बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा पर्व आज, जानें इस दिन क्या-क्या होता है खास

  • कई बरसों के दुर्लभ संयोग के बाद आया है यह शुभ दिन
  • इस दिन होती है शस्त्र पूजा, शामी पूजा और अपराजिता पूजा 

राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

दशहरा, जिसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। नवरात्रि के नौ दिवसीय त्योहार के बाद, अश्विन के हिंदू महीने के दसवें दिन मनाया जाने वाला दशहरा पूरे भारत में सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्व रखता है।
दशहरा भगवान राम की राक्षस राजा रावण पर विजय का स्मरण करता है, जो प्राचीन महाकाव्य रामायण का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। यह दिन बुराई (अधर्म) पर अच्छाई (धर्म) की जीत का प्रतीक है। यह त्यौहार न केवल इस महाकाव्य विजय का सम्मान करता है, बल्कि सार्वभौमिक संदेश को भी पुष्ट करता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में हमेशा धर्म की ही जीत होती है।\

कब है दशहरा ?

दशमी तिथि का आरंभ: 12 अक्तूबर प्रातः 10 बजकर 58 मिनट पर

तिथि का समापन: 13 अक्तूबर 2024, प्रातः 09 बजकर 08 मिनट पर

ऐसे में दशहरा 12 अक्तूबर 2024 को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विजयदशमी के दिन श्रवण नक्षत्र का होना बहुत शुभ होता है, और इस साल इसका संयोग बन रहा है। बता दें श्रवण नक्षत्र 12 अक्तूबर को सुबह 5:00 बजकर 25 मिनट से प्रारंभ होकर 13 अक्तूबर को सुबह 4:27 मिनट पर समाप्त हो रहा है।

दशहरा की पूजा विधि

  • दशहरा की पूजा सदैव अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।
  • अपने घर के ईशान कोण में शुभ स्थान पर दशहरा पूजन करें।
  • पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र करके चंदन का लेप करें और आठ कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र निर्मित करें।
  • इसके पश्चात संकल्प मंत्र का जप करें तथा देवी अपराजिता से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
  • अब अष्टदल चक्र के मध्य में ‘अपराजिताय नमः’ मंत्र द्वारा देवी की प्रतिमा स्थापित करके आह्वान करें।
  • इसके बाद मां जया को दाईं एवं विजया को बाईं तरफ स्थापित करें और उनके मंत्र “क्रियाशक्त्यै नमः” व “उमायै नमः” से देवी का आह्वान करें।
  • अब तीनों देवियों की शोडषोपचार पूजा विधिपूर्वक करें।
  • शोडषोपचार पूजन के उपरांत भगवान श्रीराम और हनुमान जी का भी पूजन करें।
  • सबसे अंत में माता की आरती करें और भोग का प्रसाद सब में वितरित करें।

दशहरा पर संपन्न होने वाली पूजा

शस्त्र पूजा: दशहरा के दिन दुर्गा पूजा, श्रीराम पूजा के साथ और शस्त्र पूजा करने की परंपरा है। प्राचीनकाल में विजयदशमी पर शस्त्रों की पूजा की जाती थी। राजाओं के शासन में ऐसा होता था। अब रियासतें नहीं है, लेकिन शस्त्र पूजन को करने की परंपरा अभी भी जारी है।

शामी पूजा: इस दिन शामी पूजा करने का भी विधान है जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से शामी वृक्ष की पूजा की जाती है। इस पूजा को मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व भारत में किया जाता है। यह पूजा परंपरागत रूप से योद्धाओं या क्षत्रिय द्वारा की जाती थी।

अपराजिता पूजा: दशहरा पर अपराजिता पूजा भी करने की परंपरा है और इस दिन देवी अपराजिता से प्रार्थना की जाती हैं। ऐसा मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त करने के लिए पहले विजय की देवी, देवी अपराजिता का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह पूजा अपराहन मुहूर्त के समय की जाती है, साथ ही आप चौघड़िये पर अपराहन मुहूर्त भी देख सकते हैं।

दशहरा का महत्व

दशहरा से जुड़ीं ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। वहीँ, देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का संहार किया था इसलिए इसे कई स्थानों पर विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।
दशहरा तिथि पर कई राज्यों में रावण की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन देश में कई जगह मेले आयोजित किये जाते है।
दशहरे से 14 दिन पहले तक पूरे भारत में रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें भगवान राम, श्री लक्ष्मण एवं सीता जी के जीवन की लीला दर्शायी जाती है। विभिन्न पात्रों के द्वारा मंच पर प्रदर्शित की जाती है। विजयदशमी तिथि पर भगवान राम द्वारा रावण का वध होता है, जिसके बाद रामलीला समाप्त हो जाती है।

वर्ष के शुभ मुहूर्तों में से एक दशहरा

दशहरा की गिनती शुभ एवं पवित्र तिथियों में होती है, यही कारण है कि अगर किसी को विवाह का मुहूर्त नहीं मिल रहा हो, तो वह इस दिन शादी कर सकता हैं। यह हिन्दू धर्म के साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो इस प्रकार है- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को आधा मुहूर्त माना गया है। यह अवधि किसी भी कार्यों को करने के लिए उत्तम मानी गई है।

दशहरा कथा

अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम अपनी अर्धागिनी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पर गए थे। वन में दुष्ट रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। अपनी पत्नी सीता को दुष्ट रावण से मुक्त कराने के लिए दस दिनों के भयंकर युद्ध के बाद भगवान राम ने रावण का वध किया था। उस समय से ही प्रतिवर्ष दस सिरों वाले रावण के पुतले को दशहरा के दिन जलाया जाता है जो मनुष्य को अपने भीतर से क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करने का संदेश देता है।

महाभारत में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव दुर्योधन से जुए में अपना सब कुछ हार गए थे। उस समय एक शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा था, ओर एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास पर भी रहना पड़ा था। अज्ञातवास के समय उन्हें सबसे छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पहचान लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन झेलना पड़ता। इसी वजह से अर्जुन ने उस एक वर्ष के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक पेड़ पर छुपा दिया था और राजा विराट के महल में एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण करके कार्य करने लग गए थे। एक बार जब विराट नरेश के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गायों की रक्षा के लिए सहायता मांगी तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को पराजित किया था।

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