ज्योतिषाचार्य डॉक्टर उमाशंकर मिश्र
दैवज्ञ द्वारा वर और वधू के कुण्डली मिलान में आधा घंटा समय लगता है। परंतु कंप्यूटर और पंचाङ्गों मे रेडिमेड टेबल द्वारा तुरन्त २ मिनिट गुण मिलान कर दाम्पत्य जीवन का निर्धारण कर दिया जाता है। मेलापक का यह दोनो तरीका एक मोटा मोटी जानकारी देता तो है,लेकिन उसपर आंख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
क्योंकि उसके आगे बहुत काम गुण मिलान में शेष रह जाता है। नक्षत्र गुण मिलान में कुल 8 बिंदू हैं जिसे अष्टकूट कहा जाता है।
- वर्ण:कार्यक्षमता
- वश्य:व्यक्तित्व
- तारा:भाग्य
- योनि:यौन संबंध
- ग्रह मैत्री:मित्रता एवम सामंजस्य
- गण:भौतिक समृद्धि
- भकुट:परस्परप्रेम
- नाड़ी:स्वास्थ्य और संतान पक्ष की स्थिति।
इसमें भी भकूटऔर नाड़ी का मुख्य रूप से विचार किया जाता है।
- भकूट दोष तब होता है जब वर वधु की राशियां परस्पर षडाष्टक,द्विर्द्वादश,नवम पंचम योग में हों। परन्तु उनके राशि स्वामी परस्पर मित्र (जैसे मिथुन/मकर , कर्क/वृश्चिक, कर्क/धनु , कर्क/lमीन, सिंह/धनु, सिंह/मीन, कर्क/सिंह, कन्या/मकर) हो या राशि स्वामी(जैसे वृषभ/तुला, मेष/वृश्चिक, मकर/कुम्भ) एक हो तो यह दोष दूर हो जाता है।कंप्यूटर में इसकी जानकारीअलग से नही दी जाती है,और सम्भव भी नहीं है।
- इसी तरह नाड़ी दोष की भी यही कहानी है। इसके परिहार की जानकारी कम्प्यूटर में नहीं दिया रहता है।लेकिन ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है।
दोनों की जन्म राशि एक हो ,नक्षत्र भिन्न भिन्न हों या जन्म नक्षत्र एक हों, राशियां भिन्न हों।
दोनों के जन्म नक्षत्र एक हों उनके चरण भिन्न भिन्न हों।
इससे नाड़ी दोष मिट जाता है। - मंगल दोष का विचार भी कुण्डली मिलान में समझदारी से करना चाहिए। विद्वानों ने इसका भी परिहार बताया है। यदि दोनों की कुण्डली में एक ही स्थान पर मंगल हो,दूसरे की कुण्डली में मंगल के स्थान पर शनि या राहु हों,मंगल अस्त हो,शत्रु राशि में हो, बल में कमजोर हो,योगकारक हो तो मंगल दोष दूर हो जाता है।इतनी सब बातें कम्प्यूटर या पंचांग के रेडीमेड टेबल में नहीं रहती हैं और सम्भव भी नहीं है।
- लेकिन मंगल दोष के लिए मंगल का पाप प्रभाव में रहना जरूरी है।
इसके अतिरिक्त वर वधु की कुण्डली में सूर्य, चंद्र, गुरु और शुक्र के परस्पर संबंधों का भी विश्लेषण किया जाता है जो कि कम्प्यूटर या पंचांग के रेडीमेड टेबल में नहीं दिया रहता है। उसे एक ज्योतिष विशेषज्ञ ही समझा सकते हैं। चंद्र से परस्पर, मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति, सूर्य से परस्पर आत्मा और आत्मबल, गुरु से अध्यात्मिक झुकाव पवित्रत और विशेषकर, कन्या के लिए गुरु का बल देखना चाहिए। शुक्र सामान्य रूप से दोनों के दाम्पत्य सुख को व्यक्त करता है यह भी कंप्यूटर और पंचांग के रेडी मेड टेबल से सम्भव नहीं है। - कुंडली मिलान के पहले ही वर और वधू के चरित्र, उनके स्वभाव, स्वास्थ,संतान, नौकरी,व्यावसाय का विचार करना जरूरी है।ताकि उनके दाम्पत्य जीवन में किसी तरह तनाव,तलाक,वैधव्य दोष की स्थिति पैदा होने की संभावना ही न हो।