जैन धर्म के लिए विशेषः चौमासी अष्टान्हिका विधान आज से प्रारम्भ

राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

जैन धर्मावलंबियों का महान पर्व पर्यूषण के बाद दूसरा अष्टान्हिका महापर्व कार्तिक, फाल्गुन एवं आषाढ़ के अंतिम आठ दिनों में मनाया जाता है। आषाढ़ माह का यह पर्व अधिकतर जैन मंदिरों में आज से मनाया जाएगा। 8 दिन तक मंदिरों में सिद्ध चक्र महामण्डल विधान, नंदीश्वर द्वीप की पूजा एवं विधान आदि होंगे। तलवंडी जैन मंदिर, अग्रवाल दिगंबर जैन मंदिर शास्त्री मार्केट, जैन मंदिर टिपटा में भी कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे। कुछ श्रावक व्रत एवं उपवास के साथ विशेष पूजा अर्चना करते हैं।

कोटावासियों का सौभाग्य है कि इस दौरान 3 मुनि, आर्यिका संघों का सानिध्य मिलेगा। दिगम्बर जैन मंदिर, तलवंडी में भी अष्टान्हिका पर्व मनाया जाएगा। 8 दिनों में मंदिर में नित्य अभिषेक, शांतिधारा, पूजन, विधान इत्यादि विभिन्न धार्मिक आयोजन होंगे, सभी समाजबंधु इन दिनों में विशेष पूजन ध्यान कर अपने कर्मों की निर्जरा करेंगे। शास्त्रीनगर दिगंबर जैन मंदिर में नित्य शांति धारा, अभिषेक होंगे। श्रावक 8 दिन तक विधान करेंगे। वहीं, नेमीश्वर मंदिर टिपटा में पहले दिन ध्वजारोहण होगा। पोस्टर का विमोचन करते हुए।

क्या है अष्टान्हिका पर्व

अष्टान्हिका पर्व का जैन समाज में विशेष महत्व हैं। जैन धर्म अनुसार चारों प्रकार के इंद्र सहित देवों के समूह नन्दीश्वर द्वीप में प्रति-वर्ष आषाढ़-कार्तिक और फाल्गुन मास में पूजा करने आते हैं। नन्दीश्वर द्वीपस्थ जिनालयों की यात्रा में बहुत ही भक्तिभाव से युक्त कल्पवासी देव पूर्व दिशा में, भवनवासी देव दक्षिण दिशा में, व्यंतर देव पश्चिमी दिशा और ज्योतिष देव उत्तर दिशा में विराजमान जिन मंदिर में पूजा करते हैं। जिनेन्द्र प्रतिमाओं की विविध प्रकार से आठ दिनों तक अखंड रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। क्यूंकि मनुष्य अढ़ाई-द्वीप के बाहर आगे नंदीश्वर द्वीप तक नहीं जा सकते इसलिए सभी अपने-अपने मंदिरों में ही नंदीश्वर द्वीप की रचना करके पूजा करते हैं।

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कब आता है अष्टान्हिका पर्व

अष्टानिका पर्व साल में तीन बार आते हैं। यह पर्व कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के महीनो के अंतिम आठ दिनों में (अष्ठमी से पूर्णिमा तक) मनाया जाता हैं।

हुआ आमंत्रण का विमोचन

धर्मसभा में सौम्यनंदिनी ने अपने प्रवचन में कहा कि धर्म को यदि धर्म की भावना से किया जाए तो ही जीवन में उन्नति संभव है। पूज्य माता ने प्रवचन में ध्यान लगाने की विधि विस्तार पूर्वक समझाई। इससे श्रावक अपने जीवन को धर्म के पथ पर आगे बढ़ा सकें, क्योकि धर्म की कोई भी क्रिया ध्यान के बिना सम्भव ही नहीं है।

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