- विजय दशमी को शुरु हुई रावण विजय यात्रा
- विजय दशमी को करते हैं नीलकंठ दर्शन
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
शक्ति की उपासना के साथ शक्तिमान की भी पूजा का प्रमुख पर्व नवरात्र है। क्षत्रिय वंश की कुल देवी मां चंडिका है। श्रीराम ने भी इनकी आराधना की है। मिली जानकारी के अनुसार देवर्षि नारद ने शक्ति उपासना और अगस्त ऋषि ने प्रभु श्रीराम को आदित्य हृदय का उपदेश दिया था। बचपन से यह धारणा बनी थी,नवरात्र मे प्रभु श्रीराम ने नौ दिनों तक अपनी इष्ट देवी की आराधना की, फिर रावण को विजय दशमी के दिन मार कर पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे। जहां उनके आगमन पर सारी दुनियां ने दीपावली मनाई गई। श्री अयोध्या धाम मे जश्न विशेष था।
स्कंद पुराण को पढ़ने पर ऐसा लगा कि विजय दशमी के दिन श्रीराम ने बानर दलो को लेकर लंका पर चढ़ाई के लिए प्रस्थान किया। इस दिन सभी राजा अस्त्र शस्त्र का पूजन कर.. विजय यात्रा शुरू करते है। श्रीराम के वनवास से लेकर रावण से युद्ध और बड़े योद्धाऔ के मरने पर युद्ध विश्राम का समस्त कार्यों का तिथि के अनुसार सारा वृत्तांत उसमे मिला। रामेश्वरम मे शिवार्चन और उत्तरायण मे राज्या भिषेक की तिथि भी उसमे लिख दिया है।
स्कंद पुराण का प्रमाण
माता सीता रावण के यहां अशोक वाटिका में 14माह तक बंदी रहीं। कुल..87दिन तक लंका मे युद्ध चला।राम और रावण का द्वंद्व युद्ध 18दिन तक चला।माघ शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चतुर्दशी तक लंका मे कुल युद्ध चला। जिसमे 15दिन युद्ध बंदी रही। वैशाष शुक्ल द्वितीया को विभीषण का लंका मे राज्याभिषेक हुआ। वैशाष शुक्ल चतुर्थी को राम पुष्पक विमान मे सवार हुए,पंचमी को प्रयाग मे भरद्वाज आश्रम मे विश्राम किया ..षष्ठी को नंदीग्राम मे भरत से मिले और वैशाष शुक्ल सप्तमी को प्रभु राम का राज्याभिषेक अयोध्या की राजगद्दी पर हुआ। उस समय राम की आयु 42वर्ष थी। जब कि सीता जी की आयु 35वर्ष थी।..उन्होंने 11000 वर्ष तक राज्य का शासन संभाला।
रामोपासना व नवरात्रि
शारदीय नवरात्र के साथ सीताराम जी की उपासना भी साथ साथ चलती है। जगह जगह पर रामलीलाएं भी होती है। जिसमे विजय दशमी को राम- रावण के भयंकर युद्ध के बाद रावण की प्रतिमा राम के अग्नि वाण से जलती हुई दिखाई जाती है और सीता जी की वापसी दिखाई जाती है।
नौ दिन लोगों ने नित्य श्रीरामरक्षा स्तोत्र का 11 पाठ करके नवरात्र में श्रद्धालुओ ने रामोपासना की। जिसे विष्णु सहस्रनाम के बराबर माना गया है। नवमी को हवन करते हैं और देवी जी को पूड़ी-लप्सी की कराही चढ़ाई जाती है। विजय दशमी को नीलकंठ महादेव का दर्शन शुभ मानते है। चैत्र नवरात्रि श्रीराम जन्म से जुड़ा है, जबकि आश्विन शुक्ल पक्ष की शारदीय नवरात्र श्रीराम के विजय अभियान से जुड़ी मानी जाती है।