
लखनऊ। भारतीय राजनीति में उपराष्ट्रपति चुनाव हमेशा औपचारिकता भर लगते हैं, क्योंकि सत्तारूढ़ पक्ष आम तौर पर आंकड़ों के बल पर बाजी मार लेता है। लेकिन इस बार नौ सितंबर 2025 को होने जा रहा चुनाव महज जीत-हार तक सीमित नहीं है। असली लड़ाई जीत के अंतर को बढ़ाने और विपक्ष की एकजुटता को कमजोर करने की है। यही कारण है कि सत्ता और विपक्ष, दोनों खेमों ने अपनी-अपनी रणनीतियों को आक्रामक बनाया है। NDA की ओर से सीपी राधाकृष्णन उम्मीदवार हैं और उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है। विपक्षी इंडिया गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा है और चुनाव को वैचारिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। लेकिन पूरे माहौल में सबसे ज्यादा चर्चा समाजवादी पार्टी के सांसद राजीव राय और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच हुई फोन कॉल को लेकर है, जिसने क्रॉस वोटिंग की संभावनाओं पर नई बहस छेड़ दी है।
छह सितंबर को राजीव राय का जन्मदिन था। इस मौके पर अमित शाह ने उन्हें फोन कर बधाई दी। यह कॉल सतह पर तो शिष्टाचार लग रही थी, लेकिन इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही राजनीतिक हलकों में सवाल उठने लगे। वीडियो में राजीव राय हल्के-फुल्के अंदाज में अपनी उम्र को लेकर मजाक करते नजर आए, जिसे यूपी-बिहार की राजनीति में नेताओं की उम्र पर चलने वाली चुटकियों से जोड़कर देखा गया। पर असली महत्व इस कॉल की टाइमिंग और संदर्भ का था। उपराष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले हुई इस बातचीत ने विपक्षी खेमे की बेचैनी बढ़ा दी। राय ने सफाई दी कि यह रिकॉर्डिंग उनके किसी कार्यकर्ता ने की और अनजाने में व्हाट्सएप ग्रुप पर डाल दी। बावजूद इसके, यह सवाल बना रहा कि क्या अमित शाह का यह कदम केवल शिष्टाचार था या फिर किसी गहरी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा।
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राजीव राय का राजनीतिक सफर भी इस बहस को और दिलचस्प बनाता है। 2024 लोकसभा चुनाव में उन्होंने घोसी सीट से NDA प्रत्याशी अरविंद राजभर को हराया और सपा के लिए महत्वपूर्ण जीत दर्ज की। उन्हें अखिलेश यादव का करीबी और रणनीतिकार माना जाता है। दिलचस्प यह भी है कि उनकी जीत में बीजेपी के परंपरागत वोटरों का योगदान माना गया था। ऐसे में सत्ता पक्ष से तालमेल बनाए रखना उनके लिए व्यावहारिक राजनीति हो सकती है। यही कारण है कि यूपी-बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि सपा के कुछ सांसद उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA के पक्ष में वोट डाल सकते हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि सपा के 3 से 5 सांसद क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं, खासकर वे जिनके क्षेत्र में बीजेपी का प्रभाव मजबूत है उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल 781 सांसदों को वोट डालना है, लेकिन 6 सीटें खाली हैं, इसलिए निर्वाचक मंडल में 775 वोट होंगे। जीत के लिए 388 वोट की जरूरत है। NDA के पास पहले से ही 439 वोटों का मजबूत आधार है। इसमें बीजेपी के 240 लोकसभा और 95 राज्यसभा सांसदों के अलावा जेडीयू के 12, टीडीपी के 16, शिवसेना के 7 और अन्य सहयोगियों के वोट शामिल हैं। यानी राधाकृष्णन की जीत तय है। इसके विपरीत इंडिया गठबंधन के पास 324 वोट का अनुमान है। इसमें कांग्रेस के 99 लोकसभा और 26 राज्यसभा सांसद, सपा के 37, टीएमसी के 29, डीएमके के 22 और आम आदमी पार्टी के 10 सांसद शामिल हैं। हालांकि 18 सांसद ऐसे हैं, जिनका रुख अब तक साफ नहीं है। इनमें बीजेडी के सात, बीआरएस के चार, अकाली दल का एक, JDPM का एक, VOTP का एक और तीन निर्दलीय सांसद शामिल हैं।
