ईमानदारी और राजनीति पर चिंतन

कर्नल आदि शंकर मिश्र


लखनऊ। आज हम यह कहते नहीं थकते हैं कि हम यानी हमारा भारतवर्ष बहुत शीघ्र विश्व गुरु बन जाएगा या कुछ लोग तो अक्सर यह कहते हैं कि हम जिस प्रकार प्राचीन काल में विश्व गुरु थे आज हमने विश्व में भारत का वही स्थान प्राप्त कर लिया है । हाँ, परंतु हम अगर ईमानदारी से इस सत्य पर विचार करें तो शायद हम सामाजिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक स्तर से भी अभी बहुत निचले पायदान पर पाये जाते हैं। चारित्रिक उत्थान की तरफ़ हमारा ध्यान शायद है ही नहीं । समाज में, शासन में एवं हर क्षेत्र में देखा जाय तो अच्छाइयों से अधिक बुराइयाँ फैली हुई हैं । धार्मिक उन्माद, राजनीतिक वैमनस्य, वैचारिक बचपना तो है ही इस सब क्षेत्रों में बड़बोलापन पूरे देश में कूट कूट कर भर लिया गया है। राजनैतिक शुचिता और ईमानदारी की ही सत्यता परख लेते हैं। हमारे देश में महात्मा गाँधी को भी भुला दिया गया है, “सत्य-अहिंसा” और “बुरा नहीं बोलूँगा, बुरा नहीं देखूँगा, बुरा नहीं सुनूँगा” जैसे विश्व प्रसिद्ध सिद्धांतों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है।

गाँधी जी पर प्रसिद्ध गीत
“साबरमती के संत,
तुमने कर दिया कमाल।
पा लिया आज़ादी,
बिना खड्ग, बिना ढाल॥”

का मखौल उड़ाया जाता है। देशवासियों की ग़रीबी को ध्यान में रखकर उनके वस्त्र त्याग और शरीर में मात्र एक धोती पहनने का मज़ाक़ उड़ाया जाता है।
पूर्व प्रधान मंत्री स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री की सरलता व ईमानदारी को भुला दिया गया है। दो बार के कार्यवाहक प्रधान मंत्री स्व. श्री गुलज़ारी लाल नंदा को 94 वर्ष की उम्र में किराए के मकान में रहना और मकान मालिक का उन्हें किराया न दे पाने की वजह से कमरे से निकालना भी हम भूल चुके हैं । अब हमारे राजनेता जन सेवक नहीं बल्कि माननीय कहे जाते हैं। एक बार चुनाव जीत जाते हैं तो आजीवन पेंशन के हक़दार हो जाते हैं । किसी किसी नेता को तो कई कई पेंशन मिलती हैं। यह कैसी राजनीतिक शुचिता है पुन: विश्व गुरु बनने वाले भारत की ? शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, बिजली, पानी, ईंधन गैस, बेरोज़गारी, भूख़मरी, अच्छी सड़कें व सड़क सुरक्षा की समस्याओं पर बिना नियंत्रण पाये कैसे विश्व गुरु बन पायेंगे। जनसंख्या पर बिना नियंत्रण के ये मूलभूत समस्याएँ हर पल बढ़ रही हैं। इस मामले में हम चीन को पीछे छोड़कर विश्व में नंबर एक बन चुके हैं। इस समस्या के निवारण के लिए कोई सोच, कोई सिद्धांत और कोई क़ानून नहीं विकसित हो रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था, देश की सीमाओं की सुरक्षा एवं विदेश नीति में जो दावे किए जा रहे हैं उन पर कैसे विश्वास किया जा सकता है । क्योकि नोटबंदी, बैंको व सार्वजनिक संस्थाओं का दिवालिया होना या उनका बेचा जाना शुभ संकेत नहीं हो सकते। सीमा पर कई पड़ोसी देश घात लगाकर अवसर पाते ही आघात करते हैं। आतंकवाद ख़त्म होने का नाम नहीं लेता है। विदेशों ताकतों में मित्र कम शत्रु ज़्यादा हैं। आंतरिक स्थिति भी अच्छी नहीं कही जा सकती है। महिला सशक्तीकरण का दावा आये दिन उजागर होता है महिलाओं व अबोध बच्चियों पर अनाचार, दुष्कर्म व हत्या के रूप में । समाज में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं। माफिया का दबदबा क़ायम है। कितना भी कठोर नियम क़ानून हों इन पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है।

आज अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और फ़्रांस जैसे देशों से हम अपनी तुलना करते हैं । परंतु न ताक़त में, न अर्थ व्यवस्था में और न ही सामाजिक क्षेत्र में हम उनसे आगे हैं । अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन, जार्ज बुश सीनियर व जार्ज बुश जूनियर, बराक ओबामा और बिल क्लिंटन जैसे पूर्व राष्ट्रपति अपनी ईमानदारी व सरलता के लिये मशहूर हैं । सेवानिवृत्ति के बाद साधारण जीवन जी रहे हैं कोई सरकारी ताम झाम उन्हें नहीं मिला है। जबकि हमारे देश के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े नेताओं के लिये खर्बों रुपये उनकी उच्चकोटि की सुरक्षा में ही व्यय होते हैं। अगर हमें भारत को सर्वोपरि बनाना है, विश्वगुरु बनना है तो राजनीतिक शुचिता व ईमानदारी, सामाजिक सामंजस्य व एकता, धार्मिक सहिष्णुता व सर्व समाज में चरित्र निर्माण के साथ साथ जनसंख्या नियंत्रण, पर्यावरण का विकास, भ्रष्टाचार नियंत्रण आदि क्षेत्रों में वास्तविक रूप से काम करना पड़ेगा । तभी हम एक भारत, सर्व श्रेष्ठ भारत और विश्व गुरु भारत बन पायेंगे।

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