भूरी आंखो वाली लड़की

 

कहानीकार- सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
कहानीकार- सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

समीक्षक-डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी


भूरी आंखों वाली लड़की शरद आलोक जी की कहानी है ,जो डेढ़ दशक के यूरोपीय देश में प्रवास के दौरान जीवन की स्मृतियों का चित्रण है । प्रस्तुत कहानी हजारों वर्ष पूर्व भारत के पश्चिमोत्तर राजस्थान, पंजाब प्रांत के मूल निवासी मानने वाले घुमंतू रोमा समुदाय जो अफगानिस्तान से यूरोपीय आदि देशों में जाकर बस गए उन पर आधारित है। कहानी की प्रमुख पात्रा राया है,यही वह भूरी आंखों वाली सुंदर औरत है जिसका सौंदर्य कहानी के नायक को प्रभावित करता है। कहानी एक पार्टटाईम अखबार बेंचने वाले युवक और राजस्थान से योरोप आए रोमानियां मे बसे परिवार की एक लड़की के बीच की प्रेम कहानी है।

राया पैसा कमाने के लिए कभी भीख मांगती है,कभी हस्त निर्मित सामग्रियां बेचती है तो कभी खाली प्लास्टिक की बोतलें बेंच कर धन का उपार्जन करती है। एक रात अचानक युवक के दरवाजे पर वह आजाती है,उसके घर में उस रात रुकने का आग्रह करती है। बताती है कि पुलिस किन्हीं कारणो से उसके पिता को रोमानियां लेगई है। पिता और दोस्त की उपस्थिति में नार्वै में रात मे सड़क के किनारे सोने पर भी सुरक्षा का एहसास करती है। पर उनकी अनुपस्थिति मे जवान लड़की का बाहर सोना भयभीत करता है। यद्यपि घर मे अकेला रहते हुए जवान लड़की को घर मे एक रात ठहरने की अनुमति देने मे लेखक(युवक) को हिचक होती है। किंतु उस सुंदर लड़की को, जिससे वह आकर्षित हो प्रेम भी करने लगा है ,युवक उसे इन्कार नहीं कर पाता। वह राया के लिए कमरे का फाटक खोल देता है‌। उसे मित्रों के लिए लाये गए उपहार में से राजस्थानी शीशे से कढ़ी हुई चुनरी और राजस्थानी लंहगा देता है,जिसे वह नहाकर पहन लेती है और पुरुषों वाले सेंट भी स्प्रे कर नायक को आलिंगन करने के बाद, उसी के बिस्तर पर सो जाती है‌। नायक कब सोगया उसे पता नहीं चलता। सुबह उसकी आंखें खुलती हैं तो वह जा चुकी होती है। लेखक( युवक) को उससे कई बार अलग अलग जगहों पर मिलना ,छुटुपुट बात चीत और उसका फ्लाईंग किस याद आता है।

भारत के राजस्थान से योरोप के रोमानियां आए उसके परिवार के लोग बिना बीसा लिए तीन माह के लिए नार्वे आते है,कोई न कोई धंधा या चोरी करते हुए पैसे कमाते हैं फिर समय सीमा में वापस चले जाते हैं। उनकी हर गति विधियों पर पुलिस की निगाह होती है। नायक विवाह का प्रस्ताव भी करता सै तो राया बताती है कि उसका पति और एक बच्चा भी है,जिन्हें वह घर पर छोड़ कर यहां आती है। पति शराबी है कोई काम नहीं करता। यदि वह उसके पास रूकी तो घर वाले खोज करते आजाएंगे, उसे लेजाएंगे जिससे उसकी पड़ोसियों में साख गिरेगी।

लेखक ने घुमंतू रोमानियों के जीवन के एक पहलू का चित्रण काफी आकर्षक ढंग से किया है। बंजारों की तरह जीवन बिताने वाले ऐसे लोग,भीख मांग कर या छोटे मोटे धंधे कर किसी तरह अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं‌। लेखक ने उनके जीवन की‌ विसंगतियों पर ध्यान दिया है। एक साहित्यकार सामाजिक जन जीवन पर पैनी नजर रखता है, ‘शरद आलोक’ ऐसे ही लोक आधारित साहित्य सृजन के मौलिक कहानी कार हैं। राया के बाल उलझे हैं,नवंबर की ठंढ में भी कपड़े मौसम के अनुकूल नहीं। फिर भी उसके वस्त्रों के बीच झांकते सौदर्य की एक झलक देखने को निगाहें,उसकी तरफ चली जाती हैं। उसका चित्रण लेखक ने जगह जगह किया है। कहानी की भाषा सरल ,शैली प्रभाव पूर्ण है जो कहानी के अंत तक पाठक मे उत्सुकता बनाये रखती है।

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