पचपेड़वा,बलरामपुर। स्थानीय जेएसआई स्कूल में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया गया। स्कूल में बच्चों को कलाम के संघर्षों से रूबरू कराया गया।देश के विकास में उनके योगदान की सराहना भी की गयी। स्कूल के प्रबंधक व तालीमी बेदारी के प्रदेश अध्यक्ष सगीर ए खाकसार ने छात्र छात्राओं को बताया कि कलाम साहब का जीवन संघर्षों से भरा था । बचपन में उन्हें अख़बार तक बेचना पड़ा।उनका जीवन सादगी पूर्ण था।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को बच्चे कलाम अंकल के नाम से पुकारते रहें। वहीं राजनीतिक जगत में उन्हें पीपल्स प्रेसीडेंट की उपाधि मिली। संघर्षों से उठकर कैसे सर्वोच्च किया जा सकता है, अगर देखना है तो कलाम को देखना चाहिए। कलाम साहब बचपन में पायलट बनना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका। फिर वह वैज्ञानिक बने और साल 2002 से वर्ष 2007 तक भारत के 11वें राष्ट्रपति रहे। विज्ञान में उनकी गहरी रुचि थी। वह हमेशा छात्रों को प्रेरित करते थे और बड़े सपने देखने के लिए कहते थे। डॉक्टर कलाम को 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इस अवसर पर स्कूल के प्रधानाचार्य आरपी श्रीवास्तव, किशन श्रीवास्तव, सुशील यादव, किशोर श्रीवास्तव, मुदासिर अंसारी, साजिदा खान, शिव कुमार गुप्ता, शमा, सचिन मोदनवाल, अंजलि गुप्ता, आनंद विश्वकर्मा, अंजलि कन्नौजिया, पूजा विश्वकर्मा, नेहा खान, वंदना चौधरी आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
कौन थे डॉ. एपीजे कलाम
डॉ अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम को साइंस की दुनिया में मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता था। उनका जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम स्थित धनुषकोडी गांव में 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था। वह बचपन में अखबार बेचते थे, क्योंकि उनके परिवार के पास ज्यादा पैसे नहीं थे और न ही उनके पिता जैनुलाब्दीन ज्यादा पढ़े लिखे थे। कलाम साहब पांच भाई-बहन थे। उन्हें उड़ना पसंद था, जैसे खुले आसमान में चिड़ियां उड़ती हैं। कलाम साहब या तो विमान विज्ञान के क्षेत्र में जाना चाहते थे या उनकी चाहत पायलट बनने की थी। लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था। साल 1950 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई के बाद उन्होंने भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश लिया। इसके बाद साल 1962 में वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आये। इसरो में उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। देश के राष्ट्रपति बनने के बावजूद कलाम ने शिक्षा जगत से मुंह नहीं मोड़ा था। शायद इसलिए मुकद्दर ने जब अंतिम वक्त बुलाया तो भी वो शिक्षण कार्य में ही लगे हुए थे।