राजेश श्रीवास्तव
अखिलेश सरकार के समय से शुरू हुआ शिक्षक भर्ती का बवाल अब भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गया है। वह भी तब जब भाजपा उपचुनाव के लिए कमर कस चुकी थी, ऐसे में आया इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। उस पर भी दिलचस्प है कि विपक्ष तो विपक्ष खुद उनके अपने ही यानि कि उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और अपना दल की अनुप्रिया पटेल का यह कहना कि अब लंबे समय से संघर्ष कर रहे शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों को न्याय मिलेगी, योगी सरकार के कदमों में और कील बिछाने का काम कर रहा है। इसी के चलते अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को आपात बैठक बुलायी है लेकिन इस बैठक में न तो उनके विरुद्ध मोर्चा खोलने वाले उपमुख्यमंत्री शामिल होंगे और न ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी।
प्रदेश की 1० विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा के लिए 69 हजार शिक्षकों के भर्ती प्रकरण में कोर्ट के फैसले ने मुश्किल खड़ी कर दी है। इस फैसले ने जहां कन्नौज और अयोध्या की दो प्रमुख घटनाओं को लेकर सपा के खिलाफ हमलावर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है, वहीं, विपक्ष के हाथ में एक बड़ा और प्रभावी सियासी मुद्दा थमा दिया है। इस घटना को लेकर जिस तरह से पूरे विपक्ष ने भाजपा को घेरना शुरू कर दिया है, उससे स्पष्ट है कि प्रदेश की सियासत में इस मुद्दे को लंबे समय तक भुनाने का प्रयास किया जाएगा। माना जा रहा है कि यह मुद्दा अब सिर्फ विधानसभा उपचुनाव तक ही नहीं, बल्कि 2०27 के चुनाव पर भी प्रभाव डालेगा। इसी के लिए मुख्यमंत्री ने अब कमर कस ली है।
आरक्षण जैसे संवेदनशील मसले पर संभल कर बैटिग कर रही सत्ता पक्ष के सामने असहजता की स्थिति है। ऐसे समय जब दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं, नौकरी और आरक्षण जैसे विषयों पर सरकार किसी एक तरफ झुकने से बचना चाह रही है। यदि सूची रद्द होती है तो पहले से नौकरी कर रहे युवाओं के सामने एक बड़ा संकट आएगा। यह एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा होगा जिससे सरकार हर हाल में बचना चाहेगी। सरकार यह जानती है कि नौकरी और आरक्षण ऐसे दो मुद्दे हैं जिन पर विपक्ष लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से हमलावर रहा है। सपा के 37 सीटें जीतने में इन दो मुद्दों ने बड़ी भूमिका निभाई है। निश्चित ही इस मुद्दे को विपक्ष हाथों-हाथ लपकने में देर नहीं करेगा। विपक्षी पार्टियों के नेताओं का सुर यह बताता हैं कि यह फैसला भले ही कोर्ट का हो, लेकिन इस मसले पर वह सरकार को कटघरे में खड़ा करने की वह पूरी कोशिश करेगा।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मामले में भाजपा सरकार पर तीखी हमला करके यह जता दिया है कि वह अब इस मुद्दे को खत्म नहीं होने देंगे। इसे लंबे समय तक जिदा रखकर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ा रखने की कोशिश करेंगें। सपा इस मुद्दे को धार देने के लिए रणनीति भी तैयार कर रही है, जिसका असर आने वाले उपचुनाव पर भी पड़ेगा।
सपा अध्यक्ष ने यह भी साफ कर दिया है कि अभ्यर्थियों की मांग के साथ नाइंसाफी नहीं होगी। सपा उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंत तक खड़ी रहेगी। इस मसले पर अब सरकार भी डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। हालांकि इसका क्या रास्ता निकलेगा, इसका फैसला रविवार को मुख्यमंत्री के साथ शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बैठक में हो सकता है। लेकिन इतना तय है कि सरकार और संगठन दोनों मिलकर इस मुद्दे के प्रभाव को बेअसर करने को लेकर कई विकल्पों पर विचार करने में जुटे हैं। सत्ता पक्ष की ओर से इसकी ऐसी काट तैयार की जा रही है कि यह मुद्दा अधिक दिनों तक जिदा ही न रहे। कोशिश है कि उपचुनाव की घोषणा होने से पहले इस मुद्दे की धार को कुंद कर दी जाए।
उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षक भर्ती मामला अब यूपी सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है, जिसे वो ना निगल पा रही है और ना ही उगल पा रही है। हालांकि सरकार के लिए दो विकल्प खुले हैं। पहला ये कि वो इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाए या दूसरा नई मेरिट लिस्ट तैयार करे, पर दोनों ही चीजें सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। इस मुद्दे पर रविवार यानी आज सीएम ने बड़ी बैठक बुलाई है। इस फैसले को लेकर सरकार के सामने दोनों ही विकल्प हैं, लेकिन दोनों ही विकल्पों की अपनी चुनौतियां भी हैं। अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट जाती है तो सरकार पर पिछड़ा विरोधी और आरक्षण की अनदेखी होने का आरोप लग सकता है। अगर सरकार नई मेरिट लिस्ट जारी करती है तो जो अभ्यर्थी सफल होकर नौकरी कर रहे हैं उनपर तलवार लटक सकती है। योगी सरकार के लिए शिक्षक भर्ती मामला गले की फांस बन चुका है। इस मामले में योगी सरकार के अपने और विपक्षी दोनों हमलावर हैं। सरकार में डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने ट्विटर पर पोस्ट करते हुए लिखा, ‘शिक्षकों की भर्ती में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में स्वागत योग्य कदम है। यह उन पिछड़ा व दलित वर्ग के पात्रों की जीत है जिन्होंने अपने अधिकार के लिए लंबा संघर्ष किया। उनका मैं तहेदिल से स्वागत करता हूं’। डिप्टी सीएम का बयान ही ये बताने के लिए काफी है कि सीएम योगी इस मामले में किस तरह से संघर्ष कर रहे हैं। सरकार में सहयोगी दलों का रुख भी सरकार विरोधी ही दिख रहा है। अनुप्रिया पटेल और ओमप्रकाश राजभर भी इसको पिछड़ों की जीत बता रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने भी इसको संविधान और पिछड़ों की जीत बताई है। सरकार पर दोनों तरफ से दबाव पड़ रहा है। प्रदेश में होने वाले 1० सीटों पर उपचुनाव से पहले हाईकोर्ट का ये फैसला सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द है। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस संकट से निकलने के लिए योगी सरकार कौन सा रास्ता अख्तियार करती है।