रभाव से ही पाण्डवों को दोबारा राजलक्ष्मी प्राप्त हुई । कहा भी गया है कि जो भी स्त्री इस पुनीत छठ व्रत को करेगी उसके समस्त पाप नाश होकर सुकन्या की भांति पति सहित सुख पावेगी। इस घोर कलियुग में भी इस छठ पर्व की अपार महिमा है। इस महिमामयी एवं वरदायिनी छठ मैया के पर्व को सभी व्यक्ति चाहें वह किसी भी जाति या धर्म के क्यों न हो, सम्मान की नजरों से देखते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठी मैया सूर्य देव की ही बहन हैं। छठी मैया की उत्‍पत्ति के पीछे एक रोचक कथा है। पुराणों के अनुसार जब ब्रह्म देव सृष्टि की रचना कर रहे थे, तब उन्होंने खुद को दो भागों में विभाजित कर लिया था। एक भाग पुरुष और दूसरा प्रकृति बना। इसके बाद प्रकृति ने भी खुद को छह भागों में विभाजित कर लिया, जिसमें से एक भाग छठी मईया हैं। इस तरह छठी मैया देवी मां का छठा अंश हैं और उन्‍हें प्रकृति की देवी कहा जाता है। इसलिए छठ को प्रकृति की पूजा का पर्व भी कहा जाता है। छठ पर्व पुत्र और परिवार की रक्षा और लम्बी आयु की कामना के लिए किया जाता है। इसमें छठी मैया और सूर्य देव से घर-परिवार की रक्षा की प्रार्थना करते हुए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि जो कोई भी व्यक्ति पूरी आस्था, भक्ति और विश्वास के साथ इस पर्व को मनाता है और 36 घंटे का व्रत रखता है, छठी मईया और भगवान सूर्य खुद उसके पुत्र और परिवार की लंबी आयु की रक्षा करते हैं। साथ ही अपार सुख-समृद्धि भी देते हैं। अंत में मैं सारे विघ्न-बाधाओं एवं पापों का नाश करने वाले भगवान श्री सूर्य भगवान के श्री चरणों में उक्त दो पंक्तियों के साथ कोटि-कोटि नमन करते हुए छठी मइया की महिमा का इति श्री करता हूं।
एहि सूर्य सहस्त्राशी तेजोरोशे जगत्पते!
अनुकम्पय माँ भक्तया गृहार्ध्य दिवाकर!
(लेखक केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल, मध्यक्षेत्र में उप महानिरीक्षक हैं।)

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