चुनाव गुप्त मतदान और एकल हस्तांतरणीय वोट प्रणाली से होता है। इसमें सांसदों को प्राथमिकता अंकित करनी होती है और गलत वोटिंग से मतपत्र रद्द हो सकता है। यही कारण है कि क्रॉस वोटिंग की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। इस बार भी यही स्थिति है। बीजेपी ने अपने सांसदों के लिए प्रशिक्षण सत्र कराए हैं ताकि कोई वोट अमान्य न हो और 100 प्रतिशत मतदान सुनिश्चित किया जा सके। NDA की रणनीति साफ है सिर्फ जीतना नहीं बल्कि भारी अंतर से जीतकर विपक्ष को यह संदेश देना कि उसकी एकजुटता महज कागजी है।NDA के वरिष्ठ नेता विपक्षी सांसदों और निर्दलीयों से सीधे संपर्क साध रहे हैं। अमित शाह और राजनाथ सिंह व्यक्तिगत तौर पर कई सांसदों से बातचीत कर चुके हैं। वाईएसआरसीपी, जिसके पास 11 सांसद हैं, पहले ही संकेत दे चुकी है कि वह विपक्ष का साथ नहीं देगी। 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में भी वाईएसआरसीपी ने NDA के पक्ष में मतदान किया था। बीजेडी भी अतीत में NDA को समर्थन देती रही है और इस बार भी संभावना इसी की है। बीआरएस के 4 सांसद और कुछ निर्दलीय भी NDA के खेमे में जा सकते हैं। इन हालात में विपक्ष की मुश्किलें और बढ़ती दिख रही हैं।
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दूसरी ओर इंडिया गठबंधन इस चुनाव को वैचारिक लड़ाई के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है। उनका कहना है कि यह संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का सवाल है। उन्होंने बी. सुदर्शन रेड्डी को इस रूप में पेश किया है कि वे संविधान की आत्मा की रक्षा करेंगे। कांग्रेस ने अपने सांसदों को एकजुट रखने के लिए रणनीतिक बैठकें और मॉक पोल कराए हैं। हर 15 सांसदों पर एक समन्वयक नियुक्त किया गया है। लेकिन गठबंधन की एकजुटता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का डिनर कार्यक्रम बाढ़ की वजह से रद्द हो गया, जिससे असंतोष की खबरें आईं। राहुल गांधी विदेश दौरे पर हैं, जिससे विपक्षी खेमे का मनोबल प्रभावित हुआ है।कांग्रेस के कुछ सांसदों पर भी क्रॉस वोटिंग की आशंका जताई जा रही है, खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में जहां बीजेपी का दबदबा है। हालांकि 2022 में कांग्रेस के सांसदों ने ऐसा नहीं किया था और विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को एकजुट होकर वोट दिया था। लेकिन इस बार माहौल अलग है। समाजवादी पार्टी पर नजरें सबसे ज्यादा हैं, क्योंकि उसके कुछ सांसदों के क्रॉस वोटिंग करने की चर्चा जोरों पर है। राजीव राय जैसे नेता, जिनका व्यवसाय भी फैला हुआ है, सत्ता पक्ष से संबंध बनाए रखना चाहेंगे।
क्रॉस वोटिंग भारतीय संसदीय राजनीति में नई बात नहीं है। 2017 में वेंकैया नायडू को 516 वोट मिले थे, जबकि NDA की आधिकारिक संख्या इससे कम थी। 2022 में जगदीप धनखड़ को 528 वोट मिले थे, जो NDA की ताकत से कहीं ज्यादा था। इसमें बीजेडी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस की भूमिका रही। लोकसभा स्पीकर चुनाव 2019 में भी ओम बिरला को ऐसे ही अतिरिक्त वोट मिले थे। ये सभी उदाहरण बताते हैं कि गुप्त मतदान में व्यक्तिगत समीकरण और सत्ता पक्ष की लॉबिंग अहम होती है।अमित शाह का राजीव राय को फोन कॉल इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। सत्ता पक्ष ने यह साफ कर दिया है कि वह विपक्षी सांसदों से भी व्यक्तिगत संपर्क साधने से पीछे नहीं हटेगा। भले ही जीत पहले से तय हो, लेकिन इस जीत का अंतर विपक्ष की साख को कमजोर करेगा। अगर सपा या अन्य विपक्षी दलों से क्रॉस वोटिंग होती है, तो इंडिया गठबंधन की संगठनात्मक कमजोरी उजागर होगी। बीजेपी इसे अपनी रणनीतिक क्षमता और विपक्ष को तोड़ने की ताकत के रूप में प्रचारित करेगी।
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यह उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 का असली संदेश भी है। आंकड़ों की बाजीगरी से परे यह चुनाव सत्ता और विपक्ष की ताकत, संगठन और रणनीति की परीक्षा है। NDA भारी बहुमत से जीतकर यह दिखाना चाहता है कि विपक्ष की एकजुटता खोखली है। वहीं, विपक्ष इस चुनाव को वैचारिक रंग देकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहता है। लेकिन अब तक के हालात बताते हैं कि विपक्ष न सिर्फ हार की तरफ बढ़ रहा है, बल्कि उसकी एकजुटता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।अमित शाह और राजीव राय की बातचीत छोटी सी घटना लग सकती है, पर इसके पीछे छिपा संदेश गहरा है। सत्ता पक्ष यह जता रहा है कि वह विपक्ष की दीवार में सेंध लगाने से पीछे नहीं हटेगा। इंडिया गठबंधन के लिए यह चुनाव सिर्फ हार नहीं, बल्कि चेतावनी भी साबित हो सकता है कि अगर उसने अपनी रणनीति और नेतृत्व को मजबूत नहीं किया तो भविष्य में भी इसी तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ेगा।
