कविता : सब धरा का धरा पर धरा रह जाएगा,

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

जो बड़ेन को लघु कहें,
नहिं रहीम घटि जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें,
कछु दुःख मानत नाहिं॥

अपने अपने होते हैं, सभी अपने हैं,
सबकी पसंद एक सी नहीं होती है,
किसी से इज़्ज़त मांगी नहीं जाती है,
अपने व्यवहार से ही कमाई जाती है।

मेरा वही सम्मान का भाव भी था,
प्रतिक्रिया चरण वंदन करके दी थी,
किसी पर बिना वजह टिप्पणी करने
की हमारी अभिलाषा भी तो नहीं थी।

ज्यादा बड़ी जिन्दगी नहीं है किसी की,
सब धरा का धरा पर धरा रह जाऐगा,
ख़ाली हाथ इस धरा पर आया था,
ख़ाली हाथ लिये ही धरा से जायेगा।

अहंकार ईश्वर का आहार होता है,
चाहे मेरा हो या किसी और का हो,
सभी बड़ों को सादर चरण वंदन
शुभ दिवस का है नमन और वंदन।

किसी को रोशनी के लिए दीपक
दिखायेंगे, उजाला हमें भी मिलेगा,
सत्कर्म दूसरों के लिये करते रहिये,
उसका फल हमें भी तो प्राप्त होगा।

कामयाबी सुबह के जैसी होती है
मांगने पर नहीं जागने पर मिलती है,
इज़्ज़त व्यवहार पर निर्भर करती है,
अधिकार से माँगने से नहीं मिलती है।

आदित्य संसार में सबसे दिलदार
और धनवान इंसान वही होता है,
जो दूसरों को मुस्कान देकर हृदय
और उसका मस्तिष्क जीत लेता है।

 

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